काठमांडू। नेपाल की राजनीति में बड़ा उलटफेर हो गया है। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने सभी राजनीतिक दलों से अपील की है कि अगले साल 5 मार्च को होने वाले प्रतिनिधि सभा के चुनावों को शांतिपूर्ण और सफल तरीके से करवाने में मदद करें। यह अपील शुक्रवार आधी रात को निचले सदन को भंग करने के फैसले के बाद आई है, जिसकी देशभर में कड़ी आलोचना हो रही है। राष्ट्रपति ने कहा कि देश में संविधान और संसदीय लोकतंत्र को बचाने का वक्त है, ताकि नागरिक अशांति न फैले।
नेपाल में हाल के दिनों में जनरेशन-जी (Gen-Z) प्रदर्शनकारियों का आंदोलन जोर पकड़ चुका था। युवा पीढ़ी का मानना था कि मौजूदा सांसद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। इसी मांग पर सदन को भंग करने का फैसला लिया गया। नई प्रधानमंत्री सुशीला कार्की की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने यह कदम उठाया। शनिवार शाम राष्ट्रपति पौडेल ने प्रेस बयान जारी कर कहा, “यह बहुत मुश्किल और डरावनी स्थिति थी, लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से हल निकाल लिया गया। यह चतुराई से किया गया हस्तक्षेप है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान और संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य सुरक्षित है। सभी पक्षों से आह्वान किया कि इस मौके का सही इस्तेमाल करें और मार्च के चुनावों को मिलकर संपन्न कराएं।
राजनीतिक दलों की कड़ी निंदा
सदन भंग करने के फैसले पर आठ बड़े राजनीतिक दलों ने अपनी नाराजगी जाहिर की है। इनका कहना है कि यह कदम लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है और बिल्कुल असंवैधानिक है। संयुक्त बयान में दलों ने कहा, “यह संविधान के अनुच्छेद 76(7), सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और परंपराओं के विरुद्ध है। हम इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे।” इन दलों में नेपाली कांग्रेस, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल), सीपीएन (माओवादी केंद्र), सीपीएन (एकीकृत समाजवादी), जनता समाजवादी पार्टी, जनमत पार्टी, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी शामिल हैं। ये दल पहले सदन को बचाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन प्रदर्शनकारियों के दबाव में फैसला हो गया।
नेपाल की राजनीति में यह घटना Gen-Z आंदोलन का बड़ा असर दिखा रही है। युवा नेता सदन भंग करने पर अड़े थे और कहा कि वे अपनी मांग से पीछे नहीं हटेंगे। राष्ट्रपति, सेना और प्रदर्शनकारियों के बीच लंबी बातचीत चली। शुरुआत में बहस यह थी कि पहले नया प्रधानमंत्री बने या सदन भंग हो। Gen-Z नेता पहले भंग करने पर जोर दे रहे थे। राष्ट्रपति पौडेल, जो संविधान के रक्षक भी हैं, ने कहा कि प्रधानमंत्री की सिफारिश के बिना यह संभव नहीं। आखिरकार सहमति बनी कि पहले प्रधानमंत्री नियुक्त हों, फिर वे सदन भंग की सिफारिश करें। शुक्रवार रात कार्की को प्रधानमंत्री बनाया गया और आधी रात के करीब सदन भंग कर दिया गया।
Gen-Z आंदोलन का दबाव और नया मोड़
Gen-Z प्रदर्शनकारियों का आंदोलन नेपाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नई लहर लाया है। मीडिया से बात करते हुए उनके कुछ नेता बोले, “हम सदन भंग की मांग से कभी मुंह नहीं मोड़ेंगे।” इस आंदोलन ने राजनीतिक दलों को बैकफुट पर ला दिया। एक नेपाली डिजिटल अखबार के मुताबिक, नई प्रधानमंत्री कार्की ने कहा, “राष्ट्रपति कह रहे थे कि सिफारिश के बिना सदन भंग नहीं हो सकता। लेकिन आखिरकार वे राजी हो गए। सब दस्तावेज तैयार थे। सदन तो भंग ही होना था, पहले हो या बाद में, फर्क क्या पड़ता है।” यह बयान बताता है कि फैसला कितना तनावपूर्ण था।
अब सारी नजरें 5 मार्च 2025 के चुनावों पर हैं। राष्ट्रपति की अपील के बाद उम्मीद है कि दल मिलकर काम करेंगे। लेकिन आठ दलों की निंदा से साफ है कि विवाद अभी खत्म नहीं हुआ। नेपाल में लोकतंत्र की परीक्षा का वक्त है। युवाओं का गुस्सा और राजनीतिक उथल-पुथल देश को नई दिशा दे सकती है। क्या ये चुनाव भ्रष्टाचार पर लगाम लगाएंगे? आने वाले दिनों में और साफ होगा।
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