उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में मंगलवार को प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई की। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद, वहां 8 मकानों को बुलडोजर की मदद से ढहा दिया गया। इस कार्रवाई से वे लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं, जिन्होंने अपनी मकान और जमीन को पाकर कई सालों से जीवन यापन किया था।
कुशीनगर के भूलूही मदारी पट्टी गांव का पूरा मामला
भूलूही मदारी पट्टी गांव कुशीनगर के कसया तहसील में है। यह गांव कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट की बाउंड्री के अंदर आता है। एयरपोर्ट के विस्तार के चलते सरकार ने वहां से जमीन अधिग्रहित की थी। 2020 में, सरकार ने 30.14 ऐसे जमीन पर फैले 547 किसानों से भूमि ले ली थी। सोची-समझी योजना के तहत, एयरपोर्ट का विस्तार करने के लिए यह कदम उठाया गया था। लेकिन, इन किसान परिवारों में से 8 ने इस जमीन के अधिकार को लेकर अदालत का रुख किया। इन परिवारों ने कोर्ट में याचिका दी कि उनके मकान और जमीन का कोई मुआवजा नहीं मिला है।
रही सही बात, तो हाईकोर्ट ने हाल ही में उनके पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि सरकार इन परिवारों को उचित मुआवजा दे और उन्हें जल्द से जल्द अपने घर से निकाला जाए। लेकिन, मुआवज़े की उम्मीद लेकर ये परिवार कुछ समय तक सांस ले रहे थे।
अदालत का फैसला और प्रशासन की सख्त कार्रवाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद, मंगलवार को प्रशासन ने कब्जे वाली जमीन पर बुलडोजर चलवाया। मकान खाली करने का नोटिस इन परिवारों को कई दिनों पहले ही दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि 48 से 72 घंटे के अंदर घर खाली कर दें। लेकिन, जैसे ही समय सीमा पूरी हुई, प्रशासन ने भारी पुलिसबल के साथ बुलडोजर चलाकर मकान तोड़ने का काम शुरू किया।
यह देखकर प्रभावित परिवार काफी रो पड़े। महिलाएं अपने बच्चों को संभालते-संभालते बहुत आंसू बहा रही थीं। बच्चे भी अपने घर का सामान देखकर उदास हो गए थे। इन परिवारों का कहना है कि न तो सरकार ने उन्हें कोई मुआवजा दिया है, और न ही जमीन का कोई इंतजाम किया है। बारिश के मौसम में वे अब कहां जाएंगे, यह उनके लिए बड़ी समस्या बन गई है।
पीड़ित परिवारों की व्यथा और उनका रो-रोकर बुरा हाल
इन्होंने बताया कि हमें अदालत में केस लड़ने का मौका मिला था, लेकिन अब 24 घंटे से भी कम समय में ही घर तोड़ने का काम शुरू कर दिया गया। घरों से सामान निकालकर सड़क पर फेंक दिया गया। इन परिवारों का कहना है कि यह जमीन उनके पुरखों की है। कई पीढ़ियों से यही लोग इस जमीन पर रहते आए हैं। उन्हें देखा-भाला और सम्मानजनक जीवन मिल रहा था। लेकिन, सरकार ने इसे अवैध या बंजर बता कर उनके घर को गिराने का फैसला लिया है।
एक महिला ने फूट-फूट कर रोते हुए कहा कि अब उनके पास खाने-पीने का सामान भी नहीं बचा है। बच्चे बहुत परेशान हैं। उन लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि आगे क्या करें। दूसरी ओर, एक आदमी का कहना है कि अगर यह घर अवैध निर्माण या बंजर जमीन पर बने थे तो उन्हें तो मुआवजा मिलना चाहिए। लेकिन, सरकार ने न तो मुआवजा दिया है और न ही कोई नई जमीन का प्रबंध किया है।
क्या सरकार कर रही है इस मुद्दे का समाधान?
यह सवाल सबके जहन में है कि जब कोर्ट ने इन परिवारों को न्याय दिलाने का आदेश दिया है, तो सरकार ने क्यों इतनी जल्दी मकान तोड़ने का कदम उठाया? क्या पीड़ित परिवारों को राहत देने के लिए कोई योजना बनाई गई है? अभी तक इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल सकी है। सरकार का कहना है कि एयरपोर्ट का विस्तार जरूरी है और विकास के नाम पर किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा।
लेकिन, प्रभावित परिवारों की बात अलग है। उनका कहना है कि बिना मुआवजे के और उनकी सहमति के बिना यह कार्रवाई अनुचित है। सरकार को चाहिए कि वह इन परिवारों का उचित मुआवजा और नई जमीन का प्रबंध तुरंत करे ताकि ये लोग वापस अपने जीवन की शुरुआत कर सकें।
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