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Tuesday, June 17, 2025

महादेव के हाथों में होगी धरती की कमान, विष्णु जी करेंगे विश्राम

जी हां, अब धरती की बागडोर देवों के देव महादेव संभालेंगे। जबकि भगवान विष्णु क्षीरसागर में आराम करेंगे। इस दौरान सृष्टि की कमान भगवान शिव के हाथों में रहेगी। इस अवधि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसके व्रत से न सिर्फ भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, बल्कि उनके सभी पापों का नाश होता है। देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मास के लिए निद्रा में चले जाते हैं। देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास की शुरुआत होती है। इस साल 4 महीने की जगह चातुर्मास पांच महीने का होगा। यानी 1 जुलाई से शुरू होकर यह समय 25 नवंबर तक चलेगा। इसके बाद 26 नवंबर से मांगलिक कार्यों की शुरुआत की जा सकेगी

(सुरेश गांधी) 
आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का व्रत सबसे उत्तम माना जाता है। इसे आषाढ़ी एकादशी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी आदि नाम से भी जाना जाता है। इसे भगवान विष्णु का शयन काल कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। इसी दिन से चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं और इस समय में विवाह समेत कई शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। इस बार देवशयनी एकादशी 1 जुलाई को मनाई जाएगी। सनातन संस्कृति में एकादशी तिथि को मोक्षदायिनी और पुण्यफल देने वाली माना जाता है। वैष्णव संप्रदाय में इस तिथि का खास महत्व है। इस दिन भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा का विशेष महत्व है।
इस बार चार्तुमास 148 दिनों का है। जो 25 नवंबर को देवोत्थानी एकादशी को समाप्त होगा। इस दिन भगवान विष्णु अपने शयन कक्ष से बाहर आ जाएंगे। इस बार अधिकमास यानि मलमास भी है। मान्यता है कि जिस वर्ष 24 एकादशी के स्थान पर 26 एकादशी होती हैं तो चार्तुमास अधिक लंबा होता है। इस कारण इस बार चार्तुमास की अवधि लगभक 5 माह की रहेगी। चार्तुमास आरंभ होते हैं भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं। इसीलिए चार्तुमास में भगवान शिव की उपासना को विशेष महत्च दिया गया है। सवान का महीना भी चार्तुमास में ही आता है, जो भगवान शिव को समर्पित है।

पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

देवशयनी एकादशी का प्रारंभ – 30 जुन की शाम को 07 बजकर 49 मिनट से है, जबकि समापन – 1 जुलाई को शाम में 5 बजकर 29 मिनट पर है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए उनको प्रणाम करें। इसके बाद गंगाजल या स्नान के जल में गंगाजल डालकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। स्नान के बाद भगवान सूर्यदेव को अघ्र्य दें। अब भगवान विष्णु का चित्र या प्रतिमा एक पाट पर रखें। श्रीहरी की पूजा फल, फूल, दूध, दही, पंचामृत, धूप-दीप आदि से करें। धूप-दीप जलाएं। पीली वस्तुओं यानी पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें। भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित का भगवान को भोग लगाएं। दिन भर उपवास रखें और संध्या के समय पुनः आचमन कर आरती भगवान विष्णु की आरती उतारें। इसके बाद फलाहार ग्रहण करें। रात्रि में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना चाहिए।

मंत्रजाप

इस दिन भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। श्रीहरी के मंत्रों का जाप तुलसी या चंदन की माला से करना श्रेष्ठ और शुभ फलदायी होता है। देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु के इन मंत्रों का जाप करें।

संकल्प मंत्र

सत्यस्थः सत्यसंकल्पः सत्यवित् सत्यदस्तथा।
धर्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जितः।।
कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपतिः श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जितः।।
सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम।
विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत सर्वं चराचरम।
भक्तस्तुतो भक्तपरः कीर्तिदः कीर्तिवर्धनः।
कीर्तिर्दीप्तिः क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।।

भगवान शिव करते हैं धरती का भ्रमण

मान्यता है कि चार्तुमास में भगवान शिव धरती का भ्रमण करते हैं। इस दौरान भगवान शिव उन लोगों को दंडित करने का भी कार्य करते हैं जो गलत कार्य करते हैं। वहीं भगवान शिव उन लोगों पर अपना विशेष आर्शीवाद देते हैं जो उनकी पूजा करता है और धरती को सुंदर बनाने का प्रयास करता है।

नहीं किए जाते हैं शुभ कार्य

चार्तुमास में अनुशासित जीवन शैली का पालन करना चाहिए। इन दिनों में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। चार्तुमास में खानपान भी विशेष ध्यान दिया जाता है। चार्तुमास में भगवान का ध्यान किया जाता है। विवाह, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक काम बंद होते है। 25 नवंबर के बाद मांगलिक कामों की शुरुआत होगी।

अब बचें हैं सिर्फ 12 शुभ मुहूर्त

देवशयनी एकादशी के बाद अगला विवाह मुहूर्त 25 नवंबर से शुरू हो रहा है। देव प्रबोधिनी एकादशी भी 25 नवंबर को है। इस दिन से विवाह मुहूर्त की शुरुआत हो जाती है। इस साल चातुर्मास के खत्म होने पर 25 नवंबर से 14 दिसंबर तक केवल 12 शुभ मुहूर्त ही हैं। जिनमें नवंबर में 2 और दिसंबर में 10 दिन शुभ मुहूर्त रहेंगे। 15 दिसंबर से खरमास शुरू हो जाएगा जो कि मकर संक्रांति तक रहेगा। इस तरह अब साल के सिर्फ 12 शुभ मुहूर्त ही बचें हैं। नवंबर में विवाह मुहूर्त- 25 और 30 नवंबर है। जबकि दिसंबर में विवाह मुहूर्त – 1, 2, 6, 7, 8, 9, 10,11, 13, 14 है। अगले साल विवाह और अन्य बड़े मांगलिक कामों के लिए अप्रैल 2021 तक इंतजार करना होगा। नए साल 2021 में जनवरी से मार्च तक गुरु व शुक्र ग्रह के अस्त रहने पर मुहूर्त नहीं रहेंगे। इसलिए नवंबर-दिसंबर के बाद 3 अगले 3 महीने तक शुभ मुहूर्त का इंतजार करना पड़ेगा। हालांकि 16 फरवरी 2021 को वसंत पंचमी पर अबूझ मुहूर्त वाला दिन होने के कारण विवाह किया जा सकता है। 22 अप्रैल 2021 से दिसंबर 2021 तक करीब 46 दिन मुहूर्त रहेंगे। अप्रैल में 6, मई में 10, जून में 11, जुलाई में 6, नवंबर में 7 और दिसंबर में 6 दिन मुहूर्त रहेंगे।

7 उपायों से होगी हर इच्छा पूरी

मान्यता है कि इस दिन कुछ खास उपाय करने से आपकी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। ये उपाय इस प्रकार हैं- दक्षिणावर्ती शंख में साफ पानी भरकर उससे भगवान विष्णु का अभिषेक करें। खीर, पीले फल या पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। अगर आप धन लाभ चाहते हैं तो इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करें। शाम को तुलसी के सामने गाय के शुद्ध घी का दीपक लगाएं और तुलसी के पौधे को प्रणाम करें। गाय के कच्चे (बिना उबाला) दूध में केसर मिलाकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं। विष्णु भगवान के मंदिर में जाकर अन्न (गेहूं चावल आदि) दान करें। बाद में इसे गरीबों में बांट दें।

 

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