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Sunday, November 16, 2025

छुपा चाणक्य : बिहार में बीजेपी की जीत के असली शिल्पकार विनोद तावड़े

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नई दिल्ली /सुरेश गांधी : बिहार का 2025 विधानसभा चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। चेहरे बदले, समीकरण बदले, राजनीतिक हवा बदली—लेकिन एक नाम ऐसा था जो पूरे चुनावी परिदृश्य की धुरी बनकर उभरा और फिर भी सामने नहीं आया। यह नाम है—विनोद तावड़े। महाराष्ट्र की राजनीति में संगठनकर्ता के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बना चुके तावड़े ने बिहार में भी वही कर दिखाया, जिसके लिए उन्हें बीजेपी का ‘मास्टर मैनेजर’ कहा जाता है। उन्होंने बिहार के चुनाव को न केवल समझा, बल्कि उसे जीत की दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बीजेपी की जीत की इस विराट पटकथा के पीछे तावड़े की महीन रणनीति, गहरी समझ, और सबसे बढ़कर—कैमरे से दूर रहकर काम करने की उनकी शैली—सबसे बड़ा कारण रही।

—कैमरे से दूर, रणनीति के केंद्र में… तावड़े की खामोश रणनीति
—बिहार में एनडीए की अभूतपूर्व विजय की जमीन तैयार की

बिहार की राजनीतिक गलियों में जहां नेता बयानबाज़ियों से माहौल बनाने की कोशिश में जुटे थे, वहीं तावड़े जमीन पर चुपचाप नेटवर्क बुन रहे थे। कई बार पटना में उनसे मुलाकात के दौरान यह बेहद स्पष्ट दिखा कि तावड़े राजनीतिक ग्लैमर से दूरी बनाए रखते हैं। वे बड़े मंचों पर भाषण देने वाले नेता नहीं, बल्कि रणनीति को ज़मीन पर उतारने वाले तकनीकी दिमाग हैं। तावड़े की बैठकों में अतिरिक्त शोर नहीं होता, लेकिन हर बैठक के बाद समीकरण बदलते नज़र आते थे। यही विशेषता उन्हें बिहार बीजेपी का “छुपा चाणक्य” बनाती है।

एनडीए के सभी घटक दलों को एक मंच पर लाना—सबसे बड़ी उपलब्धि

बिहार की राजनीति में गठबंधन प्रबंधन किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं। जदयू की अपनी शर्तें होती हैं, हम (HAM), वीआईपी जैसे दलों की अपनी अपेक्षाएं, और दिल्ली की अपनी रणनीतिक प्राथमिकताएं। इन सबके बीच खामोश से दिखने वाले तावड़े ही वह कड़ी बने, जिसने बिहार और दिल्ली दोनों को एक सूत्र में बांधे रखा।

सीट शेयरिंग

ऐतिहासिक रूप से बिहार में सीट शेयरिंग तनाव का विषय रहा है। लेकिन इस बार बातचीत न केवल सहज रही, बल्कि पार्टनर भी परिणाम से संतुष्ट दिखे। तावड़े की इस प्रस्तुति ने चुनाव की आधी लड़ाई उसी दिन जीत ली थी।

तालमेल की राजनीति

दिल्ली में बैठा नेतृत्व तभी प्रभावी होता है जब राज्य में उसका समन्वयकर्ता मजबूत हो। तावड़े ने यह भूमिका सिर्फ निभाई नहीं, उसे एक नए स्तर पर पहुंचाया।

संगठन को जमीन से जोड़ना—तावड़े का सबसे बड़ा हथियार

बिहार की राजनीति सिर्फ बड़े नेताओं के दम पर नहीं चलती। गांव-देहात में बूथ जितना मजबूत होता है, चुनाव उतना ही आपके पक्ष में झुकता है। तावड़े ने बिहार बीजेपी की बूथ इकाइयों को पुनर्गठित किया, प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए, और संगठन को ‘मिशन मोड’ में काम करने के लिए तैयार किया।

माइक्रो-मैनेजमेंट

यह उनका पसंदीदा तरीका है। किस इलाके में कौन कार्यकर्ता प्रभावी है? किस जातीय समूह पर किस प्रभावशाली चेहरे का असर होगा? किस विधानसभा में किस समय कौन सी गतिविधि करनी है? तावड़े ने इन सवालों के जवाब पहले ही तैयार कर लिए थे।

बिहार की सामाजिक बारीकियों को समझने की उनकी क्षमता—सबसे बड़ा राज़

महाराष्ट्र से ताल्लुक होने के बावजूद तावड़े ने बिहार की जातीय संरचना, गांवों का व्यवहार, नेताओं की निजी प्रमुखताएं, और जनता की अपेक्षाओं को जिस गहराई से समझा, वह किसी भी स्थानीय रणनीतिकार से कम नहीं था। वे अक्सर कहते हैं— “राजनीति आंकड़ों से नहीं, मनोविज्ञान से जीती जाती है।” और यही मनोविज्ञान पढ़ने की कला उन्हें भीड़ से अलग करती है।

चुनाव प्रचार की टाइमिंग और नैरेटिव—दोनों पर तावड़े की गहरी पकड़

यह तावड़े की ही रणनीति थी कि प्रचार के मुख्य चेहरे कहाँ और कब उतारे जाएँ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व की रैलियों का कैलेंडर जिस सटीकता से तैयार हुआ, उसने चुनाव को निर्णायक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई।

नैरेटिव सेट करना

बिहार चुनाव में दो बड़े नैरेटिव उभरे— 1. “विकास और सुशासन का मॉडल” 2. “महागठबंधन की अस्थिरता बनाम एनडीए की विश्वसनीयता.” इस नैरेटिव को जनता के बीच पहुँचाने का बीज तावड़े ने ही बोया था।

कैमरे से दूरी, लेकिन असर सबसे ज्यादा

तावड़े इस बात को समझते हैं कि सुर्खियाँ अक्सर रणनीति को नुकसान पहुंचाती हैं। यही कारण है कि वे कभी कैमरे पर नहीं दिखते, लेकिन हर महत्वपूर्ण निर्णय में उनकी भूमिका दिखती है। नेताओं की प्रेस कांफ्रेंस भले ही मीडिया के लिए हो, लेकिन उसके पीछे की रणनीति—तावड़े की कलम से निकली होती है।

नतीजा—बिहार में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत

जब 2025 के नतीजे आए तो सभी की नज़रें उन चेहरों पर थीं जो मंच पर जीत का जश्न मना रहे थे। लेकिन राजनीतिक हलकों में एक नाम बार-बार फुसफुसाहटों में आया— विनोद तावड़े ने कर दिखाया। उनकी खामोश मेहनत ने बीजेपी को मजबूत बनाया, और एनडीए को सत्ता के केंद्र में पहुंचा दिया।

‘तावड़े मॉडल’—शोर नहीं, सटीक रणनीति

बिहार की इस जीत ने साबित कर दिया कि राजनीति सिर्फ भाषणों और रैलियों से नहीं जीती जाती। रणनीति, समन्वय, और संगठन की मजबूत पकड़—इन तीन स्तंभों पर तावड़े ने जो मॉडल लागू किया, उसने बीजेपी को नई ऊर्जा और नई दिशा दी है। आज बिहार की जीत की चर्चा कहीं भी हो, यह मानना पड़ेगा कि— विनोद तावड़े वह नाम हैं जिन्होंने खामोश रहकर इतिहास रचा।

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