—सिक्किम की आईसीएफएआई यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में बोले उपराष्ट्रपति
—उपराष्ट्रपति ने विश्वविद्यालयों और शिक्षा प्रदाताओं का किया आहवान
—शिक्षा प्रणाली का पुनर्मूल्यांकन करें और इसे अधिक मूल्य आधारित बनाएं
— मूल्यरहित शिक्षा, सच्ची शिक्षा नहीं है : वेंकैया नायडू
नई दिल्ली/ टीम डिजिटल : उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने आज विश्वविद्यालयों और शिक्षा प्रदाताओं का आह्वान किया कि वे शिक्षा प्रणाली का पुनर्मूल्यांकन करें और इसे अधिक मूल्य आधारित, समग्र तथा पूर्ण बनाएं। सिक्किम की आईसीएफएआई यूनिवर्सिटी के 13वें ई-दीक्षांत समारोह को आज उन्होंने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया। उपराष्ट्रपति ने शिक्षा प्रदाताओं से कहा कि वे हमारी समग्र वैदिक शिक्षा प्रणाली से प्रेरणा लें और नई शिक्षा नीति की परिकल्पना को समझें।
The Vice President virtually attends the 13th e-convocation of ICFAI University, Sikkim.
#ICFAISikkim pic.twitter.com/Z6kuuzmkDE
— Vice President of India (@VPSecretariat) November 26, 2020
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों को उद्धृत करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसी शिक्षा जो मूल्यों से रहित हो, वह सच्ची शिक्षा नहीं है। उन्होंने कहा,‘शिक्षा संस्थानों और विश्वविद्यालयों से यह उम्मीद की जाती है कि वे छात्रों का विकास ऐसे मनुष्य के रूप में करें, जो सिर्फ डिग्रीधारक नहीं, बल्कि संवेदनशील हों।’उन्होंने कहा कि हमने देखा है कि अक्सर धन प्राप्त करने की दौड़ में इस पहलू की उपेक्षा कर दी जाती है। जलवायु परिवर्तन का उदाहरण देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए जो समग्र समाधान सुझाए जाएं उनमें मूल्य आधारित शिक्षा और प्रकृति का सम्मान शामिल होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्राकृतिक आपदाओं की चुनौती से निपटने के लिए नये रक्षात्मक और नवाचार युक्त समाधान सुझाने के लिए हमें अपने इंजीनियरों और प्रौद्योगिकीविदोंको बेहतर क्षमताओं से लैस करना होगा। उन्होंने आगाह किया कि हालांकि किसी भी प्राकृतिक विपदा को मानवीय हस्तक्षेप से पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता, लेकिन हमें उसके प्रभाव को कम से कम करना है।
उपराष्ट्रपति ने इस बात को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारी प्राचीन व्यवस्था में मूल्यों पर हमेशा जोर दिया गया, हमारे वेदों और उपनिषदों में खुद अपने प्रति, अपने परिवार के प्रति, अपने समाज और प्रकृति के प्रति हमारे कर्तव्यों की ओर इंगित किया गया है। हमें प्रकृति के साथ पूरे सामंजस्य से रहना सिखाया गया है। किसी व्यक्ति के जीवन में प्रकृति और संस्कृति के महत्व को बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि छात्रों को प्रकृति से सीखना चाहिए और हमारी प्राचीन संस्कृति द्वारा सिखाए गए मूल्यों का अनुपालन करना चाहिए। नायडू ने गुरुकुल व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए कहा कि प्राचीन काल में हमारे यहां छात्र को हर दृष्टि से पूर्ण शिक्षा प्रदान की जाती थी और इसी वजह से उस समय हमें विश्व गुरु की उपाधि मिली थी।
भारत को विश्व गुरु का स्थान दिलाने का लक्ष्य
उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में इन्हीं आदर्शों का पालन करने और भारत को एक बार फिर से विश्व गुरु का स्थान दिलाने का लक्ष्य रखा गया है। नई शिक्षा नीति में परिकल्पितबदलावों की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इसमें शिक्षा के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाने की जगह एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की बात कही गई है। उन्होंने इसकी इस बात के लिए प्रशंसा की कि इसमें बहुविषयक प्रणाली पर ध्यान केन्द्रित किया गया है और अनुसंधान एवं नियमन व्यवस्था को एक नई दिशा देने का प्रयास किया गया है।
मूल्य आधारित शिक्षा वक्त की जरूरत
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल रखने वाली मूल्य आधारित शिक्षा वक्त की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमें ऐसे पेशेवरों की जरूरत है, जो न सिर्फ आधुनिकतम प्रौद्योगिकी का ज्ञान रखते हों, बल्कि समझदार और संवेदनशील भी हों। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा पेशेवरों के लिए एक दीर्घ और समृद्ध करियर सुनिश्चित करेगी, क्योंकि ऐसे पेशेवरों में संवेदनशीलता और प्रतिभा के साथ-साथ जीवन की प्रतिकूलताओं से संघर्ष करने के लिए जरूरी लचीलापन भी होगा।
चुनौतियों से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहने चाहिए
उपराष्ट्रपति ने छात्रों से कहा कि वे अपने अंदर आत्मविश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास करें, अपने लक्ष्य तय करें और पूरी ईमानदारी, अनुशासन तथा प्रतिबद्धता से काम कर इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश करें। उन्होंने कहा,’तेजी से बदल रही दुनिया में आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप मुद्दों पर गंभीरता से विचार करें और नई स्थितियों को जल्दी से जल्दी आत्मसात करें। आपको बेहद सक्रिय, भविष्य का आकलन करने वाला और चुनौतियों से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहने वाला होना चाहिए।’
उपराष्ट्रपति ने विश्वविद्यालयों से कहा कि वे छात्रों को ऐसी शिक्षा दें कि वह जीवन की वास्तविक चुनौतियों से प्रभावी तौर पर निपट सकें। उपराष्ट्रपति ने कोविड-19 महामारी का उदाहरण दिया, जिसने सभी देशों को अचानक अपनी चपेट में ले लिया। उन्होंने कहा, ‘हमें इस महामारी से सबक लेना है और भविष्य में इस तरह के खतरों से निपटने के समाधान तलाशने के लिए मिलकर काम करना है।’
छात्रों के आगे कोविड महामारी एक पहली बड़ी चुनौती
उपराष्ट्रपति नायडू ने छात्रों से कहा कि कोविड महामारी के रूप में उनके सामने यह एक पहली बड़ी चुनौती आई है। उन्होंने कहा कि छात्रों को इसे एक संकट के रूप में लेने की जगह प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर इसे अवसर के रूप में बदलने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘आपमें से जो भी रोजगार प्रदाता बनना चाहते हैं, उनके लिए इस समय भारत से बेहतर कोई देश नहीं है, जहां वे अपने व्यवसाय संबंधी इरादों को लागू कर सकते हैं, क्योंकि इस समय हम अपने प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर भारत परिकल्पना को व्यवहार में ला रहे हैं। उपराष्ट्रपति ने छात्रों से कहा कि वे देश हित को सर्वोपरि रखें और सामाजिक तथा अन्य बुराइयों को मिटाने के लिए आगे आएं, क्योंकि ये विभिन्न मोर्चों पर देश की प्रगति और विकास को बाधित करती हैं।