27.1 C
New Delhi
Saturday, April 20, 2024

LJP में फूट, दो हिस्से में हुई पार्टी, 5 सांसदों को लेकर पशुपति पारस हुए अलग

—नये गुट ने मान्यता के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से की मुलाकात, को सौंपा पत्र
—हाजीपुर से सांसद हैं पारस, बोले- मैंने पार्टी को तोड़ा नहीं, बल्कि बचाया
—लोजपा के मुखिया चिराग पासवान अलग-थलग हुए, टूट के कगार पर LJP

नयी दिल्ली /नेशनल ब्यूरो : लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के छह लोकसभा सदस्यों में से पांच ने दल के मुखिया चिराग पासवान को संसद के निचले सदन में पार्टी के नेता के पद से हटाने के लिए हाथ मिला लिया है और उनकी जगह उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को इस पद के लिए चुन लिया है। पारस ने सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सराहना करते हुए उन्हें एक अच्छा नेता तथा विकास पुरुष बताया और इसके साथ ही पार्टी में एक बड़ी दरार उजागर हो गई क्योंकि पारस के भतीजे चिराग पासवान जद (U) अध्यक्ष के धुर आलोचक रहे हैं। हाजीपुर से सांसद पारस ने कहा, मैंने पार्टी को तोड़ा नहीं, बल्कि बचाया है। उन्होंने कहा कि लोजपा के 99 प्रतिशत कार्यकर्ता पासवान के नेतृत्व में बिहार 2020 विधानसभा चुनाव में जद (U) के खिलाफ पार्टी के लडऩे और खराब प्रदर्शन से नाखुश हैं। चुनाव में खराब प्रदर्शन के संदर्भ में उन्होंने कहा कि लोजपा टूट के कगार पर थी।

यह भी पढें...विधुर का विवाह ठोक-बजाकर करते हैं तो विधवा का क्यों नहीं…?

उन्होंने पासवान के एक करीबी सहयोगी को संभावित तौर पर इंगित करते हुए पार्टी में असमाजिक तत्वों की आलोचना की। पासवान से उस नेता की करीबी पार्टी के कई नेताओं को खटक रही थी। पारस ने कहा कि उनका गुट भाजपा नीत राजग सरकार का हिस्सा बना रहेगा और पासवान भी संगठन का हिस्सा बने रह सकते हैं। चिराग पासवान के खिलाफ हाथ मिलाने वाले पांच सांसदों के समूह ने पारस को सदन में लोजपा का नेता चुनने के अपने फैसले से लोकसभा अध्यक्ष को अवगत करा दिया है। पांच सांसदों ने रविवार रात को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मुलाकात की और चिराग पासवान की जगह पारस को अपना नेता चुने जाने के फैसले से उन्हें अवगत कराया। लोकसभा अध्यक्ष कार्यालय के सूत्रों ने कहा कि उनके अनुरोध पर विचार किया जा रहा है।

यह भी पढें…बड़ी बहन सुरभि की मांग में डाला सिंदूर और छोटी बहन से हुई शादी

इस मुद्दे पर पासवान की तरफ से कोई टिप्पणी नहीं की गई है। पारस के पत्रकारों से बात करने के बाद चिराग पासवान राष्ट्रीय राजधानी स्थित उनके चाचा के आवास पर उनसे मिलने पहुंचे। पासवान के रिश्ते के भाई एवं सांसद ङ्क्षप्रस राज भी इसी आवास में रहते हैं। बीते कुछ समय से पासवान की तबीयत ठीक नहीं चल रही, उन्होंने 20 मिनट से ज्यादा समय तक अपनी गाड़ी में ही इंतजार किया जिसके बाद वह घर के अंदर जा पाए और एक घंटे से भी ज्यादा समय तक घर के अंदर रहने के बाद वहां से चले गए। उन्होंने वहां मौजूद मीडियार्किमयों से कोई बात नहीं की। ऐसा माना जा रहा है कि दोनों असंतुष्ट सांसदों में से उनसे किसी ने मुलाकात नहीं की। एक घरेलू सहायक ने बताया कि पासवन जब आए तब दोनों सांसद घर पर मौजूद नहीं थे। सूत्रों ने बताया कि असंतुष्ट लोजपा सांसदों में ङ्क्षप्रस राज, चंदन सिंह, वीना देवी और महबूब अली कैसर शामिल हैं, जो चिराग के काम करने के तरीके से नाखुश हैं।

यह भी पढें…महिलाओं केा हिंसा से बचा रहे हैं वन स्टॉप केंद्र, 3 लाख महिलाओं को मिली मदद

इन नेताओं का मानना है कि नीतीश कुमार के खिलाफ लडऩे से प्रदेश की सियासत में पार्टी को नुकसान हुआ। कैसर को पार्टी का उप नेता चुना गया है। इस गुट के निर्वाचन आयोग के समक्ष असली लोजपा का प्रतिनिधित्व करने का दावा ठोकने की भी उम्मीद है क्योंकि पिछले साल अपने पिता रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान अलग-थलग होते दिख रहे हैं। गुट आने वाले वक्त में पासवान को पार्टी अध्यक्ष पद से भी हटा सकता है। उनके करीबी सूत्रों ने जनता दल (यूनाइटेड) को इस विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि पार्टी लंबे समय से लोजपा अध्यक्ष को अलग-थलग करने की कोशिश कर रही थी क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ जाने के चिराग के फैसले से सत्ताधारी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा था।

यह भी पढें…केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी का योग में कमाल, शीर्षासन, मयूरचाल और जलनेति की तस्वीरें वायरल

लोजपा उम्मीदवारों की मौजूदगी के कारण 35 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की हार का सामना करने वाली जदयू पहली बार राज्य में भाजपा से कम सीट पाई और यही वजह है कि वह लोजपा के कई सांगठनिक नेताओं को अपने पाले में लाने की लिये प्रयासरत थी। लोजपा के एक मात्र विधायक ने भी जदयू का दामन थाम लिया था। पारस ने इन आरोपों को खारिज किया कि पार्टी के विभाजन में कुमार का कोई हाथ है। भाजपा ने इस मामले में फिलहाल चुप्पी साध रखी है और कुछ पार्टी नेताओं का कहना है कि यह लोजपा का आंतरिक मामला है। विधानसभा चुनाव अकेले लडऩे के लिये बिहार में सत्ताधारी राजग से अलग होने वाले पासवान ने हालांकि नरेंद्र मोदी और भाजपा समर्थक रुख कायम रखा था।

केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की सुगबुगाहट के बीच सियासी पारा गर्म

केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की सुगबुगाहट के बीच सियासी समीकरणों पर नजर रखने वालों का मानना है कि यह कदम पासवान को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किये जाने से रोकने का प्रयास है हालांकि यह देखना अभी बाकी है कि भगवा दल लोजपा में इस फूट को कैसे देखता है। बिहार में सत्ता में साझेदारी के बावजूद भाजपा और जदयू के रिश्ते बहुत अच्छे स्तर पर नहीं हैं और विधानसभा चुनावों में झटके के बाद कुमार अपनी पार्टी की ताकत बढ़ाने के लिये विभिन्न उपाय करते नजर आ रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि पारस को भी भाजपा के मुकाबले नीतीश कुमार के ज्यादा करीब माना जाता है और पासवान को पूरी तरह हाशिये पर ढकेल दिया जाना पार्टी का एक वर्ग नहीं चाहेगा, भले ही पार्टी का एक वर्ग उनके व्यवहार को लेकर बहुत खुश न हो।

latest news

Related Articles

epaper

Latest Articles