-महिला सेना अधिकारियों को 3 महीने में स्थायी कमीशन देने का निर्देश
—महिला अधिकारियों ने देश का मान बढ़ाया है
—सेना में महिलाओं की भागीदारी विकासशील प्रक्रिया रही है
(खुशबू पाण्डेय)
नई दिल्ली/ टीम डिजिटल: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक अभूतपूर्व फैसले में केंद्र सरकार (central government) को आदेश दिया कि वह सेना की उन सभी महिला अधिकारियों (Female officers) को तीन महीने के भीतर स्थायी कमीशन प्रदान करे। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने सरकार की उस दलील को परेशान करने वाली और समानता के सिद्धांत के विपरीत बताया, जिसमें शारीरिक सीमाओं और सामाजिक चलन का हवाला देते हुए कमान मुख्यालय में नियुक्ति नहीं देने की बात कही गई थी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अतीत में महिला अधिकारियों ने देश का मान बढ़ाया है और सशस्त्र सेनाओं में लैंगिक आधार पर भेदभाव समाप्त करने के लिए सरकार की मानसिकता में बदलाव जरूरी है।
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि महिलाओं को कमान मुख्यालय में नियुक्ति दिए जाने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के 2010 के दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक नहीं होने के बावजूद केंद्र सरकार ने पिछले एक दशक में इस निर्देश का पालन करने में आनाकानी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि सेना में महिलाओं की भागीदारी विकासशील प्रक्रिया रही है और भारत संघ को दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार कार्रवाई करनी चाहिए थी क्योंकि उस पर कोई रोक नहीं थी।
पीठ ने कहा, दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार कार्रवाई नहीं करने का भारत संघ के पास कोई कारण अथवा औचित्य नहीं था। उच्चतम न्यायालय ने दो सितंबर 2011 को इस पर स्पष्टीकरण दिया देते हुये कहा था कि उच्च न्यायालय के आदेश पर कोई रोक नहीं लगाई जाएगी। इसके बावजूद दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं किया गया। पीठ ने कहा कि महिलाओं को सशस्त्र सेनाओं में उनके पुरुष समकक्षों के समान अवसर मिलना चाहिए क्योंकि उनका मत है कि महिलाओं की शारीरिक संरचना का स्थायी कमीशन मिलने से कोई लेना देना नहीं है।
महिला अधिकारियों के प्रति मानसिकता में बदलाव जरूरी
न्यायालय ने कहा कि औपनिवेशिक शासन के 70 साल बीत जाने के बाद भी भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को समान अवसर देने के प्रति मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि महिलाओं की शारीरिक सीमा को लेकर केंद्र की स्थापना का कोई संवैधानिक आधार नहीं है और इस कारण से उन्हें समान अवसर मिलने से वंचित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों ने देश का सम्मान बढ़ाया है और उन्हें सेना पदक समेत कई वीरता पदक मिल चुके हैं।
युद्धक भूमिका में महिलाओं की तैनाती नीतिगत विषय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं ने संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भी भाग लिया है और पुरस्कार प्राप्त किए हैं। इसलिए सशस्त्र सेनाओं में उनके योगदान को शारीरिक संरचना के आधार पर कमतर आंकना गलत है। हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार युद्धक भूमिका में महिलाओं की तैनाती नीतिगत विषय है और इससे संबंधित अधिकारियों को निर्णय लेना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं को स्थायी कमीशन दिया जा सकता है चाहे उनकी सेवा अवधि कितनी भी हो।
दिल्ली हाई कोर्ट ने 2010 में दिया था यही फैसला
बता दें कि सरकार ने महिला अधिकारियों को स्थायी कमिशन के 2010 के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2010 में शॉर्ट सर्विस कमिशन (Short service commission) के तहत सेना में आने वाली महिलाओं को सेवा में 14 साल पूरे करने पर पुरुषों की तरह स्थायी कमिशन देने का आदेश दिया था। रक्षा मंत्रालय ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।