—श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े में शुरू हुआ संन्यास दीक्षा कार्यक्रम
हरिद्वार /टीम डिजिटल : कुंभ मेलों में हर वर्ष विभिन्न अखाडों में पुरुष सन्यासियों को नागा सन्यासी बनाया जाता रहा है। यह एक तरह से परंपरा भी रही है। लेकिन इस वर्ष उत्तराखंड के हरिद्वार में चल रहे कुंभ के दौरान पहली बार महिलाओं को नागा सन्यासी बनाया जा रहा है। यह कवायद श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े में हो रही है, जहां करीब 200 महिलाओं को नागा संन्यासी बनाया जाएगा। इनके मुण्डन प्रक्रिया की दुखहरण हनुमान मन्दिर के निकट बिड़ला घाट पर प्रारम्भ हुई। गोपनीय तरीके से प्रारम्भ हुई इस प्रक्रिया के दौरान माईबाड़ा की पदाधिकारी मौजूद रही। जूना अखाड़े के संरक्षक श्रीमहंत हरिगिरि महाराज और सभापति श्रीमहंत प्रेम गिरि महाराज की देख रेख में प्रक्रिया हुई।
इसके लिए सबसे पहले महिला नागा संन्यासियों का मुण्डन हुआ। मुण्डन प्रक्रिया के बाद इन सभी ने दण्ड व कमण्डल धारण किया। इसके बाद गंगा स्नान कर स्वयं का जीते जी श्राद्व कर्म किया गया। इसके बाद अपने सभी सगे सम्बन्धियों से हर प्रकार के सम्बन्ध खत्म कर दिए जाएंगे। महिला नागा के लिए माईबाड़ा केवल जूना अखाड़े में ही है। मालूम हो कि जूना अखाड़े की महिला अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आराधना गिरी ने बताया कि संन्यास दीक्षा में 5 संस्कार होते है। इसमें 5 गुरु बनाये जाते हैं। जब कुम्भ पर्व पड़ता है तो वहां गंगा घाट पर मुंडन, पिण्डदान क्रियाक्रम होते हैं। जिसके बाद रात्रि में धर्मध्वजा के पास जाकर ओम नमः शिवाय का जाप किया जाता है। जहाँ आचार्य महामंडलेश्वर विजया होम के बाद सन्यास दीक्षा देते हैं। इसके बाद उन्हें तन ढकने को पौना मीटर कपड़ा दिया जाता है। फिर सभी गंगा में 108 डुबकियां लगाती हैं और फिर स्नान के बाद अग्नि वत्र धारण कर अपने आशीर्वाद लेती है। इन महिला संन्यासियों के दीक्षित किये जाने की प्रक्रिया वीरवार को तड़के आचार्य पीठ द्वारा प्रेयस मंत्र दिये जाने के साथ ही पूर्ण होगी।
एक पदवी होती है नागा
नागा एक पदवी होती है। साधुओं में वैष्णव, शैव और उदासीन तीनों ही संप्रदायों के अखाड़े नागा बनाते हैं। नागा में बहुत से वस्त्रधारी और बहुत से दिगंबर (निर्वस्त्र) होते हैं। इसी तरह महिलाएं भी जब संन्यास में दीक्षा लेते हैं तो उन्हें भी नागा बनाया जाता है, लेकिन वे सभी वस्त्रधारी होती हैं।
हालांकि महिला साधुओं को बस एक ही कपड़ा पहनने की अनुमति होती है। यह कपड़ा भी सिला हुआ नहीं होता है। इसे ‘गंती’ कहा जाता है। इन महिलाओं को कुंभ के स्नान के दौरान नग्न स्नान भी नहीं करना होता है। वे स्नान के वक्त भी इस गेरुए वस्त्र को पहने रहती हैं।
महिला साधुओं का अखाड़ा माई बाड़ा
13 अखाड़ों से जूना अखाड़ा साधुओं का सबसे बड़ा अखाड़ा है। प्रयागराज 2013 में जूना अखाड़े में महिलाओं के माई बाड़ा अखाड़े को भी जूना अखाड़ा में शामिल कर लिया गया था। प्रयागराज 2019 के कुंभ में किन्नर अखाड़े को भी अखाड़े मान्यता देकर जूना अखाड़ा में शामिल कर लिया गया है। किन्नर अखाड़े के प्रमुख लक्ष्मीनाराण त्रिपाठी है। हालांकि महिलाओं के इस अखाड़े से अलग अखाड़ों में भी कई महिला साधु हैं जो भिन्न भिन्न अखाड़ों से जुड़ी हुई हैं। जूना अखाड़ा ने माई बाड़ा को दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा का स्वरूप प्रदान कर किया था। कुंभ क्षेत्र में माई बाड़ा का पूरा चोला बदल गया है और अखाड़े ने सहमति देकर मुहर लगा दी है। उस वक्त लखनऊ के श्री मनकामनेश्वर मंदिर की प्रमुख महंत दिव्या गिरी को संन्यासिनी अखाड़े का अध्यक्ष बनाया गया था।
महिला साधुओं को कहा जाता है ‘माई’, ‘अवधूतानी’ या ‘नागिन’
इस अखाड़े की महिला साधुओं को ‘माई’, ‘अवधूतानी’ या ‘नागिन’ कहा जाता है। हालांकि इन ‘माई’ या ‘नागिनों’ को अखाड़े के प्रमुख पदों में से किसी पद पर नहीं चुना जाता है। लेकिन उन्हें किसी खास इलाके के प्रमुख के तौर पर ‘श्रीमहंत’ का पद दिया जाता है। श्रीमहंत के पद पर चुनी जाने वाली महिलाएं शाही स्नान के दौरान पालकी में चलती हैं। साथ ही उन्हें अखाड़े का ध्वज, डंका और दाना अपने धार्मिक ध्वज के नीचे लगाने की छूट होती है।अखाड़ा कुंभ पर्व में महिला संन्यासियों के लिए माई बाड़ा नाम से अलग शिविर स्थापित किया जाता है। यह शिविर जूना अखाड़े के ठीक बगल में बनवाया जाता है।
विदेशी महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण
विदेशी महिला संन्यासिन : जूना अखाड़े में दस हजार से अधिक महिला साधु-संन्यासी हैं। इसमें विदेशी महिलाओं की संख्या भी बहुतायत में है। खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ा है। यह जानते हुए भी कि नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है। पिछले 2013 के कुंभ में फ्रांस की कोरिने लियरे ‘नागा साधु’ बनी थीं। उन्हें नया नाम दिव्या गिरी दिया गया। वैसे दिव्या ने 2004 में साधु की दीक्षा ली लेकिन कठित तप करने के बाद उन्हें नागा पद मिला। उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड हाइजिन, नई दिल्ली से मेडिकल टेक्नीशियन की पढ़ाई पूरी की थी। निकोले जैकिस न्यूयॉर्क में फिल्म निर्माण से जुडी थीं। वह 2001 में साधु बन चुकी है और अब कुछ महिला साधुओं के लिए संपर्क अधिकारी के तौर पर काम कर रही है। उनका कहना है कि भारत में महिलाएं अब तक अपने जीवन में पुरुषों पर निर्भर रही है। कभी पिता कभी पति और कभी बेटे पर, लेकिन पश्चिम में ऐसा नहीं होता। महिला साधु अपने अखाड़े में तकनीक का इस्तेमाल भी खूब कर रही है। जूना संन्यासिन अखाड़ा में तीन चौथाई महिलाएं नेपाल से आई हुई है। नेपाल में ऊंची जाति की विधवाओं के दोबारा शादी करने को समाज स्वीकार नहीं करता। ऐसे मे ये विधवाएं अपने घर लौटने की बजाए साधु बन जाती है।
कैसे बनती है कोई महिला ‘नागा साधु’
कोई खास अलग प्रक्रिया नहीं होती है। नागा संन्यासिन बनने से पहले अखाड़े के साधु-संत उस महिला के घर परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच पड़ताल करते हैं। संन्यासिन बनने से पहले महिला को यह साबित करना होता है कि उसका अपने परिवार और समाज से अब कोई मोह नहीं है। इस बात की संतुष्टी करने के बाद ही आचार्य महिला को दीक्षा देते हैं। फिर अपने सांसारिक वस्त्र उतारकर शरीर पर पीला वस्त्र धारण कर लेती हैं। फिर उस महिला को अन्य नागा साधुओं की तरह ही जीवित रहते हुए ही मुंडन करवाकर अपना ही पिंडदान करना पड़ता है। फिर उस महिला को नदी में स्नान के लिए भेजा जाता है। महिला नागा संन्यासन पूरा दिन भगवान का जाप करती है और सुबह ब्रह्ममुहुर्त में उठकर शिवजी का जाप करती है। शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं। इसके बाद दोपहर में भोजन करने के बाद फिर से शिवजी का जाप करती हैं और शाम को शयन। अखाड़े में महिला संन्यासन को पूरा सम्मान दिया जाता है। जब कोई महिला इन सब परीक्षा को पास कर लेती है तो उन्हें माता की उपाधि दे दी जाती है। जब महिला नागा संन्यासिन पूरी तरह से बन जाती है तो अखाड़े के सभी छोटे-बड़े साधु-संत उस महिला को माता कहकर बुलाते हैं।