नई दिल्ली /खुशबू पाण्डेय : देश में 4 महीने बाद होने जा रहे लोकसभा चुनाव के ऐन पहले पंजाब से लेकर दिल्ली तक बिखरी पार्टी (शिरोमणि अकाली दल) को फिर से खड़ी कर एकजुट करने के लिए सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) ने बड़ी पहल की है। वर्तमान हालात के चलते अकाली दल का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है। इसी कड़ी में दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष एवं जागो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंजीत सिंह जीके की घर वापसी करवाई जा रही है। सबकुछ ठीक रहा तो क्रिसमस के दिन यानि सोमवार को वह देश की दूसरे नंबर पुरानी पार्टी शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो जाएंगे। इस बार भी बहाना वही पंथ की एकजुटता और बिखरी हुई पार्टी को एकजुट करने का है। शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल खुद मंजीत सिंह की घर वापसी का प्रस्ताव लेकर सोमवार को दोपहर उनके ग्रेटर कैलाश स्थित आवास पर जा रहे हैं। बादल को भी पता है कि बगैर दिल्ली का किला फतह किए आगे का रास्ता नहीं खुलता है।
-लोकसभा चुनाव के ऐन पहले कुनबे को जोड़ने निकले सुखबीर बादल
-अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल खुद प्रस्ताव लेकर जा रहे हैं घर
-4 साल पहले बादल ने ही मंजीत जीके को पार्टी से निकाला था
-पंथ की एकजुटता और बिखरी पार्टी को एकजुट करने की कवायद
यही कारण है कि वह दिल्ली में पार्टी की जड़े फिर से मजबूत करने के लिए सभी पंथक नेताओं को एकजुट कर रहे हैं। मजेदार बात यह है कि इसी अकाली दल एवं पार्टी के मुखिया सुखबीर सिंह बादल ने मंजीत सिंह को मार्च-अप्रैल 2019 को पार्टी से निकाल दिया था। इससे पहले जनवरी 2019 में मंजीत सिह जीके ने कथित आरोप लगने के चलते दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। उस वक्त विरोधियों का दबाव था कि मंजीत पर कथित आरोप हैं लिहाजा इन्हें पार्टी से बाहर किया जाए। बादल ने भी बिना देर किए जीके को बाहर का रास्ता दिखा दिया। जबकि, बादल परिवार एवं जीके परिवार के बीच करीब 73 वर्षों का नाजुक सबंध रहा है। बता दें कि दिल्ली का किला मजबूत करने के साथ ही पार्टी के अन्य सिख बहुल पड़ोसी राज्यों में भी पार्टी का विस्तार करना होगा। इस मसले पर पार्टी कई राज्यों में विस्तार की तैयारी भी कर रही है।
जत्थेदार की हत्या के बाद मंजीत ने संभाली थी कमान
सिख जानकार बताते हैं कि 1980-81 के दशक में जत्थेदार संतोख सिंह का कमेटी और पार्टी दोनों में दबदबा था। 21 दिसम्बर 1981 को जत्थेदार की हत्या कर दी गई। उस वक्त भिंडरावाला एवं संत लोगोवाल ने अपील की थी कि अब धर्मयुद्व मोर्चा लग चुका है, लिहाजा सभी मतभेदों को भुलाकर पंथ को एकजुट होना होगा। इसके बाद अकाली दल के वरिष्ठ नेता सरदार प्रकाश सिंह बादल 1982 में मंजीत सिंह जीके के दिल्ली स्थित घर आए और पार्टी में शामिल होने के लिए तैयार किया। फिर मंजीत सिंह जीके को अमृतसर बुलाया गया और 1982 में वहीं भिंडरावाला एवं संत लोगोवाल की मौजूदगी में शिरोमणि अकाली दल में विधिवत ज्वाइनिंग करवाई गई। इसके साथ ही जत्थेदार की पार्टी शिरोमणि अकाली दल (मास्टर तारा सिंह) का विलय हुआ। मंजीत सिंह अकाली दल के पहले यूथ प्रधान बने थे। जानकारों की माने तो जत्थेदार संतोख सिंह ने आपसी मनमुटाव के चलते 1975 में अकाली दल छोड़कर नई पार्टी शिरोमणि अकाली दल (मास्टर तारा सिंह) की स्थापना की थी।
दिल्ली की सिख सियासत में आएगा बदलाव
करीब 4 साल बाद शिरोमणि अकाली दल से जुड़ने जा रहे मंजीत सिंह जीके को क्या जिम्मेदारी मिलेगी, इसका तो खुलासा अभी तक नहीं हुआ है, लेकिन इतना तो तय है कि ज्वाइनिंग के बाद दिल्ली की सिख सियासत में बड़ा फेरबदल हो सकता है। वर्ष 1950 में मास्टर तारा सिंह ने दिल्ली में शिरोमणि अकाली दल की स्थापना की थी। तब से अब तक अकाली दल का सिख सियासत में बड़ा दखल रहा है।
वर्तमान में दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर काबिज धड़ा भी इसी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़कर सत्ता हासिल किया था। हालांकि बाद में पार्टी में बिखराव हो गया और एक नई पार्टी का जन्म हो गया। 2021 में दिल्ली कमेटी के चुनाव में तीन बड़ी पार्टियां (शिरामणि अकाली दल बादल, अकाली दल दिल्ली और जागो पार्टी) प्रमुख रूप से चुनाव में हिस्सा लिया और करीब 90 प्रतिशत वोट हासिल किए। आने वाले समय में यही तीनों पार्टियां एक होने जा रही है। ये तीनों पार्टियां अब तक एक दूसरे के खिलाफ जमकर हमले बोलती रही हैं।
इस लिहाज से बहुत जल्द दिल्ली की सिख सियासत में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
अच्छी खबर है । पंथ और शिरोमणि अकाली दल के लिए यह बहुत जरूरी है की सभी पुराने नेताओं को एकजुट किया जाए। एकजुट होने के बाद ही कोई लंबी लड़ाई लड़ी जा सकती है