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Monday, June 16, 2025

मनोज सिन्हा को मिली महत्वपूर्ण राज्य J&K के उपराज्यपाल की कमान

—प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह के करीबी हैं मनोज सिन्हा

(खुशबू पाण्डेय)

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल : पूर्व केंद्रीय संचार एवं रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल बनाया गया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के रूप में गिरीश चंद्र मुर्मू का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। मनोज सिन्हा की नियुक्ति गिरीश चंद्र मुर्मू के स्‍थान पर उनके पदभार ग्रहण करने की तिथि से प्रभावी मानी जाएगी। मनोज सिन्हा को पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलने की चर्चा भी जोरों पर चल रही थी, और बाद में पार्टी संगठन में बडे ओहदे पर जिम्मेदारी देने की भी कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन इस बीच बदले घटनाक्रम के अनुसार आज केंद्र सरकार ने उन्हें उपराज्यपाल बना दिया गया। मनोज सिन्हा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह के बेहद करीबी भी माने जाते हैं। यही कारण है कि सरकार ने उन्हें जम्मू-कश्मीर जैसे महत्वपूर्ण राज्य की कमान सौंपी है। जम्मू-कश्मीर पर केंद्र सरकार की पूरी नजर है और हर गतिविधियों में शामिल होती रही है।

मनोज सिन्हा को मिली महत्वपूर्ण राज्य J&K के उपराज्यपाल की कमान
बता दें कि मनोज सिन्हा उत्तर प्रदेश की अपनी परंपरागत सीट गाजीपुर लोकसभा सीट से 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए थे। वहां से तीन बार लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें रेल राज्य मंत्री बनाया था। कुछ दिनों बाद उनका कद देखकर केंद्रीय संचार मंत्री का स्वतंत्र चार्ज भी मनोज सिन्हा को दिया गया था। दोनों चार्ज मनोज सिन्हा ने बखूबी निभाया। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में भाजपा की राजनीति के बड़े चेहरे मनोज सिन्हा छात्र राजनीति से उभर कर आए हैं। काशी विश्वविद्यालय बीएचयू के छात्र संघ अध्यक्ष बन कर उन्होंने राजनीति जीवन शुरू किया और अपनी अद्भुत प्रशासनिक क्षमता जुझारू और ईमानदार छवि के बलबूते व केंद्रीय मंत्री की कुर्सी तक पहुंच। मनोज सिन्हा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफी विश्वास है।

यूपी में 2017 में मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए थे मनोज सिन्हा

उत्तर प्रदेश के 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जब प्रचंड जीत हासिल की थी तो मनोज सिन्हा का नाम मुख्यमंत्री के रूप में सबसे आगे था, लेकिन अंतिम समय में बाजी योगी आदित्यनाथ के हाथ लगी। पर वर्ष 2019 का आम चुनाव व बाहुबली मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी के हाथों हार गए और फिर राजनीतिक परिदृश्य से दूर हो गए, लेकिन सवा साल बाद ही न केवल और राष्ट्रीय राजनीति बल्कि क्षेत्रीय राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील जम्मू कश्मीर की बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने से साबित हो गया कि उनमें शीर्ष नेतृत्व का विश्वास पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भरोसा उनमें और मजबूत हुआ

वर्ष 1989 से 1996 तक भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहने के बाद 1996 में पहली बार गाजीपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे और वह 1998 का लोकसभा चुनाव हार गए किंतु 13 माह बाद 1999 में हुए चुनाव में दूसरी बार जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद करीब 15 साल तक उन्हें चुनावी जीत का वनवास भोगना पड़ा। भाजपा ने 2014 के आम चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा और मनोज सिन्हा जीतकर लोकसभा पहुंचे। वर्ष 2014 में रेल राज्यमंत्री और उसके साथी संचार मंत्री स्वतंत्र प्रभार के पद पर उन्होंने प्रशासनिक दक्षता और राजनीतिक क्षमता का बखूबी परिचय दिया। इस दौरान डाकघर बैंक की स्थापना उनका बडा प्रयोग रहा, जो सफल भी रहा। इसके अलावा समूचे उततर प्रदेश, बिहार एवं खासकर पूर्वांचल सहित देशभर में रेलवे के ढांचे में सुधार एवं विस्तार के लिए संतोषजनक परिणाम दिखाने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भरोसा उनमें और मजबूत हुआ। वाणी एवं व्यवहार के संयम और शब्दों के चयन में सावधानी उनके व्यक्तित्व को गंभीरता एवं ऊंचाई देने में सहायक हुई। इसके अलावा जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से सतत संवाद ने उनकी राजनीतिक दृष्टिकोण व्यापक एवं सर्व स्वीकार्य बनाने में मदद की।

‘राय साहब’ के भी नाम से जाने जाते हैं

दिल से किसान और ऊपर से राजनीति का लबादा ओढ़े मनोज सिन्हा जितने ही सरल है, उतने ही जमीनी नेता भी। विवादों से हमेशा दूर रहने वाले मनोज सिन्हा अपने इलाके में ‘राय साहब’ के भी नाम से जाने जाते हैं। लेकिन, उनको कौन क्या कहता है इसका न कोई गुमान और न ही कोई पश्चात्ताप। कोई कुछ भी कहे, राय साहब सबके लिए उपलब्ध हैं और अपनी मुस्कान से सबको खुश कर ही देते है। राजनीति में दुश्मनी को कौन टाल सकता है। राय साहब के भी राजनीतिक दुश्मन हैं, लेकिन सामने कोई वार नहीं करता। दुश्मन भी राय साहब के होकर रह जाते हैं। यह राय साहब की अदा कहिए या मिजाज, जिससे मिल लिए नाराजगी खत्म हो गई।राय साहब यूपी के गाजीपुर की राजनीति करते रहे हैं। 1996 से यहां से सांसद चुने जा रहे हैं। कहीं कोई रुकावट नहीं। उनका कोई है या नहीं, लेकिन उनका दावा है कि वे सबके हैं।

 

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