सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य: महामंचन का अविस्मरणीय अनुभव
प्राचीन भारत के प्रतापी शासकों में शामिल सम्राट विक्रमादित्य के बारे में जनसामान्य को जागरूक करने के उद्देश्य से इनके जीवन प्रसंगों पर आधारित महानाट्य का तीन दिवसीय भव्यमंचन 12 से 14 अप्रैल तक दिल्ली के लाल किला मैदान स्थित माधव दास पार्क में किया गया, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के निवासियों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव था। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की परिकल्पना और संरक्षण से मध्यप्रदेश शासन के महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ और दिल्ली स्थित दीनदयाल शोध संस्थान और संस्कार भारती के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इस महानाट्य ने दर्शकों को भारतीय इतिहास और संस्कृति की समृद्धि का अनुभव करने का अवसर प्रदान किया।
लाल किला ऐतिहासिक रूप से मुग़ल वैभव, मराठा शक्ति, अंग्रेजी दासता और नवनिर्मित राष्ट्र की स्वाधीनता का साक्षी रहा है। लाल किले की पृष्भूमि में महानाट्य के माध्यम से महानायक सम्राट विक्रमादित्य के जीवन मंचन की भव्य प्रस्तुति ने दर्शकों को एक यादगार अनुभव प्रदान किया। यह आयोजन न केवल मनोरंजन का एक साधन था, बल्कि गौरवशाली भारतीय इतिहास के बारे में सामाजिक चेतना जागृत करने का एक महत्वपूर्ण मंच भी था। रंगमंच और नाट्यकला के लिए भी इस महानाट्य ने ऊंचे मानक स्थापित किये, जिसे कला-प्रेमियों ने खूब सराहा।
महानाट्य में दर्शकों को भारत के महान सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल की झलक दिखाई। नाट्य के माध्यम से दर्शकों को तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य की जानकारी भी मिली। विक्रमादित्य शासनकाल की गणतन्त्रात्मक राजव्यवस्था, राजनीतिक स्थिरता, सुरक्षा और साम्राज्य का विस्तार महानाट्य में बखूबी प्रदर्शित किया गया। शक और हन राजवंशों को परास्त कर तक्षशिला तक राज्य स्थापित करने, विक्रमादित्य की महाराज से चक्रवर्ती सम्राट बनने तथा विक्रम संवत प्रवर्तन की उपगाथा निश्चित ही दर्शकों को गौरव से भर देती है। राज्याभिषेक के बाद जब सम्राट घोषणा करते हैं कि आज से नई मुद्रा प्रचलित की जाएगी, तो दर्शकों की स्मृति में प्रदर्शनी में दिखाए गये विभिन्न आकार के चांदी और ताम्बे के सिक्के सहसा ताज़ा हो जाते है। महानाट्य तत्कालीन समाज में आमजन का उच्च जीवन-स्तर, महिलाओं की सम्मानजनक स्थिति, शिक्षा और कला का महत्त्व, विकसित अर्थव्यवस्था, सख्त और निष्पक्ष न्यायप्रणाली, जनसामान्य और शासकों की नैतिकता जैसे विभिन्न पहलूओं को समस्ता से समेटे हुए था। महानाट्य में विक्रमादित्य काल में प्रचलित नैतिकता, धार्मिकता, सत्यनिष्ठा और परोपकार की भावना की एक जीवंत तस्वीर दिखाई गई।
महानाट्य में विभिन्न कलाओं का अद्भुत संगम देखने को मिला। नृत्य, संगीत, नाटक और दृश्य प्रभावों के माध्यम से दर्शकों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान किया गया। प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना रेणुका देशपांडे के नृत्य निर्देशन में पारंपरिक कथक नृत्य शैलियों के साथ देशज नृत्य-कौशल के प्रदर्शन ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। श्रीगणपति, महाकाल और हरसिद्धि स्तुति गीत ‘गणराज कृपा से फूले-फले मेरा देश’ से इन्दर सिंह बेस के संगीत निर्देशन में शुरू हुई संगीतमय यात्रा ने ‘महल में जन्मयो राजकुमार’, ‘अधिनायक सम्राट की महिमा’, ‘मेरा मन क्यों इतना विचलित’, ‘परमवीर विक्रमादित्य आज हुए महाराज’ जैसी मधुर धुनें दर्शकों के मन में बस गयीं। सम्राट विक्रमादित्य की भूमिका में विक्रम सिंह चौहान और डॉ राहत पटेल ने अभिनय और कला-कौशल से दर्शकों को इतना मंत्रमुग्ध कर दिया कि इनके साथ सेल्फी निकलवाने की होड लग गई। संजीव मालवीय के निर्देशन में अन्य अभिनेताओं ने भी अपने पात्रों को जीवंत बनाने के लिए कड़ी मेहनत की और दर्शकों को प्रभावित किया। प्रसिद्ध थियेटर कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर एनी हेडफील्ड की रचनात्मकता पोशाकें और कुमार शिवम के रूपसज्जा कौशल ने विभिन्न दृश्यों में महाराज और राजघराने की वेशभूषा, सैनिकों की चोटें, प्रेतात्मा बेताल और अन्य कंकाल, हन राजकुमारी का गाउन, इत्यादि ने महानाट्य को और भी जीवंत बना दिया। उज्जैन की विशाला सांस्कृतिक एवं लोकहित समिति की इस मनमोहक प्रस्तुति में प्रकाश व्यवस्था और एलईडी ग्राफ़िक्स का अद्भुत उपयोग किया गया जिसने दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी।
महानाट्य में मुख्य मंच के साथ दो परिधि मंच बनाये गये थे, जिससे निर्बाध प्रदर्शन में सहयोग मिला। मुख्य मंच से सेट बदलने के दौरान परिधि मंचों पर प्रदर्शन जारी रखकर दर्शकों का ध्यान बनाए रखा गया और नाट्य की गति और प्रवाह बना रहा। दर्शक-दीर्घा के बीचों-बीच घोड़े पर सवार सैनिकों के आने से युद्ध के दृश्यों में जान आ गई और दर्शकों को एक वास्तविक युद्ध का हिस्सा होने का अनुभव मिला। अंतिम दृश्य में रथ पर सवार सम्राट विक्रमादित्य भव्यता से घोड़े, ऊंट और पालकी के साथ जब दर्शक-दीर्घा के बीच से होते हुए मंच की ओर प्रस्थान करते हैं तो दर्शकों को लगता है कि वे एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक घटना का हिस्सा हैं। इन अभिनव रंगमच तकनीकों ने नाटकीयता प्रदान करने के अलावा दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ा और नाट्य की स्मरणणीयता को बढ़ाया।
महानाट्य देखने आए दर्शकों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। वरिष्ठ कला समीक्षक बी. कमल ने महानाट्य की सराहना करते हुए कहा कि नाटक का क्रम इस तरह से समन्वित किया गया था कि कहानी से अनभिज्ञ आमजन भी इसे समझने की स्थिति में थे कि आगे क्या होने वाला है। मैं दर्शकों के बीच देख सकता था कि वे नाट्य में तल्लीन थे और कोई दृश्य छोड़ना नहीं चाहते थे। पूर्व में टीवी पर देखी हुई विक्रम और बेताल की कहानी ने अधिकांश लोगों की स्मृति को तरोताजा कर दिया। दर्शकों के बीच से सैनिकों और सम्राट का प्रवेश लोगों को तत्कालीन युग में पहुंचा रहा था। मैंने बहुत सारे रंगमंच देखे हैं, लेकिन 3 मंचों का एक-साथ प्रयोग और रिक्त छोड़ा गया ग्राउंड स्पेस जिस पर एक्ट चल रहे थे, पहली बार देखा है। एक्ट का क्रम टेढ़ा-मेढ़ा न होकर एक आर्क बना रहा था और निर्देशक को इसके लिए पुरस्कार मिलना चाहिए।
राजगढ़ जिले से अपने ममेरे भाई उत्सव के साथ छुट्टियों में दिल्ली घूमने आये निखिल मेहरा का कहना है कि महानाट्य की वीरगाथा ने युवाओ में उर्जा और सकारात्मक सोच का संचार किया; सम्राट का सम्बन्धियों को भी दंड देकर न्याय स्थापित करना प्रेरणादायी था; 3डी और साउंड इफ़ेक्ट के प्रयोग से एक-एक दृश्य अलौकिक बन गया, विशेषकर पर्दे पर महाकाल का दृश्य, गणेश जी की वंदनस्तुति, युद्धक्षेत्र के दृश्य, घोड़ो की दौड़, सुन्दर उपवन, विक्रम बेताल के डरावने दृश्य, सब कुछ जीवंत और वास्तविक लग रहा था।
सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य एक शिक्षाप्रद आयोजन था, जिसने दर्शकों को भावनात्मक जुड़ाव के साथ सांस्कृतिक और एतिहसिक ज्ञानवर्धन किया, और समाज के वर्तमान पुनर्जागरण प्रकिया को बल दिया। महानाट्य से महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ को भी सांस्कृतिक प्रचार-प्रसार का विशिष्ट मंच मिला। निश्चित ही लाल किले से दर्शक अपने साथ जीवनकाल की यादें ले गए हैं।
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जकिया रूही
सहायक संचालक जनसंपर्क
मध्यप्रदेश शासन