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Tuesday, June 3, 2025

बिकते मर्द हैं … धनाढ्य औरतें लगाती हैं बोली

–धनाढ्य औरतों का खिलौना “जिगोलो”

—स्त्री देह व्यापार के बाजार में पुरुषों ने भी सेंध लगाया

( डॉ.रचनासिंह “रश्मि)
आगरा । सेक्स के प्रति भारतीय महिलाओं का नजरिया तेजी से बदल रहा हैं। पुरानी वर्जनाएं तोड़ती हुई महिलाएं बेधड़क सेक्स के बारे में बात करती हैं। आज उनके लिए यौन संबंध केवल विवाह के बाद की क्रिया नहीं रह गई, बल्कि यौन संबंध उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हो गया है। आज वो शादी के बाद ही नहीं शादी के पहले भी इस सुख का आनंद लेना चाहती हैं। आज स्त्रियों के विचार बहुत बदल गए हैं। वे अपनी इच्छाओं का सामाजिक दबाव के कारण दमन नहीं करती बल्कि बिना किसी संकोच के सेक्स की पहल करती हैं। यह बात सही है कि बदलती जीवनशैली में नारी का जो उदय हो रहा है, वह बंधनों को जोडऩे वाला नहीं बल्कि तोडऩे वाला है, इसलिए यौन संबंधों का इस्तेमाल चाय की चुस्की की तरह सहज हो गया है। आधुनिकता, अराजकता और पश्चिमी सभ्यता में वासना की पूर्ति के लिए जब पुरूष वेश्याओं का सहारा ले सकते है.तो महिलाएं क्यों!

बिकते मर्द हैं … धनाढ्य औरतें लगाती हैं बोली

नही इसलिए व्यवसाय का सृजन हुआ हैं.अरसे से एकछत्र राज कर रही स्त्री देह व्यापार के इस बाजार में पुरुषों ने भी सेंध लगाना शुरू कर दिया है
जिगोलोकॉलबॉयप्लेबॉयपुरुषवेश्या” पुरुष वेश्या’ सुनकर काफी अजीब लगता है लेकिन यह सच है आज यह लोग हमारे बीच काफी अधिक मात्रा में मौजूद हैं। 
“जिगोलो” का उपयोग महिलाएं अपनी वासना पूर्ति के लिए करती हैं। जब महिलाएं वेश्या बनकर आराम से धन कमा सकती हैं तो पुरुषों में भी यह काम काफी लोकप्रिय हो गया।
औरतो मंडी में पुरुषों के जिस्म की नुमाइश होती है … औरतें इन्हें छू कर और परख कर अपने लिए पसंद करती हैं रंग,हाईट गठीला बदन फर्राटे दार अंग्रेजी बोलते हुए …और फिर कुछ घंटे शराब नशे में अपनी #कमाग्नि को तृप्त कर नकाब पहन.वापस सभ्य समाज में रिबन काटती हुई किसी अखबार की सुर्खियां बनती है अंधेरा होते ही लग्जरी गाडियों में नयी तलाश में …….।।

पूरी रात के लिए 8000 रुपए तक  औरतें बोली लगाती हैं

बिकते मर्द हैं … धनाढ्य औरतें लगाती हैं बोली

इस काम को करने वाले अधिकतर कम उम्र के लड़के ही होते हैं यानी 18 से 30 वर्ष के… इनकी डिमांड भी अधिक है. ‍मनपसंद जिगोलो की मुंहमांगी कीमत दी जाती है! यह सब कारोबार रात के 10 बजे के बाद शुरू होता है और सुबह 4 बजे तक चलता रहता है!कुछ घंटों के लिए जिगोलो की कीमत 1800 से 3000 रुपए और पूरी रात के लिए 8000 रुपए तक  औरतें बोली लगाती हैं और मर्द बिकते हैं ….कई बार यह अच्छे कॉन्टेक्ट्स पाने के लिए भी इस काम को करते हैं सड़क किनारे कुछ इलाके प्रमुख बाजारों के पास लड़के खड़े हो जाते हैं… लक्ज़िरी गाड़ियां रूकती हैं और सौदा तय होने पर जिगोलो को अपने.साथ ले जाती है …..होटलों में यह काम थोड़ा आसान हो जाता है क्योंकि वहां उन्हीं के कमरों में इस काम को अंजाम दिया जाता है।

पति से सुख नहीं मिलता वह महिलाएं जिगोलो की सर्विस लेती हैं

बिकते मर्द हैं … धनाढ्य औरतें लगाती हैं बोली


इनकी भी एक अलग से यूनिफॉर्म होती है और यह रेस्त्रां में बैठकर ग्राहकों का इंतजार करते हैं।
जिगोलो बने पुरुषों को लगता है कि यह काम उनके लिए आम के आम गुठलियों के दाम जैसा है। और ऐसा होता भी है, लेकिन जब कड़वी सच्चाई सामने आती है तो पैरों तले जमीन खिसक जाती है।कई लोगों से शारीरिक संबंध बनाने के चक्कर में एड्स और अन्य एसटीडी (यौन संक्रमित रोग) इन्हें हो जाता है। पुरुष वेश्याओं का समाज में ज्यादा प्रयोग महिलाओं द्वारा किया जाता है खासकर उम्रदराज महिलाओं और विधवाओं द्वारा। कामकाजी महिलाएं जिन्हें घर पर अपने पति से सुख नहीं मिलता वह इन जिगोलो की सर्विस का मजा लेती हैं, इसमे सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी है सबसे पहले तो यह जिगोलो प्रणाली भारत में अन्य सामाजिक प्रदूषण की तरह पश्चिमी सभ्यता से आई, जहां नंगापन सभ्यता का हिस्सा है।
पश्चिमी सभ्यता के कदमों पर चलते हुए भारत में ऐसे में बहकते युवा वर्ग को यह काम पैसा कमाने का नया और आसान तरीका लगता है।

धनाढ्य और”संभ्रांत” परिवार की औरतों का महंगा शौक

यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें जोर जबरदस्ती नहीं बल्कि स्वेच्छा से लोग शामिल होते हैं… और इन की खरीद-फरोख्त भी स्वेच्छा से ही की जाती है … यानी कि यह पुरुष वेश्यावृत्ति औरतों की वेश्यावृत्ति की तरह से तकलीफदेह नहीं है .यह धनाढ्य और”संभ्रांत” परिवार की औरतों का #महंगा शौक है जो मुंबई और दिल्ली जैसे महानगर में तेजी से फल-फूल रहा है।
पुरूष वेश्यावृत्ति में आने का सबसे बडा कारण भी समाज ही है। जिगोलो का काम कितना बुरा होता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें पुरुष वेश्या कहा जाता है। महिलाएं पुरुषों को उसी तरह इस्तेमाल करती हैं जैसे वह महिलाओं को करते हैं। इन सबमें सबसे अहम बात छुपी रह जाती है कि भारतीय समाज में यह चीज हमारे संस्कारों और सभ्यता के लिए दीमक की भांति है। जिस युवा पीढ़ी पर जमाने भर का बोझ होता है वह चंद मुश्किलों के आगे झुककर इस दलदल में फंस जाता है और अपने भविष्य के साथ मजाक कर लेता है।

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