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Monday, December 9, 2024

मासिक धर्म : महिलाओं की पीड़ा दूर करने और मानसिकता बदलने की कवायद

नई दिल्ली/ खुशबू पाण्डेय : महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला प्रशासन यूनीसेफ की मदद से इस क्षेत्र में एक मौन क्रांति ला रहा है, जहां वे मासिक धर्म के समय लड़कियों और महिलाओं को कुर्माघर या मासिक धर्म झोंपड़ी में भेजने की क्रूर प्रथा का क्रमशः उन्मूलन कर रहा है। स्थानीय गौंड और मादिया जनजातियों की किशोरियों और महिलाओं की पीड़ा को दूर करने के उद्देश्य से समाज की मानसिकता में बदलाव लाने के लिए प्रशासन 2018 से पूरी प्रतिबद्धता से कार्य कर रहा है और अब इसके नतीजे भी सामने आ रहे हैं। इन किशोरियों और महिलाओं को मासिक धर्म के समय बहुत सी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कुप्रथाओं का सामना करना पड़ता है।

—सफलता की गाथाः स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण में मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता प्रबंधन

इन कुर्माघरों के स्थान पर महिला विश्व केंद्र या महिला विश्राम केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, जोकि महिलाओं के लिए सुरक्षित और भरोसेमंद स्थान हैं। इन केंद्रों में शौचालय, स्नानगृह, हाथ धोने का स्थान जैसी बुनियादी सुविधाओं के साथ ही साबुन, पानी और खाना बनाने की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। इन केंद्रों में रहने के दौरान महिलाएं स्वयं सहायता समूहों की गतिविधियों और अपनी दिलचस्पी की गतिविधियों में शामिल हो सकती हैं और अपने शौक पूरे कर सकती हैं। इन केंद्रों में पुस्तकालय, सिलाई की मशीनें और किचन गार्डन जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। कुल मिलाकर इन सुविधाओं से महिलाओं को एक ऐसा दोस्ताना माहौल मिलता है, जिसमें वे अपने मासिक धर्म के समय को गरिमापूर्ण ढंग से बिता सकती हैं।

मासिक धर्म : महिलाओं की पीड़ा दूर करने और मानसिकता बदलने की कवायद
जनजातीय समुदायों की इन कुप्रथाओं को दूर करने और अपने व्यवहार में बदलाव लाने के लिए प्रोत्साहित करने के वास्ते एक ऐसे आंदोलन की जरूरत थी, जिसे महिलाएं न सिर्फ स्वीकार करें बल्कि जिसको आगे बढ़ाने की उनके भीतर से इच्छा हो। इसके लिए युवा महिलाओं की क्षमता में वृद्धि और उनका प्रशिक्षण जरूरी था, ताकि उन्हें मासिक धर्म निष्कासन की इस कुपरंपरा का विरोध करने में मदद मिल सके, वे मासिक धर्म के जैविक महत्व को समझ सकें और सुरक्षित मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन प्रक्रिया को अपना सकें। शुरुआत में जिला योजना विकास समिति द्वारा प्रदत्त राशि से और बाद में महत्वाकांक्षी जिला कार्यक्रम के तहत विशेष केंद्रीय सहायता फंड और पेसा (पीईएसए) के साथ-साथ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (यूएमईडी-एमएसआरएलएम) के स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के श्रम योगदान से 23 ऐसे केंद्र स्थापित किए गए। इन केंद्रों की वास्तुशिल्प योजना, लेआउट और सामग्री का अनुपात स्थानीय गृह निर्माण शैली और पैटर्न को ध्यान में रखते हुए किया गया। आगामी दो वर्षों में जिला प्रशासन अपनी इस पहल में वृद्धि कर 400 से ज्यादा ऐसे केंद्र स्थापित करना चाहता है।

मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन, स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के तहतः

स्पष्ट तौर पर मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) सिर्फ स्वच्छता के बारे में नहीं है। यह किसी बालिका की गरिमा की रक्षा करते हुए उसे ऐसा अवसरों भरा जीवन प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसमें वह अपने सपनो को साकार कर सके और हम एक लैंगिक संतुलन वाले विश्व को कायम करने का लक्ष्य हासिल कर सकें।
इस महत्वपूर्ण आयाम को हासिल करने के लिए मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन को सरकार के महत्वपूर्ण स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण (एसबीएम-जी) के अनिवार्य कार्यक्रम के तौर पर शामिल किया गया। यह कार्यक्रम सभी घरों और स्कूलों में शौचालयों के निर्माण की जरूरत को रेखांकित करता है, जोकि मासिक धर्म, स्वच्छता के लिए बेहद जरूरी है और सुरक्षित मासिक धर्म, स्वच्छता प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है। इसके लिए कुशलता विकास के साथ-साथ स्कूलों और सार्वजनिक शौचालयों में सैनेटरी नैपकिन डिस्पेंसर और इनसिनिरेटर्स लगाने की भी जरूरत है।

किशोरियों और महिलाओं में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के निर्देश जारी

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) ने किशोरियों और महिलाओं के समर्थन में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनमें बताया गया है कि राज्य सरकारों, जिला प्रशासनों, इंजीनियरों और तकनीकी विशेषज्ञ के साथ-साथ स्कूलों के प्रधानाचार्यों और शिक्षकों को इस दिशा में क्या कदम उठाना जरूरी है। स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण (एमबीएमजी) कार्यक्रम के तहत मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के बारे में जन जागरूकता और कुशलता बढ़ाने के लिए आईईसी के तहत धनराशि उपलब्ध है और इसके साथ ही इस तरह के प्रयासों के प्रचार के लिए स्वयं सहायता समूहों की मदद भी उपलब्ध है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए राज्यों ने विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनके जरिए मासिक धर्म के संबंध में प्रचलित मिथ्या बातों को दूर करने की कोशिश की जा रही है तथा किशोरियों और महिलाओं को इसके बारे में बात करने और अपने भ्रम दूर करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

महिलाएं मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता के बारे में जागरूक हुई

विभिन्न राज्यों में इस संबंध में चल रही गतिविधियों को देखने के बाद स्पष्ट है कि मासिक धर्म के विषय में ग्रामीण इलाकों में पहले की तुलना में अधिक खुले तौर पर बातचीत की जा रही है। महिलाएं और किशोरियां मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता के महत्व के बारे में अधिक जागरूक हुई हैं और जिनकी पहुंच बन सकी है वह किशोरियां और महिलाएं मासिक धर्म के दौरान सैनेटरी पैड या साफ कपड़ा इस्तेमाल कर रही हैं। अब वे अपनी उस परंपरागत तीसरे दिन तक स्नान न करने, मंदिर या रसोई में न जाने और अचार आदि न छूने की प्राचीन प्रथा पर सवाल उठाने लगी हैं। स्कूलों में इनसिनिरेटर्स स्थापित किए जा रहे हैं और इन्हें देश के हर घर और हर स्कूल तक पहुंचाने की जरूरत है। महिलाओं और किशोरिय़ों को अपने पूर्ण सामर्थ्य तक पहुंचने में मदद करने के लिए, जो प्रभावी मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन सुनिश्चित कर सकता है, अभी बहुत काम किया जाना है।

महिलाओं को पीरियड्स के बारे में बात करने में शर्माना नहीं चाहिए

सैनेटरी कचरे का निपटान एक बड़ी समस्या है, क्योंकि डिस्पोजेबल सेनेटरी नैपकिन्स में इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल नहीं है और यह स्वास्थ तथा पर्यावरण को नुकासन पहुंचा रहा है। ठोस कचरा रणनीति के तहत जरूरी है कि राज्य संगठित तौर पर कचरे को एकत्रित करने, उसका निपटान करने और ऐसे कचरे का परिवहन करने का काम करें, ताकि हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित कर सकें। सुरक्षित और उचित कचरा प्रबंधन समाधान आज की जरूरत है। अब किशोरियों और महिलाओं को अपने पीरियड्स के बारे में बात करने और अपने भ्रमों को दूर करने में शरमाना नहीं चाहिए। अगर हम उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित नहीं करेंगे तो वह जीवन के बहुत से आयामों को महसूस नहीं कर पाएंगी और परिणामस्वरूप स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करेंगी।

 

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