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Wednesday, April 30, 2025

यौन उत्पीड़न : इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के फैसले पर छिडी बहस, भड़की केंद्रीय मंत्री

नई दिल्ली /अदिति सिंह। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश राम मनोहर नारायण मिश्रा के एक फैसले ने देशभर में नई बहस छेड दी है। न्यायाधीश ने दुष्कर्म के प्रयास के एक मामले में अजीबोगरीब फैसला देते हुए कहा कि किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का मामला नहीं बनता। सोमवार को ने ये फैसला सुनाते हुए दो आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं। इस फैसले पर खुद केंद्र सरकार हैरान है। कई राजनीतिक दलों ने इस फैसले पर आपत्ति जताई है। खुद केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी (Union Minister Annapurna Devi) भडक उठी हैं।

– न्यायालय के फैसले से पूरी तरह असहमत हैं SC इस मामले में हस्तक्षेप करे
—कई राजनीतिक दलों के सांसदों की ‘सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग
—सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने सीजेआई को लिखा पत्र,कहा—जज को अयोग्य ठहराया जाए
—स्वाती मालीवाल,सीपीआई महासचिव डी राजा ने भी बताया शर्मनाक

केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने शुक्रवार को कहा कि वह दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास की परिभाषा पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले से पूरी तरह असहमत हैं और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। इस हफ्ते की शुरुआत में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि केवल पीड़िता के स्तनों को पकड़ना और पायजामा की डोरी तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास नहीं माना जाता, बल्कि यह किसी महिला के खिलाफ हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करने के दायरे में आता है, जिसका उद्देश्य उसे निर्वस्त्र करना या नग्न होने के लिए मजबूर करना है।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री देवी (Union Minister Annapurna Devi) ने कहा, ‘मैं इस फैसले के पूरी तरह खिलाफ हूं और सर्वोच्च न्यायालय को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। सभ्य समाज में इस तरह के फैसले के लिए कोई जगह नहीं है।’ उन्होंने फैसले के व्यापक निहितार्थों पर भी चिंता व्यक्त की और चेतावनी दी कि इससे समाज में गलत संदेश जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘कहीं न कहीं इसका समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और हम इस मामले पर आगे चर्चा करेंगे।’
आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल (Swati Maliwal, Member of Parliament) ने भी इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे शर्मनाक और बिल्कुल गलत बताया। उन्होंने इस तरह के फैसले से समाज में जाने वाले संदेश पर सवाल उठाया, खासकर बच्चों के खिलाफ अपराधों के संबंध में। उन्होंने कहा, ‘यह बेहद शर्मनाक और बिल्कुल गलत है। वे समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं? कि एक छोटी लड़की के साथ इस तरह के जघन्य कृत्य किए जा सकते हैं और फिर भी इसे दुष्कर्म नहीं माना जाएगा?’ आप सांसद ने सुप्रीम कोर्ट से तुरंत हस्तक्षेप करने और ऐसी न्यायिक व्याख्याओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में बिना देरी किए हस्तक्षेप करना चाहिए और सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।’
वहीं सीपीआई महासचिव डी राजा (CPI general secretary D Raja) ने भी यौन हिंसा पर न्यायाधीश की टिप्पणी को भयावह बताया है। उन्होंने गुरुवार को एक्स पर एक पोस्ट में लिखा- ‘स्तनों को पकड़ना या पायजामे का नाड़ा तोड़ना ‘दुष्कर्म का प्रयास’ नहीं है? यह यौन हिंसा को महत्वहीन बनाता है और हमारे संस्थानों पर पितृसत्ता की कड़ी पकड़ को दर्शाता है। कानून को पीड़ितों के आघात को प्राथमिकता देनी चाहिए, न कि उसे कमतर आंकना चाहिए’। लोग न्यायपालिका को आखिरी उम्मीद के रूप में देखते हैं और इस तरह का आचरण न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाता है। शर्मनाक!
इस मामले में शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी (Shiv Sena MP Priyanka Chaturvedi) ने सीजेआई संजीव खन्ना को लिखा, मैं अनुरोध करती हूं कि जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा (इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज) को इस तरह का गलत फैसला सुनाने के लिए अयोग्य ठहराया जाए। इसके अलावा, लड़की और उसके परिवार को न्याय दिलाने के लिए मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाना चाहिए। अंत में, भविष्य में इस तरह के असंवेदनशील फैसलों को रोकने के लिए सभी स्तरों पर जजों के लिए समय-समय पर संवेदनशीलता प्रशिक्षण आयोजित किया जाना चाहिए। मैं आपसे इसके लिए आवश्यक कार्रवाई करने का आग्रह करती हूं’।

क्या है पूरा मामला?

बता दें कि, यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज में 11 वर्षीय लड़की से जुड़ा है, जिस पर 2021 में दो आरोपियों ने हमला किया था। इस हमले के दौरान आरोपियों ने पीड़िता के स्तनों को पकड़ा, उसके पायजामे की डोरी खींची और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया। हालांकि इस दौरान राहगीरों के हस्तक्षेप करने पर हमलावर मौके से भाग गए।

हाईकोर्ट के इस फैसले से इम्पैक्ट पड़ेगा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले का बडा प्रभाव पडेगा। सुप्रीम कोर्ट के 3 एडवोकेट अश्विनी दुबे, आशीष पांडे और एपी सिंह के मुताबिक यह फैसला भले ही कानून के तहत सुनाया गया है, लेकिन इसका व्यापक प्रभाव समाज में महिलाओं की सुरक्षा और न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास पर पड़ सकता है।
कोर्ट ने कहा कि किसी लड़की के निजी अंगो को पकड़ना, नाड़ा तोड़ना और उसे घसीटने की कोशिश आईपीसी की धारा 376 (रेप) या रेप के प्रयास के तहत नहीं आता, बल्कि यह धारा 354B (महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला) और पॉक्सो एक्ट की अन्य धाराओं के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न माना जाएगा। इससे निचली अदालतों में ऐसे मामलों में आरोप तय करने का तरीका बदल सकता है।
रेप या रेप के प्रयास की तुलना में यौन उत्पीड़न की धाराओं में सजा कम कठोर हो सकती है। इससे अपराधियों को कम सजा मिलने की संभावना बढ़ सकती है, जो पीड़ितों के लिए न्याय की भावना को कमजोर कर सकता है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रेप के प्रयास का आरोप साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को यह दिखाना होगा कि अपराधी की हरकतें ‘तैयारी’ से आगे बढ़कर ‘प्रयास’ की श्रेणी में थीं। यह सख्त कसौटी भविष्य में ऐसे मामलों में दोषसिद्धि को मुश्किल बना सकती है।
अगर अपराधियों को लगे कि ऐसी घटनाओं में उन्हें रेप जैसे गंभीर आरोपों से बचने का मौका मिल सकता है, तो यह यौन अपराधों को बढ़ावा दे सकता है।

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