रेलवे के बिजनेस को ‘पलीता’ लगा रहे हैं रेलकर्मी
-रेलकर्मियों के गैर पेशेवराना रवैये की खुली पोल
-मारूति का दावा, वादा 72 घंटे का ट्रेन पहुंचती है 144 घंटे में
-रैक के अंदर से गाडिय़ों के शीशे तोड़ कर स्टीरियो, स्टेपनी होता है चोरी
–गाडिय़ों में खरोंच या डेंट लगने की घटनाएं भी आतीं हैं सामने
–वैगन की डिजायन गाडिय़ों की ग्राउंड क्लीयरेंस के हिसाब से नहीं
–वैगन की आयु बताते हैं 30 से 35 साल, छह साल में छतों में हो गये छेद
(खुशबू पाण्डेय )
नई दिल्ली : भारतीय रेलवे मालवहन के क्षेत्र में ऑटामोबाइल्स इस्पात समेत विभिन्न मदों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की जीतोड़ कोशिश कर रही है, लेकिन उसके रेलकर्मियों के गैर पेशेवराना रवैये से उसे ग्राहकों के सामने असहज स्थित का सामना करना पड़ रहा है। बुधवार को एक निजी कंपनी ने ऐसा खुलासा किया कि रेल मंत्रालय के अधिकारियों की बोलती बंद हो गई। रेलवे ने वैगन के नये डिजाइन के माध्यम से और नयी मदों में मालवहन बढ़ाने के लिए एक सम्मेलन बुलाया था। इसके पहले सत्र में अधिकारियों ने डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर (डीएफसी) और अन्य मार्गों पर कारों के सुलभ परिवहन के बारे में वैगन के नये डिजायनों के बारे में चर्चा की। इसी सत्र में देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुज़ुकी इंडिया लिमिटेड ने रेलकर्मियों के गैर पेशेवराना रवैये का खुलासा किया। साथ ही रेलवे की कमियों की पोल खोल कर रख दी।
भारतीय रेलवे में 50 हजार ‘नेताओं’ के ‘पर’ कतरने की तैयारी
मारूति के उपाध्यक्ष आर एस कपूर ने दावा किया कि वैगन की डिजायन गाडिय़ों की ग्राउंड क्लीयरेंस के हिसाब से नहीं है। वैगन की आयु 30 से 35 साल बतायी गयी है, लेकिन छह साल आते आते रैकों की छतों में छेद हो गये हैं। उनसे पानी टपकता है और गाडिय़ां खराब हो जातीं हैं। अगस्त से उसे जगाधरी के कारखाने में मरम्मत के लिए भेजा गया है। अभी तक लौटा नहीं है। कपूर ने कहा कि मानेसर से बेंगलुरु के लिए रेलवे का वादा है कि 72 घंटे में रैक को पहुंचा देेंगे लेकिन पहुंचता 144 घंटे में है। गाडिय़ों को दो डेक में ऐसे रखा जाता है कि ड्राइवर को एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।
गाडिय़ों के शीशे तोड़ कर स्टीरियो, स्टेपनी आदि चुराये जाते हैं
इसके अलावा बड़ी बात यह है कि रैक के अंदर से रास्ते में गाडिय़ों के शीशे तोड़ कर स्टीरियो, स्टेपनी आदि चुराये जाने और गाडिय़ों में खरोंच या डेंट लगने की घटनाएं भी सामने आतीं हैं। इससे कंपनी को भारी नुकसान हो रहा है, लेकिन रेलवे की ओर से उसका कोई हर्जाना भी नहीं मिलता है। कपूर के इतना कहने पर हॉल में बैठे अधिकारियों को सांप सूंघ गया। रेलवे बोर्ड में सदस्य रोलिंग स्टॉक राजेश अग्रवाल कुछ नहीं बोल पाये। हालांकि बाद में राजेश अग्रवाल ने कहा कि मारुति सुज़ुकी की समस्याओं का समाधान किया जाएगा। उन्होंने आरएस कपूर की शिकायतों के समाधान का भरोसा अवश्य दिलाया।
सड़क परिवहन से बहुत महंगा पड़ रहा रेल परिवहन
मारूति अधिकारी ने बताया कि वह बीते छह साल से रेलवे के माध्यम से कारों का परिवहन कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान दशाओं में रेल परिवहन उन्हें सड़क परिवहन से बहुत महंगा पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि गैरप्रदूषण कारी परिवहन माध्यम होने के नाते मारुति सुज़ुकी ने रेलवे को कार परिवहन के लिए चुना है और बीते साल एक लाख 55 हजार कारें रेलवे के माध्यम से भेजी है। मारुति सुज़ुकी के पास कार परिवहन के लिए विशेष वैगन वाले कुछ रैक हैं।
उन्होंने बताया कि छह सालों में छह लाख से अधिक कारों को ट्रेन के जरिये देश के विभिन्न स्थानों पर पहुंचाया गया है। इससे कुछ 2800 टन कॉर्बन डॉई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम हुआ और 80 हजार ट्रकों की आवाजाही बची। उन्होंने कहा कि कंपनी चाहती है कि कुल कारों का करीब 30 प्रतिशत ट्रेन के माध्यम से हो लेकिन कई चुनौतियां हैं।
रेलवे ने पश्चिमी डीएफसी की गिनाई खूबियां
इससे पहले रेलवे अधिकारियों ने पश्चिमी डीएफसी के लिए 6820 मिलीमीटर वाले तीन डेक वाले ऊंचे वैगन की डिजायन, पांरपरिक 4305 मिलीमीटर की जगह नये 4370 मिलीमीटर वाले वैगन की डिजायन के बारे में जानकारी दी। बाद के सत्रों में सीमेंट, फ्लाईऐश, विशेष वस्तुओं की ढुलाई के लिए भी वैगन की नयी डिजायनों के बारे में चर्चा हुई।