महिलाओं के वस्त्रों से कब तक प्रभावित होंगी भारतीय विचारधारा
—महिलाओ को हमारे समाज में वस्त्रों की सीमाओं में बांधा गया है
—महिलाएं अपने पहनावे को लेकर लोगों के विचारों की होती हैं शिकार
(राखी सरोज)
संस्कृति और सभ्यता दो शब्द या कहें हमारे जीवन का आधार होते हैं जिसका समान्य संबंध विकास से होता है। किन्तु महिलाओं की जब बात आती है तब हम संस्कृति और सभ्यता को उनके वस्त्रों के साथ जोड़ देते हैं। हमारे सामाज में आज के समय में महिलाओं को पढ़ने लिखने के साथ ही साथ अपने जीवन को कामयाब बनाने के मौके मिलने लगे हैं। जिसके चलते महिलाएं बढ़-चढ़कर देश की तरक्की में अपना सहयोग देती नज़र आतीं हैं। किन्तु जहां बहुत सी महिलाएं कामयाबी के झंडे गाड़ रही है, वहीं हमारे ही देश की महिलाएं अपने पहनावे को लेकर लोगों के विचारों की शिकार होती हैं।
आप ने सुना होगा हमारे घरों की या अच्छे घरों की लड़कियां ऐसे वस्त्र नहीं पहनती हैं। वस्त्रों से क्या हम अच्छे या बुरे बनते हैं। इस प्रकार महिलाओ को हमारे सामाज में वस्त्रों की सीमाओं में बांधा गया है कि उनके विचारों और भावनाओं को भी वस्त्रों की सीमाओं में ही बंद कर दिया गया है। ब्रा खरीदते समय लड़कियों को शर्म आनी जरूरी है, यदि वह शर्माती नहीं है तो वह बेकार लड़की कहलाएंगी। ब्रा की पट्टी तक दिखना महिला को गुनेहगार होने जैसा एहसास करवा देता है। फिर आंतरिक वस्त्रों को खुले में सुखाना कितना बड़ा गुनाह होगा आप विचार कर ही नहीं सकतें हैं।
यह भी पढें…सैक्स या सम्भोग पर महिलाएं खुलकर बात क्यों नहीं कर सकती
महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले परिधानों को लेकर उनको समाज-परिवार हर जगह संघर्ष करना पड़ता है। जिंस जैसे आम परिधान जिसे पुरुष बिना रोक-टोक के पहन लेते है हमारे समाज में, उसी परिधान को जब किसी लड़की या महिला के पहनने की बारी आती है उन्हें डरा धमकाकर या संस्कार जैसी बातें बतला कर रोका जाता हैं। अन्य वस्त्रों कि तो बात ही क्या करें। धर्म, रीति रिवाज सभी की नींव महिलाओं के वस्त्रों पर आधारित है, ऐसा लगता है जब यह सुनने को मिलता है रीति-रिवाज भूल गए। ऐसे में कैसा विकास और कौन सी तरक्की।
‘महिलाओं के वस्त्रों के चलते होते हैं बलात्कार’
पुरूष, अक्सर महिलाओ के साथ छेड़छाड़ से लेकर बलात्कार जैसे अपराधो को अंजाम देते हैं। ऐसे पुरुष और साथ ही साथ कुछ महान अनुभवी लोग इसका कारण महिलाओं के वस्त्रों को बतलाते हैं। एक लड़की की टांगों को देख कर पुरुष के अंदर वासना जागृत हो जाती है। ऐसा होने की वजह वह वस्त्र थें या हमारे वह संस्कार जिनके साथ हमने इस सामाज में पुरुषों को कहीं भी वस्त्र उतार कर खड़े होने की इजाजत दे रखी है। हमें इस पर विचार करना चाहिए, महिलाओं के वस्त्रों को हथियार बना कर हम यदि पुरुषों को बलात्कार जैसे अपराधों को करने के लिए बढ़ावा देते रहे तो यह आने वाले समय के लिए उचित नहीं होगा।
आंखें बंद करके सच से मुंह मोड़ कर हम अक्सर यह कह देते हैं लोग ऐसे ही हैं, इन्हें नहीं बदल सकते हैं। किन्तु क्या आप को यह सही लगता है कि बड़ी-बड़ी अभिनेत्रियां जिन्होंने अपनी मेहनत से अपना एक मुकाम बनाया है वह बलात्कार के लिए लुभाती है बहुत ही अभद्र टिप्पणियों का शिकार होती हैं केवल वस्त्रों के चलते। यदि वह ऐसे कपडे पहनती हैं तो इसलिए क्योंकि आज के दर्शकों की ऐसी मांग है और वह दर्शक भी वही लोग हैं जो उनके बारे में ऐसे विचार रखते हैं।
‘भारतीय स्त्री’ एक शब्द से अधिक एक विचारधारा बन गई
‘भारतीय स्त्री’ एक शब्द से अधिक एक विचारधारा बन गई है। एक ऐसी विचारधारा जिसके तहत भारतीय स्त्री, वह महिला होती है, जिसके शरीर पर सूट या साड़ी नामक परिधान सज़े होते हैं। भारतीय महिला यदि शादी के बाद किसी भी प्रकार के पश्चिमी वस्त्रों को धारण करती है तब उसे व्यंग्य कर उसका मनोबल तोड़ा जाता है। उनको संस्कार ना होने का प्रमाण पत्र दे दिया जाता है।
भारत देश और भारतीय विचारधारा सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। यहां का रहन सहन हो त्योहारों की बात सभी का ढंग अलग है, लेकिन जब इस देश के पढ़े लिखे लोगों को महिलाओं के वस्त्रों पर टिप्पणी करते हुए देखती हूं, तब अक्सर सोचती हूं कि क्या जब पढ़ें लिखे व्यक्ति या किसी बड़े पद के अधिकारियों के विचार महिलाओं के वस्त्रों के बारे में अनुचित होंगी, तब कैसे भारत की रीति और विचार धारा महिलाओं के वस्त्रों से प्रभावित नहीं होंगी। यह समझना जरूरी है कि समय के साथ चलने के लिए हमें महिलाओं के वस्त्रों के बारे में अपने विचार बदलने होंगे। कोई महिला किस प्रकार के वस्त्रों को धारण करतीं हैं या करना चाहतीं हैं, वह उसका निजी विचार होना चाहिए। जिस तरह पुरुषों को धोती कुर्ता पहने के लिए बाध्य नहीं किया जाता है, उसी प्रकार से महिलाओं को भी किसी परिधान के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए।