29.1 C
New Delhi
Tuesday, October 14, 2025

शिरोमणि अकाली दल की पंजाब में करारी हार से दुनियाभर के सिखों में बेचैनी

-Advertisement-
-Advertisement-
Join whatsapp channel Join Now
Join Telegram Group Join Now

नई दिल्ली /अदिति सिंह : पंजाब के विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (बादल) का आधार सिमटने के बाद पंजाब के बाहर बैठे सिक्ख बेचैन हो गए हैं। उन्हें सिक्खों के हितों का डर सता रहा है।क्योंकि, पंजाब के बाहर का सिख शिरोमणि अकाली दल को पंथक पार्टी मानता है, और पंथ से संबंधित मामलों के लिए लड़ाई लडऩे के लिए अकाली दल को सारे अधिकार सिखों की तरफ से मिले हुए हैं। इसलिए अब दिल्ली के सिक्खों ने अकाली दल का विकल्प तलाशने के लिए कवायद तेज कर दी है। इसको लेकर बुद्विजीवी कांफ्रेंस एवं बैठकों का सिलसिला श्ुारू कर दिया गया है। शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना एवं जागो पार्टी के अध्यक्ष मंजीत सिंह जीके ने मिलकर पंथक दलों को एकजुट करने का काम तेज कर दिया है। सोमवार को मंजीत सिंह जीके ने सरना के समक्ष दिल्ली के पंथक दलों का सांझा संगठन बनाने का विकल्प पेश किया। इस बावत एक पत्र भी सौंपा।

सिखों ने पेश किया पंथक दलों का सांझा संगठन बनाने का विकल्प
-मूल अकाली दल से बादल परिवार को अलग कर फिर से खड़ा करने की कवायद
-अकाली दल का विकल्प तलाशने के लिए एकजुट होने लगे हैं सिख बुद्विजीवी
-सिख परेशान, 100 साल पुरानी पार्टी का जनाधार कैसे घट रहा है

पत्रकारों से बातचीत करते हुए सरना ने बताया कि अकाली दल का जनाधार तेजी से घट रहा है। बादल परिवार ने अकाली दल को गंभीर संकट में डाल दिया है । 20 फरवरी को हुए पंजाब विधानसभा चुनाव के परिणाम यही बता रहे हैं। यह गंभीर चिंताजनक बात है। उन्होंने कहा कि शिअद के घटते प्रभाव के कारण सिखों ने पंजाब, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीतिक आवाज खो दी है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष हरविंदर सिंह सरना ने कहा कि राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं और हितों के साथ कोई भी राजनीतिक दल सिख और पंथक मुद्दों को ईमानदारी से उठा नहीं सकता। पंजाब विधानसभा चुनाव के परिणाम स्पष्ट कहते हैं कि पंजाब या पंजाब के बाहर रह रहे सिखों को मिलकर मूल शिरोमणि अकाली दल को फिर से जीवित करना कहना होगा। लिहाजा, मूल शिरोमणि अकाली दल से बादल परिवार को अलग कर फिर से खड़ा करना होगा। शिरोमणि अकाली दल पूरी तरह से पंथ के लिए प्रतिबद्ध है न कि सत्ता की राजनीति के लिए। उन्होंने कहा कि सिख राजनीतिक आवाज के अभाव में बड़ी ताकतों के शोषण का शिकार हो सकती है। ये बड़ी ताकतें अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकती हैं।

शिरोमणि अकाली दल की पंजाब में करारी हार से दुनियाभर के सिखों में बेचैनी
सरना ने कहा कि समझौता कर चुके एक परिवार ने पहले ही पंजाब और उसके बाहर पंथक हितों को भारी नुकसान पहुंचाया है। लिहाजा, शिअद के घटते प्रभाव के कारण सिख जल्द ही राष्ट्रीय स्तर की राजनीति से दूर हो सकते हैं। साम्र विचारकों की ओर से सरना ने गुरु पंथ से अपील की कि वह नए पंथक प्रेरणों के साथ मिलकर पंथक कारणों को आगे बढ़ाने के लिए शिरोमणि अकाली दल को पुनर्जीवित करने की दिशा में तेजी से प्रयास करें।
सरना ने कहा कि शिरोमणि अकाली दल की हुई करारी हार के बाद सिख बुद्धिजीवी चिंतित हैं । सभी परेशान हैं कि 100 साल से भी ज्यादा पुरानी पार्टी का जनाधार कैसे घट रहा है । इसको लेकर प्रसिद्ध सिख धार्मिक विशेषज्ञ, इतिहासकार, बुद्धिजीवी और पंथक नेताओं की बैठक हुई। बैठक में सामूहिक प्रयासों से शिरोमणि अकाली दल को फिर उसी ऊचाईयों पर ले जाने का आह्वान किया गया। इस मौके पर प्रो. पृथ्वीपाल सिंह कपूर, डा. एसपी सिंह , प्रो. गुरतेज सिंह, डा. गुरदर्शन सिंह ढिल्लों, एसजीपीसी सदस्य बीबी किरणजोत कौर, एस बीर दविंदर सिंह , डा. स्वर्ण सिंह सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे ।

पंथ की एकता के लिए पहल करनी चाहिए : मंजीत सिंह

जागो पार्टी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने कहा कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद पंजाब के हितों के लिए राज्यसभा में बोलने का रास्ता भी बंद हो गया है। आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा के लिए गैर-पंजाबी और पंजाब के हितों के लिए उदासीन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इसलिए आज पंथक हलकों में पंजाब और सिखों के उज्ज्वल भविष्य के लिए सभी पंथक दलों को एक साथ लाने की जरूरत महसूस की जा रही है। पंथ और पंजाब के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए जागो पार्टी परिवार के साथ अतीत में रचनात्मक चर्चा की है। जिसमें यह निर्णय लिया गया कि जागो पार्टी को इस मुद्दे पर पंथ की एकता के लिए पहल करनी चाहिए। जीके ने कहा कि पंथ की भलाई के लिए शिरोमणि अकाली दल के अस्तित्व को मजबूती से बनाए रखना हम सभी की प्राथमिक जिम्मेदारी है। अकाली दल उस अत्याचारी ब्रिटिश शासन के दौरान पैदा हुआ था, जिसने 1857 के गदर और स्वतंत्रता की कई अन्य आवाजों को आसानी से दबा दिया था। बड़ी संख्या में पंजाब से बाहर रहने वाले सिखों के हितों की रक्षा के लिए भी इस पंथक एकता की आवश्यकता है। केंद्र और राज्यों में विभिन्न दलों की सरकारों के अस्तित्व के कारण भी सभी पंथक नेताओं को सरकारों पर वैचारिक दबाव बनाने के लिए इस दबाव समूह में शामिल रहना आवश्यक है ताकि सभी को साथ लेकर सिख मुद्दों पर आम सहमति बन सके।

Related Articles

Delhi epaper

Prayagraj epaper

Kurukshetra epaper

-Advertisement-

Latest Articles