—सेक्स पर बात करने की आजादी ही प्रेम को परिभाषित नहीं करती
(पूनम शर्मा स्नेहिल)
बहुत छोटा सा शब्द है प्रेम , पर यह अपने ही भीतर कई जिम्मेदारियों को समेटे हुए हैं । जिम्मेदारी एक दूसरे का ख्याल रखने की, जिम्मेदारी सुख – दुख में साथ निभाने की, जिम्मेदारी हर हाल में साथ चलने की, पर आज के समय में इसकी मान्यताएं परिभाषाएं बदलती जा रही हैं ।
बदलते दौर में मीडिया और पाश्चात्य शैली के प्रभाव की वजह से आज प्रेम सिर्फ एक आकर्षण और शारीरिक परिभाषाओं के बीच उलझ कर रह गया है । प्रेम को अगर शारीरिक धुरी में बांधकर परिभाषित किया जाए तो हर वो रिश्ता जो जोर और जबरदस्ती से बनाए जाते हैं वह भी प्रेम की को परिभाषित करने लगेंगे ।
प्रेम की परिभाषा को समझने के लिए वैलेंटाइन डे या रोज डे जैसे दिनों की नहीं ।बल्कि यशोदा का कान्हा के प्रति प्रेम, राधा का कृष्ण के प्रति प्रेम, मीरा का कृष्ण के प्रति प्रेम, गौरा शंकर, राम सीता, जैसे उदाहरण को क्यों नहीं देखते हम जिन्होंने एक दूसरे के लिए अपने आप को पूर्णता समर्पित कर दिया था। समर्पण सिर्फ शारीरिक नहीं होता। रुकमणी संग रहते हुए भी कृष्ण का नाम रुक्मणी से ज्यादा राधा के साथ लिया जाता है । इन परिभाषाओं को देखना और समझना बहुत जरूरी है ।
केवल खुलकर सेक्स पर बात करने की आजादी ही प्रेम को परिभाषित नहीं करती कभी-कभी हमारे संस्कारों और मूल्यों की धरोहर को बनाए रखने के लिए भी हमें पीछे रहना अच्छा लगता है । जहांँ तक हमारी भारतीय संस्कृति में पाश्चात्य देशों की तरह कई कई शादियों की अनुमति नहीं होती ।हमारे देश में आज भी विवाह को जन्म जन्मों का बंधन माना जाता है कहने के लिए हो सकता है 80 प्रतिशत लोग मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे पर हमारे हिंदुस्तान में कितने ऐसे परिवार हैं जहांँ तीज, करवा चौथ ,वट सावित्री जैसे व्रतों का पालन किया जाता हैं। सच कहें तो यही सभ्यता और संस्कृति हमारी पहचान है।अगर इनका पालन किया जाता है तो क्यों ! केवल एक फैशन के लिए ? जवाब शायद आप लोगों के अपने ही शब्दों में छिपा हुआ है।
खुलकर किसी भी मुद्दे पर बात करना कोई गलत नहीं
खुलकर किसी भी मुद्दे पर बात करना कोई गलत नहीं है पर महिलाओं को अधिकतर चीजों से दूर इसलिए रखा जाता है क्योंकि वह हमेशा बच्चों के इर्द-गिर्द रहती हैं किसी भी चीज की जानकारी कभी गलत नहीं होती ,पर समय से पहले किसी भी चीज की जानकारी उतनी ही हानिकारक है। जितनी किसी चीज की जानकारी का ना होना ।
हमसे ज्यादा खुले विचार तो हमारे पूर्वजों के थे इसका जीता जागता सबूत हमारे चारों तरफ मौजूद है जो हमें धरोहर के रूप में मिला है अजंता एलोरा की मूर्तियां हमें कुछ ऐसे भी ज्ञान दे जाती हैं जिससे शायद हम अभी भी वंचित हैं नजर और नजरिए के बीच बहुत बारिश सा अंतर होता है पर यह अंतर आपको पूरी तरीके से बदल सकता है।
शरीर के आकर्षण से हुआ LOVE प्रेम नहीं
शरीर के आकर्षण से हुआ प्रेम प्रेम नहीं बल्कि सिर्फ मात्र कुछ समय का आकर्षण है जो कि समय के साथ ध्वस्त हो जाता है। इंसान का शरीर हमेशा एक सा नहीं रहता इसमें बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हर दौर में परिवर्तन आता है पर मानसिक प्रेम आपको वह दृढ़ता देता है जो आपकी किसी भी कमी को नजरअंदाज करते हुए आपसे किया जाता है मानसिक प्रेम के बीच ना तो रंग रूप आता है । ना उम्र ना जाती यह सिर्फ एक दूसरे की इज्जत करना सिखाता है मान सम्मान देना सिखाता है अगर किसी भी रिश्ते में इज्जत और मान सम्मान नहीं है, तो वह वह रिश्ता प्रेम की कसौटी पर नहीं उतरता है।
प्रेम सिर्फ प्रेमी प्रेमिकाओं के बीच का शब्द नहीं
प्रेम सिर्फ प्रेमी प्रेमिकाओं के बीच का शब्द नहीं है या पति पत्नी के यह बनी हुई कोई परिभाषा नहीं है प्रेम सृष्टि के हर कण में बसता है। प्रेम हर रिश्ते के बीच में है। कभी-कभी सात समंदर पार रहकर भी बिना बोले एक दूसरे की बातें समझ में आ जाती हैं और कभी एक ही कमरे में बैठकर भी एक दूसरे का हाल पता नहीं होता। बस यही फर्क है प्रेम और शारीरिक प्रेम के बीच का।