-गुरुमुखी पढऩे और लिखने में असफल रहे कमेटी के अध्यक्ष सिरसा
-दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशक ने सिरसा को अयोग्य घोषित किया
– पत्र के रूप में 46 शब्द लिखे, इसमें से 27 शब्द अशुद्व पाए गए
– 24 सितम्बर को को-आप्शन की बाकी रह गई 3 सीटों के लिए चुनाव होंगे
-दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य के योग्यता के लिए हुई परीक्षा
नई दिल्ली /टीम डिजिटल : दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के निवर्तमान अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा गुरुमुखी की परीक्षा में फेल हो गए हैं। 17 सितम्बर को दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय में हुई धार्मिक परीक्षा में मनजिंदर सिंह सिरसा गुरुमुखी पढऩे और लिखने में असफल रहे, जिसके चलते गुरुद्वारा चुनाव निदेशक ने मंगलवार को सिरसा को अयोग्य घोषित करते हुए उनकी सदस्यता को खारिज कर दिया। निदेशक के इस आदेश के बाद सिरसा का कमेटी सदस्य बनना फिलहाल मुश्किल हो गया है। लिहाजा, अब 24 सितम्बर को को-आप्शन की बाकी रह गई 3 सीटों के लिए चुनाव होंगे। इस फैसले के बाद दिल्ली की सिख सियायत में बड़ी हलचल मच गई है।
दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशक नरिंदर सिंह ने मनजिंदर सिंह की धार्मिक योगयता में असफल होने की पुष्टि भी की है। साथ की कहा कि सिरसा सदस्य बनने के लिए निर्धारित धार्मिंक योग्यता को पास करने में असफल रहे।
दरअसल, दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के नवनिर्वाचित सदस्य हरविंदर सिंह सरना के द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट से मनजिंदर सिंह सिरसा की शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के द्वारा नामित किए गए सदस्यता को चुनौती दी गई थी। साथ ही कहा गया था कि सिरसा का नामांकन गलत है और सिरसा खुद अमृतधारी नहीं हैं। इसके बाद हाईकोर्ट ने चुनाव निदेशालय को सिरसा की योगयता जांचने को कहा था। दिल्ली कमेटी एक्ट के सेक्शन-10 के तहत सदस्य बनने की योगयता साबित करने के करवाए गए आदेश पर निदेशक गुरुद्वारा चुनाव निदेशाल ने 17 सितम्बर को गुरुद्वारा चुनाव निदेशायल के कार्यालय में कैमरों की निगरानी में सिरसा की परीक्षा करवाई गई। इस दौरान सिरसा को अपने आप को अमृतधारी तथा गुरुमुखी भाषा का जानकार साबित करना था। इसके लिए बाकायदा सिरसा अपने साथ अमृतधारी होने का प्रमाणपत्र तथा पंजाबी भाषा की जानकारी के लिए श्री गुरुतेग बहादुर खालसा कालेज के प्रिंसिपल से लिखवा कर लाए थे। प्रिंसिपल के प्रमाणपत्र के अनुसार सिरसा ने 1990 से 1993 के बीच खालसा कालेज में पंजाबी ओनर्स में दाखिला लिया था। इसके अलावा सिरसा ने अपने गुरुमुखी के जानकार होने का प्रमाणपत्र दिल्ली कमेटी के ही अधीन चलते सरकारी सहायता प्राप्त सुक्खो खालसा सीनियर सेकेंडरी स्कूल की प्रिंसिपल से लिखा प्रमाणपत्र भी जमा करवाया था। इसमें लिखा हुआ था कि सिरसा गुरुबाणी पढ़ और लिख सकते हैं, उनके सामने लिखी और पढ़ी है। दोनों प्रमाणपत्रों में दर्ज तारीख और समय संदिगध लग रहे थे, लिहाजा गुरुद्वारा चुनाव निदेशक ने दोनों प्रमाणपत्रों पर अस्तुष्टि जताई। चूंकि, दोनों ही संस्थाएं गुरुद्वारा कमेटी के अधीन चलतीत हैं, लिहाज सिरसा कुछ भी अपनी मर्जी का लिखवा सकते हैं, ऐसा संदेश चुनाव निदेशालय को हुआ। इसलिए निदेशक गुरुद्वारा चुनाव ने सिरसा को अपने सामने गुरुबाणी पढऩे और लिखने के लिए कहा। गुरुबाणी पढऩे के लिए श्री गुरुग्रंथ साहिब के अंग (पृष्ठ-1358) पढऩे के लिए दिया गया। संस्कृत भाषा के गुरुमुखी लिपि में होने के कारण सिरसा उसको आसानी से नहीं पढ़ पाए। इसके बाद निदेशक ने सिरसा को इन्हीं पंक्तियों को लिख कर दिखाने को कहा, जिसमें सिरसा ने गुरुबाणी लिखने में असमर्थता जता दी। साथ ही कहा कि गलत गुरुवाणी लिखने से गुरुवाणी की बेअदबी होगी। इसके बाद डायरेक्टर ने उन्हें अपनी मर्जी के शबद गुुरुमुखी में लिखने को कहा।
मनजिंदर सिंह सिरसा ने आवेदन पत्र (अप्लीकेशन)के रूप में 46 शब्द लिखे, जिसमें से 27 शब्द अशुद्व पाए गए। इस सारी बातों का हवाला निदेशक ने अपने आदेश में साफ लिखा है। यह भी एक अजब संयोग है कि आम चुनाव में अकाली दल 46 सीटों पर चुनाव लड़ा था, और 27 सीटों पर जीता था। सिरसा ने शब्द भी 46 लिखे और गलत भी 27 हुए। निदेशक के इस आदेश के बाद सिरसा का कमेटी सदस्य बनना मुश्किल हो गया है। अब 24 सितम्बर को कोआप्शन की बाकी रह गई 3 सीटों के लिए चुनाव होगा। जिसमें दो सदस्य सिंह सभा गुरुद्वारों की लॉटरी से निकाले जाएंगे और सिरसा के अयोग्य घोषित होने के बाद अब शिरोमणि कमेटी की प्रतिनिधि सीट पर भी 24 तारीख को एसजीपीसी नया नुमाइंदा भेजेगी।
एसजीपीसी को नया नाम भेजने को कहा
गुरुद्वारा चुनाव निदेशक नरिंदर सिंह ने दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को पत्र लिखकर कहा है कि वह एसजपीसी से संपर्क कर नए दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी सदस्य की नुमाइंदगी के लिए नया नाम भेजें। नये नुमाइंदे के तौर पर सबसे ज्यादा कयास पटना कमेटी के अध्यक्ष अवतार सिंह हित, वरिष्ठ अकाली नेता कुलदीप सिंह भोगल के लगाए जा रहे हैं। सिरसा के सदस्य और अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर होने के बाद बादल दल को अपने सदस्यों को संभालने की सबसे ज्यादा चिंता है। अब दिखना होगा शिरोमणि कमेटी की नामजद सदस्य के तौर पर सुखबीर बादल अब किसकों भेजते हैं।
45 साल बाद कोई सदस्य अयोगय घोषित हुआ
संसद के द्वारा 1971 में बनाए गए दिल्ली कमेटी एक्ट के 1976 में लागू होने के बाद 45 साल के बाद यह पहला अवसर आया है, जब किसी सदस्य को गुरुमुखी का विशेषज्ञ ना होने के कारण अयोग्य घोषित किया गया हो। सिरसा के खिलाफ आए इस आदेश का असर 6 से 7 नवनिर्वाचित सदस्यों पर पड़ सकता है। जिनके खिलाफ विभिन्न जिला अदालतों में विरोधी उम्मीदवारों ने चुनाव याचिकाएं दाखिल कर दी हे। इसमें से कई उम्मीदवारों के उपर गुरुमुखी की जानकारी ना होने के आरोप थे लेकिन उस समय चुनाव अधिकारियों ने उसे गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन सिरसा के खिलाफ आए आदेश के कारण उन उम्मीदवारों के भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह लग सकता है। हो सकता है कि अदालत ही इनका गुरुमुखी टेस्ट करवाने का आदेश चुनाव निदेशालय को दे दे।