26.1 C
New Delhi
Saturday, October 12, 2024

रोशनी की लहर बनाते हैं दीपावली के दीये

(ललित गर्ग)

दीपावली एक लौकिक पर्व है। फिर भी यह केवल बाहरी अंधकार को ही नहीं, बल्कि भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व भी बने। हम भीतर में धर्म का दीप जलाकर मोह और मूर्च्छा के अंधकार को दूर कर सकते हैं। दीपावली के मौके पर सभी आमतौर से अपने घरों की साफ-सफाई, साज-सज्जा और उसे संवारने-निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार अगर भीतर चेतना के आँगन पर जमे कर्म के कचरे को बुहारकर साफ किया जाए, उसे संयम से सजाने-संवारने का प्रयास किया जाए और उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्वलित कर दिया जाए तो मनुष्य शाश्वत सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त हो सकता है।
दीपों की कतारें दीपावली का शाब्दिक अर्थ ही नहीं, वास्तविक अर्थ है। कतारों के लिए निरंतरता जरूरी है। और निरंतरता के लिए नपा-तुला क्रम। दीप जब कतार में होते हैं, तो आनंद का सूचक बन जाते हैं। जैसे कोई मूक उत्सव हो- जगर-मगर उजाले का। उजालों की पंक्तियां उल्लास का द्योतक हैं। दीप होते ही प्रेरक हैं। एक बाती, अंजुरी-भर तेल और राह-भर प्रकाश। जितना सादा दीपावली का दीपक होता है, उससे सादा कुछ नहीं हो सकता। माटी ने ज्यों पक-जमकर, बाती के बीज से ज्योत पल्लवित की हो। यह विजय पताका कार्तिक अमावस्या के अंधेरे की पूरी रात दूर रखती है। दीपावली की रात को हर दीप रोशनी की लहर बनाता है, उजालों के समन्दर में अपना योगदान देता है।
शेक्सपियर की चर्चित पंक्ति है- ‘अगर रोशनी पवित्रता का जीवन रक्त है तो विश्व को रोशनीमय कर दो/ जगमगा दो और इसे जी-भरकर बाहुल्यता से प्राप्त करो।’ शेक्सपियर ने यह पंक्ति चाहे जिस संदर्भ में कही हो, पर इसका उद्देश्य निश्चित ही पवित्र था और अनेक अर्थों को लिए हुए यह उक्ति सचमुच मंे जीवन व्यवहार की स्पष्टता के अधिक नजदीक है। दीपावली का पर्व और उससे जुड़े रोशनी के दर्शन का भी यह उद्घोष है। रोशनी! उत्सव का प्रतीक, खुशी के इज़हार करने का प्रतीक है, सफलता का प्रतीत है। अगर हम इस सोच को गहराई में डुबो लें तो ये सूक्तियां हमारे जीवन की रक्त धमनियां बन सकती हैं और उससे उत्तम व्यवहार की रश्मियां प्रस्फुटित हो सकती है। उन रश्मियों की निष्पत्तियां के स्वर होंगे- ”सदा दीपावली संत की आठों पहर आनन्द“, ”घट-घट दीप जले“, ”दीये की लौ सूरज से मिल जाये“।
दीपावली का सम्पूर्ण पर्व एक ऊर्जा है, एक शक्ति है, एक प्रकार की गति है। एक सत्य से दूसरे सत्य की ओर अनवरत, अनिरुद्ध गति ही दीपावली की जीवंतता है। जीवन के अनेक अनुभवों का समवाय है दीपावली। एक अनुभूति से दूसरी अनुभूति तक की यात्रा में जो दीपावली के विलक्षण एवं अद्भुत क्षणों की गति है, वही जीवन की वास्तविकता है। जीवन एक यात्रा है, सतत यात्रा। ठीक इसी तरह दीपावली भी एक यात्रा है, एक प्रस्थान है, कुछ नया पाने की, अनूठा करने की। समय बह रहा है, जीवन बीत रहा है। वर्ष पर वर्ष, माह पर माह, दिन पर दिन एवं पलों पर पल बीत रहे हैं, सांसों के घट रीत रहे हैं। इन घटती सांसों को अर्थपूर्ण बनाने, सम्पूर्णता से जी लेने एवं उपयोगी करने का पर्व है दीपावली। वृक्ष भी जीते हैं, पशु-पक्षी भी जीते हैं, परंतु वास्तविक जीवन वे ही जीते हैं, जिनका मन मनन का उपजीवी हो। मननशीलता की संपदा मानव को सहज उपलब्ध है। अपेक्षा है उसका सम्यक् उपयोग और विकास कर जीवन को सार्थक दिशा प्रदान करें। उजालों का स्वागत करें।
दीपावली की रात भारत भूमि पर आसमान उतर आता है। ज्यों आकाश में तारे टिमटिमाते हैं, सो उस रात धरा पर दिए टिमटिमाते हैं। चांद से रीती इस रात का हर पक्ष उजला है। अमावस कहकर कोई याद नहीं रखता इसे। इसमें इतना उजास जो है। कहते हैं सूनी राह पर, अकेले द्वार पर, कुएं की तन्हा मेड़ पर और उजाड़ तक में दीप रखने चाहिए। कोई भूले-भटके भी कहीं किसी राह पर निकले, तो उसे अंधेरा न मिले। इस रात हरेक के लिए उजाले जुटा दिए जाते हैं। अब उजालों के इस अपूर्व एवं अलौकिक पर्व की जगर-मगर में दीपों की माटी कम और लट्टूओं वाली बिजली एवं पटाखों का प्रदूषण अधिक है। वक्त के साथ खुशियों का अहसास तो नहीं बदलता, पर उसकी आमद के जरिए अलग हो जाते हैं। दीपावली पर रोशनी का परचम बुलंद किए हौसलेमंद दिए ज्यों तम के सामने डट जाते हैं, वह एक कालजयी ऐलान है विजय का।
इस विजय को पाने एवं मोह का अंधकार भगाने के लिए धर्म का दीप जलाना होगा। जहाँ धर्म का सूर्य उदित हो गया, वहाँ का अंधकार टिक नहीं सकता। एक बार अंधकार ने ब्रह्माजी से शिकायत की कि सूरज मेरा पीछा करता है। वह मुझे मिटा देना चाहता है। ब्रह्माजी ने इस बारे में सूरज को बोला तो सूरज ने कहा-मैं अंधकार को जानता तक नहीं, मिटाने की बात तो दूर, आप पहले उसे मेरे सामने उपस्थित करें। मैं उसकी शक्ल-सूरत देखना चाहता हूँ। ब्रह्माजी ने उसे सूरज के सामने आने के लिए कहा तो अंधकार बोला-मैं उसके पास कैसे आ सकता हूँ? अगर आ गया तो मेरा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
जीवन का वास्तविक उजाला लिबास नहीं है, भोजन नहीं है, भाषा नहीं है और उसकी साधन-सुविधाएं भी नहीं हैं। वास्तविक उजाला तो मनुष्य में व्याप्त उसके आत्मिक गुणों क महक ही है, जो मानवीय बनाते हैं, जिन्हें संवेदना और करुणा के रूप में, दया, सेवा-भावना, परोपकार के रूप में हम देखते हैं। असल मंे यही गुणवत्ता उजालों की बुनियाद है, नींव हैं जिसपर खड़े होकर मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बनाता है। जिनमें इन गुणों की उपस्थिति होती है उनकी गरिमा चिरंजीवी रहती है। समाज में उजाला फैलाने के लिये इंसान के अंदर इंसानियत होना जरूरी है। जिस तरह दीप से दीप जलता है, वैसे ही प्यार देने से प्यार बढ़ता है और समाज में प्यार और इंसानियत रूपी उजालों की आज बहुत जरूरत है।
जीवन के हृास और विकास के संवादी सूत्र हैं- अंधकार और प्रकाश। अंधकार स्वभाव नहीं, विभाव है। वह प्रतीक है हमारी वैयक्तिक दुर्बलताओं का, अपाहिज सपनों और संकल्पों का। निराश, निष्क्रिय, निरुद्देश्य जीवन शैली का। स्वीकृत अर्थशून्य सोच का। जीवन मूल्यों के प्रति टूटती निष्ठा का। विधायक चिन्तन, कर्म और आचरण के अभाव का। अब तक उजालों ने ही मनुष्य को अंधेरों से मुक्ति दी है, इन्हीं उजालों के बल पर उसने ज्ञान को अनुभूत किया अर्थात सिद्धांत को व्यावहारिक जीवन में उतारा। यही कारण है कि उसकी हस्ति आजतक नहीं मिटी। उसकी दृष्टि में गुण कोरा ज्ञान नहीं है, गुण कोरा आचरण नहीं है। दोनों का समन्वय है। जिसकी कथनी और करनी में अंतर नहीं होता वही समाज मं आदर के योग बनता है।
हम उजालों की वास्तविक पहचान करें, अपने आप को टटोलें, अपने भीतर के काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि कषायों को दूर करं और उसी मार्ग पर चलें जो मानवता का मार्ग है। हमंे समझ लेना चाहिए कि मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है, वह बार-बार नहीं मिलता। समाज उसी को पूजता है जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है। इसी से गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है-‘परहित सरिस धरम नहीं भाई’। स्मरण रहे कि यही उजालों को नमन है और यही उजाला हमारी जीवन की सार्थकता है। जो सच है, जो सही है उसे सिर्फ आंख मूंदकर मान नहीं लेना चाहिए। खुली आंखों से देखना एवं परखना भी चाहिए। प्रमाद टूटता है तब व्यक्ति में प्रतिरोधात्मक शक्ति जागती है। वह बुराइयों को विराम देता है।

 

latest news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related Articles

epaper

Latest Articles