प्रयागराज /सत्य प्रकाश सिंह : नारी का सौंदर्य और उनकी समस्याएं आज के समाज में पुरुषों के कारण ही हैं। पुरुषों की कठोरता को मृदुलता से नारियों ने ही पुरुष का निर्माण किया है बस यह बात पुरुष भूल जाता है। नारी का सौंदर्य के कई रूप अगोचर है वह पुरुष को दिखाई नहीं पड़ता। यदि हम पुरुषों के विषय पर विश्लेषण करें तो कठिनाइयां सर्वत्र समान विद्यमान हैं। क्या सृष्टि ने सौंदर्य के साथ पक्षपात किया था ?। सृष्टि ने जो सौंदर्य स्त्रियों को प्रदान किया वही सौंदर्य क्या उसने पुरुषों को नहीं प्रदान किया ।सबसे बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह है इसी विषय पर परिलक्षित होता है।
नारी अंग – संज्ञा का नाम सुनते ही पुरुष परिरम्मभ पाश का अतिक्रमण करके इंद्रिय मार्ग से नारी का स्पर्श करना चाहता है। सौंदर्य की सीमा को पार करके अक्रांत पुरुष नारी का संधान पाकर उसमें समाहित होना चाहता है। परंतु आक्रांत पुरुष यह भूल जाता है नारी तो निर्मल निष्काम कर्मयोग की क्रियाएं हैं जिसने हमें इस पृथ्वी पर जीवन प्रदान किया है। हमें इस पृथ्वी पर नारी के कई रूपों को त्रिकाल नेत्र, मस्तिष्क की कला व तर्क हृदय से विश्लेषण कर देखना होगा। मनुष्य के समग्र जीवन की समस्याएं जैव विविधता के भौतिकवादी धरातल है । भौतिक अवयवों के साथ कामुक गतिविधियों में लिप्त पुरुष नारी के कई रूप – मातृत्व , दुहिता में भेद नहीं कर पाता है । वह यह नहीं जान पाता है कि कल्पना चावला ने भी कभी अंतरिक्ष में ऊंची उड़ान भरी थी, श्रीमती स्वर्गीय इंदिरा गांधी जी ने भी कभी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की प्रधानमंत्री बनी थी। वैसे तो मनुष्य के सारे भौतिक अभियान तो संकेतिक ही होते हैं लेकिन मनुष्य की सार्थकता तब सिद्ध होगी जब वह जैव धरातल पर अपने आचरण को शुद्ध व शुचिता पूर्ण रखें।