· गुजरात सरकार के संरक्षण मॉडल को वैश्विक स्तर पर मिली सराहना
· पब्लिक पाइवेट पहल का गुजरात ने पेश किया उदाहरण
· विख्यात कथा वाचक मोरारी बापू के जुड़ने से अभियान हुआ प्रभावी
गांधीनगर (गुजरात) टीम डिजिटल : गुजरात के गांधीनगर स्थित महात्मा मंदिर में 13वें अंतरराष्ट्रीय सीएमएस सीओपी सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। जहां शुक्रवार को व्हेल शार्क (whale shark) के संरक्षण विषय आधारित एक गोष्ठी का आयेाजन हुआ। जिसमें व्हेल शार्क के संरक्षण पर गुजरात सरकार द्वारा किए गए बेहतरीन कार्यों पर प्रकाश डाला गया। बताया गया कि प्रजनन के लिए व्हेल शार्क को गुजरात का समुद्र पसंद है। पर्यावरणविदों का कहना है कि व्हेल शार्क को प्रजनन के लिए गुजरात का समुद्र अनुकूल लगता है। पहली बार गुजरात के समुद्र में 2008 में व्हेल मछली दिखाई दी, इसके बाद गुजरात वन विभाग और वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया और टाटा केमिकल्स द्वारा उसके संरक्षण के लिए साथ-साथ काम करने का फैसला किया।
गौर करने वाली बात यह है कि गुजरात में अब तक 700 से अधिक व्हेल शार्क को मछुआरों द्वारा स्वेच्छा से मुक्त किया गया है। गुजरात सराकर के व्हेल शार्क संरक्षण मॉडल को दुसरे समुद्र तटीय राज्यों ने अपनाया है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के देशों में व्हेल शार्क के संरक्षण के इस पहल को काफी सफलता मिली है। संरक्षण के व्यापक पहलूओं पर योजनागत प्रयास पर इस गोष्ठी में चर्चा की गई।
गुजरात के पीसीसीएफ व वन विभाग के प्रमुख डीके शर्मा ने बताया कि व्हेल शार्क की पहचान 1828 में हुई थी। व्हेल शार्क कीे आयु औसतन 100 साल होती है। इस मछली का वजन 12 टन और लम्बाई 45 फीट तक होती है। इसकी औसतन उम्र 100 साल होती है। 30 साल की उम्र में यह मछली वयस्क होती है। यह मछली गर्भधारण करती है, फिर अंडों को सेती है, फिर बच्चों को जन्म देती है। उसके कुल वजन का दस प्रतिशत वजन उसके लीवर का होता है। उसके लीवर की अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मांग है।
डीके शर्मा ने बताया कि गुजरात के भावनगर से जामनगर तक समुद्र में हर साल दिसम्बर से मार्च तक सैंकड़ों व्हेल आती हैं। वेरावल, चाेरवाड और पोरबंदर समुद्री पट्टी व्हेल शार्क के लिए प्रिय है। इस समय गुजरात का समुद्र उष्णकटिबंध के कारण पानी गरम, आरामदायक और सुखद होता है। 21 से 25 सेल्सियस तापमान होने के कारण शैवाल की पर्याप्त खुराक इस दौरान व्हेल को मिल जाती है। इसके अलावा यहां का माहौल अपेक्षाकृत सुरक्षित होने के कारण व्हेल शार्क प्रजनन के लिए यहीं आती है। सुदूर आस्ट्रेलिया और सऊदी एशिया से हजारों नोटिकल मील का सफर तय कर दिसम्बर आते ही व्हेल शार्क गुजरात के समुद्री किनारों तक पहुंच जाती है।
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शार्क मछली पालने वाला देश
वाईल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया (Wild Life Trust of India) के ट्रस्टी बीसी चौधरी ने बताया कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शार्क मछली पालने वाला देश माना जाता है। लेकिन मछुआरे और मछली व्यापारी शार्क संरक्षण के नियमों से अनजान हैं। इसके कारण पिछले कई वर्षो से यहां शार्क मछलियों की संख्या लगातार कम होने लगी। इसके बाद सरकार ने जागरूकता अभियान चलाया, जिसके बाद इनके संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।
गुजरात के तटवर्ती समुद्र में शार्क अन्य शार्क मछलियों की अपेक्षा बड़ी
यूनाइटेड अरब अमीरात से आए विशेषज्ञ डॉ. रिमा ने बताया कि गुजरात के तटवर्ती समुद्र में पाई जाने वाली शार्क अन्य शार्क मछलियों की अपेक्षा बड़ी है। इनकी लम्बाई 12.5 मीटर, चौडाई 7 मीटर और वजन 15000 किलोग्राम हाेने के बाद भी स्वभाव में शांत होती है। शिकार करने के लिए इसके जबड़े में खंजर जैसे दांत होते हैं। छोटे-छोटे जीवों का भक्षण कर ये अपना गुजारा करती है। इसे दो विशेषणाें से जाना जाता है-विकराल और विराट। सभी शार्क का मुंह कद्दावर और डरावना नहीं होता। लेंटर्न शार्क कद में 8 इंच और उतनी ही लम्बी होती है। गहरे समुद्र में यह शार्क फानूस की तरह चमकती है।
भारतीय मछुआरे प्राय: बड़ी शार्क मछलियां नहीं पकड़ते
यूनाइटेड अरब अमीरात से आए विशेषज्ञ डॉ. रिमा ने एंबिओ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय मछुआरे प्राय: बड़ी शार्क मछलियां नहीं पकड़ते हैं, बल्कि दूसरी मछलियों को पकड़ने के लिए डाले गए जाल में बड़ी शार्क भी फंस जाती है। ज्यादातर मछुआरे और व्यापारी जानते हैं कि व्हेल शॉर्क को पकड़ना गैर- कानूनी है। दुनिया में 4000 प्रजाति की शार्क पाई जाती हैं। शार्क की अन्य प्रजातियों जैसे- टाइगर, हेमरहेड, बुकशार्क, पिगी शार्क आदि के लिए निर्धारित राष्ट्रीय शार्क संरक्षण मानकों से अनजान हैं। शार्क मछलियों को उनके मांस और पंखों के लिए पकड़ा जाता है। इनके पंखों के अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति काफी हद तक अनियमित है। भारत में शार्क के मांस के लिए एक बड़ा घरेलू बाजार है। जबकि निर्यात बाजार छोटा है। यहां छोटे आकार और किशोर शार्क के मांस की मांग सबसे ज्यादा है।आमतौर पर एक मीटर से छोटी शार्क मछलियां ही पकड़ी जाती हैं और छोटी शार्क स्थानीय बाजारों में महंगी बिकती हैं।
बड़ी शार्क मछलियों की संख्या में लगातार गिरावट
शार्क संरक्षण को लेकर किए गए एक अध्ययन में ये बातें सामने आई हैं। अशोका यूनिवर्सिटी, हरियाणा, जेम्स कुक यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया और एलेस्मो प्रोजेक्ट, संयुक्त अरब अमीरात के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में शार्क व्यापार के दो प्रमुख केंद्रों गुजरात के पोरबंदर और महाराष्ट्र के मालवन में संरक्षण किया गया है।
अध्ययन से जुड़ीं अशोका यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता डॉ. दिव्या कर्नाड ने बताया कि बड़ी शार्क मछलियों की संख्या में लगातार गिरावट की जानकारी ज्यादातर मछुआरों और व्यापारियों को है। और व्यापारी स्थानीय नियमों का पालन भी करते हैं। लेकिन, भारत में शार्क मछलियों की संख्या में गिरावट के सही मूल्यांकन के लिए अभी और शोध की जरूरत है।
व्हेल शार्क भी हमारे मेहमान है, उसका संरक्षण जरूरी
गुजरात के मुख्य वन संरक्षक एस के श्रीवास्तव ने कहा कि भारत में शार्क मछलियां पकड़ने में गुजरात और महाराष्ट्र का कुल 54 प्रतिशत योगदान है। शार्क मछलियां पकड़ने के लिए पोरबंदर में 65 प्रतिशत ट्राल नेटों और मालवन में 90 प्रतिशत गिलनेटों सहित हुक एंड लाइन मत्स्य पालन विधि का उपयोग होता है। उन्होंने बताया कि विख्यात कथा वाचक मोरारी बापू भी अपने प्रवचनों के माध्यम से व्हेल शार्क संरक्षण की योजना से जुड़े हैं। मुरारी बापू का कहना है कि हमारे यहां ‘अहिंसा ही परम धर्म’ और ‘अतिथि देवो भव:’ के संदेश को स्वीकार किया गया है। हमने हमेशा अहिंसा में विश्वास किया है और हमारे मेहमानों का सम्मान करना युगों से चली आ रही परंपरा है। ऐसे में व्हेल शार्क भी हमारे यहां मेहमान है, उसका स्वागत व उसका संरक्षण करना हमारा दायित्व बन जाता है।