— प्रजा फाउंडेशन का दावा, जारी की निगम में पार्षदों की कार्यप्रणाली पर अपनी रिपोर्ट
—पूदिन निगम की पार्षद परवीन ने पूरे कार्यकाल (2017 से अब तक) एक भी मुद्दा नहीं उठाया
—दिल्ली नगर निगम के पार्षदों के प्रदर्शन में उपस्थिति के सन्दर्भ में गिरावट आई
नई दिल्ली/ टीम डिजिटल: दिल्ली नगर निगम के पार्षदों के वर्तमान कार्यकाल (2017-22) के लिए अपना तीसरा रिपोर्ट कार्ड जारी किया, जो दिल्ली में स्थानीय निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के कार्य प्रदर्शन और सुधार के क्षेत्रों पर विस्तार से प्रकाश डालता है। स्थानीय शासन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिकाओं में से एक पार्षदों द्वारा निभाई जाती है, जो शहरों में विभिन्न वार्डों में जनप्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं । कोविड -19 महामारी की वर्तमान स्थिति में, शहरों में स्थानीय शासन की भूमिका और उसका महत्व और अधिक स्पष्ट हुआ है। कोविड -19 महामारी में, जमीनी स्तर पर राहत और योगदान के मामले में, भारत के कई शहरों में पार्षद सबसे आगे रहे है। परन्तु दिल्ली में स्थानीय शासन की वर्तमान संरचना को देखते हुए, पार्षदों के जमीनी स्थिति के सबसे करीब होने और अपने घटकों (वार्डो) की जरूरतों का सबसे अधिक ज्ञान होने के बावजूद वे शहर के निर्णय प्रणाली के हिस्सेदार नहीं रह सके। यह दावा प्रजा फाउंडेशन ने एक रिसर्च के आधार पर किया है। संस्था के संस्थापक और प्रबंधक ट्रस्टी निताई मेहता ने कहा कि हालांकि महामारी का अनुभव हमारे पार्षदों को सशक्तिकरण और अधिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में सम्मिलित होने की आवश्यकता को दर्शाता है।
यह इस तथ्य की ओर भी संकेत करता है कि पार्षदों को, संकट और अन्य दिनों के दौरान, अपने घटकों (वार्डों) की जरूरतों का प्रतिनिधित्व करने के लिए जिम्मेदारियों का अत्यधिक बोझ है। इसलिए, प्रभावी विवेचना के माध्यम से प्रशासन को जवाबदेह ठहराने की उनकी मौजूदा जिम्मेदारियों के आधार पर, हमारे निर्वाचित जनप्रतिनिधि के कार्य प्रदर्शन की निगरानी करना महत्वपूर्ण है । इस वर्ष से, प्रजा ने अपने मैट्रिक्स को रूपांतरित किया है, जिसमें मुख्य रूप से ध्यान पार्षदों के विचार-विमर्श के कार्य प्रदर्शन पर होगा, चूंकि विचार-विमर्श कर्तव्य निर्वाचित प्रतिनिधि की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है । आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2019-20 (केंद्र और राज्य में)एक चुनावी वर्ष होने के कारण, पार्षदों के कार्य प्रदर्शन में गिरावट आई है। पार्षदों के प्रदर्शन में उपस्थिति के सन्दर्भ में उ.दि.न.नि.में 2017-18 में 75.32% से 2019-20 में 66.38%, द.दि.न.नि. में 75.10% से 66.61% और पू.दि.न.नि.में 81.83% से 71.27% की गिरावट दर्ज़ की गई है । सबसे अधिक गिरावट पू.दि.न.नि. में देखी जा सकती है”, प्रजा फाउंडेशन के निदेशक मिलिंद म्हस्के ने कहा।.
2019-20 में, 7 पार्षदों ने एक भी मुद्दा नहीं उठाया
आईसी सेंटर फॉर गवर्नेंस के निदेशक एम.सी. वर्मा ने दावा किया कि पार्षदों द्वारा उठाए गए कुल सवाल 2017-18 में 18,128 से 29% गिरकर 2019-20 में 12,879 हो गए । उठाए गए सवालों की संख्या में सबसे ज्यादा गिरावट उ.दि.न.नि. में 35% दिखाई दी, जिसके बाद द.दि.न.नि. (27% गिरावट) और पू.दि.न.नि. (16% गिरावट) है। लोकतंत्र और पार्टी राजनीति के वर्तमान ढांचे में हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि पार्षद चुनावों के लिए पार्टी प्रचार को प्राथमिकता देने की बजाय, स्थानीय सरकार की नियमित कार्यप्रणाली और विचार-विमर्श पर ध्यान केंद्रित करें। 2019-20 में, 7 पार्षदों ने एक भी मुद्दा नहीं उठाया है, जिनमें से परवीन (पू.दि.न.नि.) ने पूरे कार्यकाल (2017 से) में एक भी मुद्दा नहीं उठाया। यह विचार-विमर्श प्रक्रिया के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठता है”, म्हस्के ने कहा।.
अनिवार्य कर्तव्यों वाले मुददे को नहीं उठाते हैं पार्षद
मेहता ने दावा किया कि पार्षद उन मुद्दों को उठाने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं जो एमसीडी अधिनियम के तहत अनिवार्य कर्तव्यों के अंतर्गत आते हैं। उ.दि.न.नि. में 55 पार्षद (54%), द.दि.न.नि. में 56 पार्षद (54%) और पू.दि.न.नि. में 37 पार्षद (62%) ने अपने अनिवार्य कर्तव्यों के तहत प्रश्न पूछने में 50% से कम स्कोर किया। पार्षदों द्वारा उठाए गए मुद्दे नागरिकों द्वारा अपने निर्वाचन क्षेत्रों में की गई शिकायतों से मेल नहीं रखते- उ.दि.न.नि. में 74 (73%), द.दि.न.नि. में 77 (75%) और पू.दि.न.नि. में 44 (73%) पार्षदों ने नागरिकों द्वारा की गई शिकायतों से संबंधित मुद्दों को उठाने में कम स्कोर (50% से कम) प्राप्त किया।
पार्षदों ने अपने समर्थकों के हितों के लिए जरूर बोला
मेहता ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि,पार्षद, अपने समर्थकों के हितों के लिए बोलकर, सरकार में जन-प्रतिनिधियों के रूप में कार्य करते हैं। यह शहर के कार्यप्रणाली में उनकी भूमिका को बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। यह हमारी आशा है कि दिल्ली में पार्षद अपना ध्यान उन कर्तव्यों और जिम्मेदारियों पर केंद्रित करें जो उन्हें सौंपी गयी हैं । हमें यह भी आशा है कि यह रिपोर्ट कार्ड उन्हें अपनी प्रवीणता और सुधार के क्षेत्रों को समझने, और आने वाले वर्षों में उनके कार्य प्रदर्शन को बेहतर करने में मदद करेगा”।