–अकाली दल के कई दिग्गज नेता नई पार्टी से जुडऩे को तैयार
–6 महीने बाद होगा दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी का चुनाव
– अकाली दल -भाजपा के बीच गठबंधन तोडऩे का नेताओं को है मलाल
–दिल्ली में अकाली कोटे से भाजपा के हैं 5 पार्षद, टूटना तय
-ढींढसा की पार्टी को अंदरखाते मिलेगा भाजपा का समर्थन :सूत्र
-मंजीत सिंह जीके एवं ढींढसा मिलकर दिल्ली में करेंगे खेल
नई दिल्ली /टीम डिजिटल : 1920 में बनी देश की सबसे पुरानी पार्टी शिरोमणि अकाली दल आज दो फाड़ हो गई। अकाली दल के कद्दावर नेता व राज्यसभा सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा ने आज बादल परिवार की अगुवाई वाले शिअद के समानांतर शिरोमणि अकाली दल (डेमोके्रटिक) बनाने का ऐलान कर दिया। यह पार्टी धार्मिक और राजनीतिक दोनों चुनाव लड़ेगी। इसलिए पंजाब में इसका असर तो होगा ही, दिल्ली की सिख सियासत में भी बड़ा बदलाव होगा। इसकी शुरुआत दिल्ली में 6 महीने बाद होने जा रहे दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव से होगी। यह उनकी पार्टी का पहली परीक्षा भी होगी। इसके बाद एसजीपीसी और फाइनल चुनाव 2022 में पंजाब का विधानसभा होगा।
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ढींढसा के द्वारा नया अकाली दल बनाने के बाद दिल्ली की बादल ईकाई में घुटन महसूस कर रहे कई बड़े नेता ढींढसा के साथ जाने को तैयार बैठे हैं। खासकर भाजपा के समर्थक वाले दिल्ली कमेटी सदस्य जिनकी राजनीतिक महात्वाकांक्षा भविष्य में विधायक एवं पार्षद बनने की है वह ढींढसा खेमे से जुड़ सकते हैं। बादल दल से जुड़े दिल्ली के करीब एक दर्जन बड़े नेता पार्टी छोड़ कर नए अकाली दल का साथ पकड़ सकते हैं। इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जो हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में अकाली दल के गठबंधन तोडऩे के चलते चुनाव नहीं लड़ सके थे। साथ ही दिल्ली के अकाली नेताअेां केा इस बात का एहसास भी है कि दिल्ली में भाजपा का समर्थन बादलों के साथ अब नहीं है। इसलिए दिल्ली कमेटी के चुनाव से पहले ढींढसा के द्वारा पार्टी बनाना बादल परिवार के लिए बड़ी चुनौती से कम नहीं है। ढींढसा को पूरा समर्थन देने का ऐलान मंजीत सिंह जीके की अगुवाई वाली पार्टी जागो पार्टी ने भी किया है। इससे साफ है कि मंजीत सिंह जीके एवं ढींढसा मिलकर दिल्ली में बादल दल की भाजपा से दूरी बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे।
सूत्रों की माने तो ढींढसा को भारतीय जनता पार्टी की तरफ से अंदर खाते समर्थन मिला हुआ है। भाजपा पिछले एक साल से ढींढसा को पार्टी में शामिल कराना चाह रही थी, लेकिन ढींढसा कुछ अलग ही राह पर चलना चाह रहे थे। हालांकि उनका भी भाजपा को पूरा समर्थन मिला हुआ है। इसलिए 2022 में पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा बादल परिवार वाली पार्टी को छोड़ अगर ढींढसा की अगुवाई वाले दल से गठबंधन कर ले तो कोई बड़ी बात नहीं है।