अलास्का में दो हफ्ते की कड़ी ट्रेनिंग के बाद भारत और अमेरिका के बीच होने वाला सालाना द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास ‘युद्ध अभ्यास 2025’ सफलतापूर्वक समाप्त हो गया। यह 21वां संस्करण था, जिसमें दोनों देशों के सैनिकों ने मिलकर युद्ध जैसी स्थितियों में अपनी ताकत दिखाई। वाशिंगटन में भारतीय दूतावास ने इसे दोनों देशों के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग का प्रतीक बताया है।
अभ्यास की मुख्य विशेषताएं और भागीदारी
इस अभ्यास में भारत और अमेरिका की ओर से कुल 450-450 सैनिकों ने हिस्सा लिया। भारतीय पक्ष का नेतृत्व मद्रास रेजिमेंट के एक बटालियन ने किया, जबकि अमेरिकी सेना की 11वीं एयरबोर्न डिवीजन के सैनिक शामिल हुए। अभ्यास 1 सितंबर से 14 सितंबर तक अलास्का के फोर्ट वेनराइट और यूकॉन ट्रेनिंग एरिया में चला।
दूतावास के बयान के अनुसार, यह भारत की सेना के लिए अब तक का सबसे बड़ा द्विपक्षीय अभ्यास था, जिसमें इतने सैनिकों को जुटाया गया। सैनिकों ने फील्ड ड्रिल्स, कमांड पोस्ट एक्सरसाइज और विशेषज्ञों के साथ चर्चा की, ताकि आपसी तालमेल मजबूत हो सके।
कठिन परिस्थितियों में ट्रेनिंग और सीख
अभ्यास के दौरान भारतीय और अमेरिकी अधिकारी ब्रिगेड और बटालियन स्तर पर ऑपरेशनल प्लानिंग, कमांड एंड कंट्रोल तथा समन्वय पर साथ काम करते नजर आए। इसके बाद सब-आर्कटिक इलाके की चुनौतीपूर्ण जमीन पर फील्ड ट्रेनिंग हुई, जिसमें स्नाइपर और रेकी ड्रिल्स, काउंटर आईईडी ट्रेनिंग, बाधाएं लगाना और विस्फोटक इस्तेमाल जैसी गतिविधियां शामिल रहीं।
लाइव-फायर एक्टिविटीज में जॉइंट फायरिंग और मोर्टार लाइव-फायर एक्सरसाइज हुए, जो आग के नियंत्रण, संचार और संयुक्त निशाना साधने में समन्वय की परीक्षा लेते थे। इनसे सैनिकों को सटीकता, अनुकूलन क्षमता और जॉइंट टारगेटिंग के कीमती सबक मिले। दूतावास ने कहा कि इससे दोनों सेनाओं ने एक-दूसरे की प्रक्रियाओं को अपनाया और वास्तविक युद्ध की स्थितियों में परिचितता बढ़ाई।
अभ्यास का इतिहास और विकास
‘युद्ध अभ्यास’ की शुरुआत 2002 में हुई थी, जब यह शांति रक्षा पर केंद्रित प्लाटून स्तर का छोटा अभ्यास था। धीरे-धीरे यह बड़ा और जटिल होता गया। अब यह भारत और अमेरिका के बीच वैकल्पिक रूप से आयोजित होता है। यह अभ्यास दोनों देशों के व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी का हिस्सा है, जो सैन्य सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है। इस सफल अभ्यास से भारत-अमेरिका रक्षा संबंध और मजबूत हुए हैं, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
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