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Saturday, October 26, 2024

गुरुद्वारा मोती नगर ने दिल्ली फ़तेह दिवस मनाया, बताया सिख संगत को इतिहास

नई दिल्ली /अदिति सिंह : गुरुद्वारा श्री गुरू सिंह सभा, मोती नगर द्वारा दिल्ली फ़तेह दिवस मनाया गया, जो कि 15 मार्च 1783 को सिख जरनैलों द्वारा की गई दिल्ली फ़तेह को समर्पित था। इस अवसर पर विशेष गुरमति समागम आयोजित किया गया। इस दौरान बीबी पुष्पिंदर कौर खालसा के ढाडी जत्थे ने ढाडी वारें गाकर लोगों के सामने दिल्ली फ़तेह दिवस का इतिहास पेश किया। इसके साथ ही भाई वाहेगुरु सिंह के कीर्तनी जत्थे ने गुरबाणी कीर्तन गायन किया। गुरुद्वारा साहिब के अध्यक्ष रविंदर सिंह बिट्टू और महासचिव राजा सिंह ने कार्यक्रम में सेवाएं देने वाली सभी शख्सियतों को सम्मानित करते हुए लोगों को नए नानकशाही वर्ष की शुरुआत की बधाई दी।
भाई बीबा सिंह खालसा स्कूल के मैनेजर डॉ. परमिंदर पाल सिंह ने श्रद्धालुओं को दिल्ली फ़तेह दिवस के इतिहास के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी।

—ढाडी जत्थे ने ढाडी वारें गाकर दिल्ली फ़तेह दिवस का इतिहास पेश किया
—दिल्ली की संगत सदैव बाबा बघेल सिंह की ऋणी रहेगी : परमिंदर पाल

डॉ. परमिंदर पाल सिंह ने कहा कि दिल्ली की संगत सदैव बाबा बघेल सिंह की ऋणी रहेगी। क्योंकि बाबा बघेल सिंह और उनके साथी सेनापतियों बाबा जस्सा सिंह अहलूवालिया, बाबा जस्सा सिंह रामगढ़िया, बाबा महा सिंह शुकरचक्किया और बाबा तारा सिंह घेबा ने दिल्ली पर फ़तेह प्राप्त करके लाल किले पर केसरी निशान फहराया था।लेकिन इन सिख जरनैलों ने गुरू स्थानों को चिन्हित और स्थापित करने के लिए अपने विजयी राज को कुर्बान कर दिया था। ऐसा उल्लेख कहीं और नहीं मिलता कि किसी सेना द्वारा जीते गए क्षेत्र को सेनापतियों ने अपने धार्मिक स्थल स्थापित करने के लिए छोड़ दिया हो। अतः मजबूरन यह कहना पड़ता है कि इतिहासकारों ने बाबा बघेल सिंह के साथ न्याय नहीं किया। अगर आज हम दिल्ली के ऐतिहासिक गुरुद्वारों के दर्शन कर रहे हैं तो उसके पीछे बाबा बघेल सिंह की सैन्य ताकत, राजनीतिक व धार्मिक सोच तथा कूटनीति का उनका ज्ञान महत्वपूर्ण था। जिसके चलते बाबा बघेल सिंह ने महज 9 महीने के अंदर ही दिल्ली के 7 ऐतिहासिक गुरुद्वारों के स्थानों को चिन्हित करके उन्हें स्थापित करवाया था। हालाँकि, इस सारी कवायद के बीच गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब (Gurdwara Rakabganj Sahib) की जगह पर गुरुद्वारा साहिब के निर्माण के लिए हुकूमत के साथ आम सहमति बनाने का काम सबसे कठिन था। इस अवसर पर बीबी पुष्पिंदर कौर खालसा के ढाडी जत्थे को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

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