–अपने स्टैंड से 2 कदम पीछे हटते हुए बिना शर्त दिया समर्थन
–अकाली दल ने भाजपा के विरोध की चुकाई भारी कीमत
–ना तो दिल्ली में चुनाव लड़ पाए, और ना ही अपने स्टैंड पर खड़े हो पाए
–सीएए में मुसलमानों को शामिल करने पर अड़े थे अकाली
-सांसद ढींढसा, जीके और सरना की बीजेपी से बढ़ी नजदीकियां
– नड्डा के कदम से भाजपा को सिख वोट छिटकने का खतरा कम हो गया
(खुशबू पाण्डेय)
नई दिल्ली/टीम डिजिटल : दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा और अकाली दल के बीच चल रहा शीतयुद्व लगभग थमता हुआ नजर आ रहा है। 20 जनवरी को सीएए में मुसलमानों को शामिल करने को लेकर बागी तेवर दिखाने वाला अकाली दल आज नरम पड़ गया है। साथ ही अपने पिछड़े स्टैंड से 2 कदम पीछे हटते हुए भाजपा को बिना शर्त समर्थन भी दे दिया है। अकाली दल के विचारों में आए एकाएक बदलाव के पीछे दिल्ली की कुर्सी और पंजाब की सियासत बीच में आ रही थी।
इसके अलावा दिल्ली में नवगठित जागो पार्टी की भूमिका भी बताई जा रही है। बुधवार को दोपहर तक भाजपा के खिलाफ खड़ा अकाली दल, शाम होते-होते भाजपा के साथ खड़ा हो गया।
सूत्रों की माने तो जागो के अध्यक्ष मंजीत सिंह जीके ने कल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नडडा के साथ मुलाकात की थी। इसमें दिल्ली चुनाव में सिख हलकों में जागो पार्टी के संगठन को प्रचार में उतारने की बात हुई थी।
इसके बाद नडडा ने भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याय जाजू और प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को विधानसभा चुनाव में जागो का समर्थन लेने के लिए जरूरी योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसकी जानकारी और तस्वीर वायरल होने के बाद अकाली दल की केंद्रीय टीम एकाएक एलर्ट हुई और दिल्ली कूच की। बुधवार को दोपहर बाद मंजीत सिंह जीके ने भाजपा को समर्थन का ऐलान जैसे ही किया अकाली दल की तरफ से भी प्रेस कांफ्रेंस बुला ली गई। पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के दिल्ली निवास पर पहुंचे जेपी नडडा और सुखबीर अकाली भाजपा गठजोड़ अटूट होने की दुहाई दे दिया।
भाजपा को दोनों तरफ से फायदा हुआ
लेकिन, अकाली दल के 20 जनवरी के स्टैंड मेें सीएए पर जो बवाल मचाया गया था, उसपर दोनों नेता जुबान नहीं खोली। राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि भाजपा के साथ जागो की नजदीकी को बढ़ता देखकर अकाली दल ने अपने दिल्ली ईकाई के नेताओं के विरोध के बावजूद भाजपा केा समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। इस स्थिति में भाजपा को दोनों तरफ से फायदा हुआ है। एक तरफ अकाली दल सीएए पर अपने पुराने स्टैंड पर हट गया है, और दूसरी तरफ अकालियों के समानांतर पार्टी बनाने वाले मंजीत सिंह जीके भी उनके साथ खड़े हो गए हैं। जिस वजह से भाजपा को सिख वोट छिटकने का खतरा कम हो गया है। भाजपा की इस गुगली में अकाली दल क्लीन बोल्ड हो गया है। लेकिन, अकाली दल ने इस विरोध की भारी कीमत चुकाई है।
ना तो दिल्ली में उसके उम्मीदवार विधानसभा का चुनाव लड़ पाए, और ना ही सीएए के अपने स्टैंड पर खड़े हो पाए। सूत्रों की माने तो नये अध्यक्ष बने नडडा के मास्टर स्टोक ने अकाली नेताओं की बोलती बंद कर दी है, जो कल तक कहते थे कि सीएए पर पार्टी के स्टैंड पर कोई समझौता नहीं हो सकता है।
अकाली दल के बागी तेवरों का असर पंजाब में
सूत्रों की माने तो दिल्ली में अकाली दल के बागी तेवरों का असर पंजाब में पडऩे लगा था। पंजाब भाजपा के नेता खुलकर बोलने लगे थे कि गठबंधन तोड़ लेना चाहिए। दूसरी ओर ढीढसा ने आज एसजीपीसी के चुनाव जल्द करवाने को लेकर अकाली दल की दुखती रग को छेड़ दिया था। इसलिए सुबह का भूले अकालियों ने शाम को घर वापसी करना ही ठीक समझा।
भाजपा के पास दिल्ली में सिख नेताओं के रूप में कई विकल्प
शह और मात के खेल में अकाली दल के पुराने साथियों ने भी अहम भूमिका निभाई है। टकसाली अकाली नेताओं की अगुवाई कर रहे सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा ने दो दिन पूर्व जेपी नडडा से मुलाकात की थी। उसके बाद मंजीत सिंह जीके नडडा से मिले। इन सबके बीच शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना भी हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खटटर से मुलाकात की थी। इससे भाजपा नेतृत्व के पास दिल्ली में सिख नेताओं के रूप में कई विकल्प पैदा हो गए हैं। जिस वजह से आज अकाली दल को भी पुराने स्टेंड को छोड़ते हुए भाजपा के साथ खड़ा होना पड़ा। हालांकि अकाली दल के आज के स्टैंड से पहले ही इनके कई नेता भाजपा उम्मीदवारेां के पक्ष में प्रचार कर रहे थे।