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Saturday, July 27, 2024

NEP 2020 : राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं पड़ोसी कौशल, बदलेगी तस्वीर

(प्रोफेसर टी. वी. कट्टीमनी)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमारे आस पड़ोस की चुनौतियों से संबंधित एकीकृत एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, संचार और अनुसंधान के विकास के लिए है। अब तक पाठ्यपुस्तकों और समाज, शोध और सामाजिक चुनौतियों के बीच कोई संबंध नहीं रहा है। लोगों की भाषा और कक्षा की पाठ्यपुस्तकों के बीच कोई समन्वय नहीं है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) 2020 ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से इन बड़े अंतरालों को बहुत गंभीरता से लिया है। एनईपी ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से इसे दूर करने का लगातार प्रयास कर रहा है। प्रीस्कूल शिक्षा से लेकर छठी कक्षा तक, एनईपी की राय है कि छात्रों के साथ-साथ अभिभावकों तक पहुंचने के लिए मातृभाषा ही शिक्षा का माध्यम होनी चाहिए। इसी तरह, स्नातक कार्यक्रमों के लिए पाठ्यक्रम और क्रेडिट फ्रेमवर्क के तहत किए गए संशोधन जैसे दो पूर्णकालिक शैक्षणिक कार्यक्रमों को एक साथ आगे बढ़ाना, हाइब्रिड शिक्षण के माध्यम से शिक्षा को आगे बढ़ाना जिसमे भौतिक और ऑनलाइन दोनों ही मोड अंतर्भुक्त हो, 4-वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम (degree course) को बढ़ावा देना आदि राष्ट्रीय शिक्षा नीति2020की एक नई वास्तुकला है।

NEP 2020 : राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं पड़ोसी कौशल, बदलेगी तस्वीर

एनईपी 2020 का दृष्टिकोण समग्र और यथार्थवादी भी है, क्योंकि भारत गांवों का देश है। हमारी साठ प्रतिशत आबादी कृषि गतिविधियों और उत्पादन पर निर्भर है। हमारे छात्र लोग विषम परिवेशों से आते हैं। वे कई धर्मों, बहुभाषी पृष्ठभूमि और बहु आर्थिक स्तरों से हैं। पाठ्य पुस्तकों और शिक्षकों से छात्र समुदाय को संबोधित करने की अपेक्षा की जाती है।
आदिवासी एवं पहाड़ी क्षेत्रों में समस्या अधिक जटिल है। कई छात्रों को भाषा के कारण सीखने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उनमें से कई छात्र ऐसे भी हैं जो विविध छात्र समुदाय तक पहुंचने वाली पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं। शिक्षक को बहुआयामी व्यक्तित्व वाला और आजीवन सीखने वाला भी होना चाहिए। आधुनिक दुनिया की अप्रत्याशित तकनीक ने दुनिया को और प्रतिस्पर्द्धात्मकबना दिया है। विशेषकर ग्रामीण पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों के डीएनए में कोई न कोई कौशल अवश्य होता है । स्कूल से पहले, वे अपने घरों की सफाई करेंगे, अपनी गायों और भैंसों की देखभाल करेंगे, घास इकट्ठा करेंगे, अपने परिवार के लिए पीने का पानी लेंगे और स्कूल जाएंगे। वे परिवार की घरेलू कामकाज में भी भाग लेंगे और कई बार वे अपने पारिवारिक कौशल जैसे मिट्टी के बर्तन बनाना, बढ़ईगीरी, लोहार, सुनार आदि कार्य में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। लेकिन वर्तमान के पाठ्यपुस्तकों और उनके पारिवारिक कौशल के बीच कोई समन्वय नहीं है। एनईपी 2020 हमारी कृषि, हमारे जल निकाय, पोखर, जल संसाधन, गाय, भैंस, भेड़, बकरी और मुर्गी पालन आदि को हमारे पाठ्यपुस्तकों में शामिल करने पर ज़ोर देता हैं। यह एक ऐसी समाज की परिकल्पना करता है जिसमे समाज और कक्षा का वातावरण अनुकूल हो। कौशल शिक्षा के प्रवर्तक के रूप में एनईपी 2020 पाठ्यक्रम के व्यावसायीकरण के माध्यम से सीधे शिक्षा जगत एवं उद्योग जगत में संबंध स्थापित कर रहा है और युवाओं को बढ़ईगीरी, लोहारी, यांत्रिकी, मरम्मत कार्यशालाओं आदि में प्रशिक्षण जैसे आय-सृजन कौशल और उद्यमिता सिखाकर उन्हें सशक्त बना रहा है। छात्रों के अंतर्निहित कौशल का संवर्धन के लिए यह अति आवश्यक है । इसके अलावा, आने वाले समय में विश्लेषणात्मक कौशल जैसे प्रतिभा प्रबंधन, ग्राहक सेवा उद्योग का विकास,कृषि, डिजिटल वाणिज्य, डेटा विज्ञान और व्यापार में बड़े पैमाने पर नौकरी में वृद्धि की उम्मीद है। भविष्य की नौकरियों के लिए भविष्य के कौशल को बढ़ावा देने के लिए एनईपी 2020 ध्यान केंद्रित करता है।इसके उपरांत,आदिवासियों के लिए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS)को मजबूत करना, नए शिक्षकों की नियुक्ति को प्राथमिकता देना, नए ईएमआरएस खोलना, 10-15 ऐसे छोटे स्कूलों को जोड़ने वाले ‘वन स्कूल कॉम्प्लेक्स’ का पुनर्निर्माण करना आदि एनईपी 2020 के तहत सरकार द्वारा उठाए गए कुछ प्रमुख कदम हैं। इसमें समावेशन और समग्र विकास की अवधारणा भी शामिल है, जहां दिव्यांगों, महिलाओं, समाज के तीसरे वर्ग जैसे एलजीबीटीक्यू समुदाय और SC/ST, पीवीटीजी, डीएनटी, एनटी और एसएनटी जैसे एसईडीजी को सशक्त बनाने और उन्हें एनईपी 2020 के तहत समान अवसर प्रदान करने पर केंद्रित है।

कृषि शक्तियों को पाठ्यपुस्तकों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए

हम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कृषि उत्पादक हैं। हम अपना गेहूं और चावल निर्यात कर रहे हैं, हमारी चीनी की भारी मांग है, हमारा जैविक गुड़ बेहतरीन गुणवत्ता वाली निर्यात वस्तु है। हमारे समाज की इन कृषि शक्तियों को हमारी पाठ्यपुस्तकों और कक्षा के विचार-विमर्शों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए। यदि कटाई से पहले और कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों, हमारे अपने खुदरा सिस्टम द्वारा विपणन की जाने वाली वैज्ञानिक और जैविक पैकेजिंग सामग्री पर हमारे शोध को ठीक किया जाए, तो ऑनलाइन प्रणाली के द्वारा अतिरिक्त मूल्य बन जाएगी और अधिक लाभ दिलाएगी। इसी तरह 2023 को “अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष” घोषित करने के साथ ही भारत विश्व खाद्यान्न बाजार में विश्व में अपना वर्चस्व स्थापित कर चुका है। इसके अलावा, अनुसंधान और विकास (R&D) को बढ़ावा देकर विकास क्षेत्र में एक नई ऊंचाई तक पहुंचा जा सकता है। इसे सुनिश्चित करने के लिए उच्च शिक्ष संस्थानों में R&D सेल की स्थापना के साथ-साथ नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF) का भी गठन किया गया है।

अनुसंधान और विकास को मजबूत करना

एनईपी 2020 का लक्ष्य दुनिया के सामने भारत की सौम्य शक्ति को प्रदर्शित करने के लिए अनुसंधान और विकास को मजबूत करना है। यह सुनिश्चित करने के लिए भारतीय लोक संस्कृति और मौखिकता पर आधारित अनुसंधान क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। भारतीय ज्ञान प्रणाली को एनटीए-नेट विषय के रूप में मान्यता मिलना इस दिशा में एक बड़ा कदम है। उच्च शिक्षा संस्थानो में उत्कृष्टता केंद्रों के रूप में योग अध्ययन की स्थापना के साथ, आयुर्वेद शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में आयुष डॉक्टरों को शामिल करना, भारत की सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक कूटनीति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संचालित करने के लिए आईसीसीआर का बजट बढ़ाना एनईपी के तहत उठाया गया एक बड़ा कदम है। इसके अलावा, भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए भारतीय ज्ञान प्रणाली को वैश्विक मान्यता दिलाने का दृष्टिकोण लगातार आगे बढ़ रहा है। हेल्थकेयर में R&D का महत्व बढ़ाना राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का एक निर्णायक उपलब्धि है, जिसके तहत वैक्सीन का विकास, सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया के लिए लगभग 89,155 करोड़ के बजट का आवंटन, आदि हमें “फिट इंडिया, हिट इंडिया” के उद्देश्य को हासिल करने के लिए मदद कर सकता है। ।

गोंड कला में प्रयुक्त प्राकृतिक रंगों पर शोध की जरूरत

NEP 2020 : राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं पड़ोसी कौशल, बदलेगी तस्वीर

एनईपी 2020 अनुसंधान, विपणन और स्थानीय उत्पादन पर मुखर है। यदि हम आयात कम करें और निर्यात बढ़ाएं तो स्वाभाविक रूप से किसान की आय दोगुनी और लाभदायक होगी। घरेलू उद्योग, लघु उद्योग, खादी और ग्राम उद्योग, मिट्टी के बर्तन उद्योग का वैश्विक परिदृश्य पर एक बड़ा बाजार है। इन्हें अधिक कलात्मक, आकर्षक, जैविक बनाने के लिए हमें वाई-फाई और मार्केटिंग कौशल का सहारा लेना होगा। मध्य प्रदेश की गोंड कला, पिथौरा कला को रसायन विज्ञान विभाग के साथ-साथ प्रबंधन विभाग की कक्षाओं में प्रवेश देना चाहिए। जिससे रसायन विज्ञान और प्रबंधन के छात्र गोंडा कला की गतिशीलता को जान सकेंगे। तीखे मोड़, फूल, फल, पक्षी, सांप, बाघ, हाथी, जलराशि, भूमि, आकाश जीवन जो गोंडा कला के एक छोटे से टुकड़े का हिस्सा हैं, वैश्विक बाजार का हॉट केक बन जाएंगे। हमें गोंडा कला में प्रयुक्त प्राकृतिक रंगों पर शोध पर काम करने की जरूरत है। अनुसंधान और विज्ञान द्वारा समर्थित सूक्ष्म विवरण उन वैश्विक उपभोक्ताओं को आकर्षित करेगा जो स्वास्थ्य के प्रति बहुत जागरूक हैं। बैगा जनजाति द्वारा तैयार जैविक परिधान किफायती, आकर्षक और स्वास्थ्यवर्धक हैं। इसके अलावा, अराकू (आंध्र प्रदेश) की अरेबिया कॉफी अपनी जंगली सुगंध के लिए प्रसिद्ध है।

एनईपी अनुसंधान, विपणन और स्थानीय उत्पादन पर मुखर

एनईपी अनुसंधान, विपणन और स्थानीय उत्पादन पर मुखर है। यदि हम आयात कम करें और निर्यात बढ़ाएं तो स्वाभाविक रूप से किसान की आय दोगुनी और लाभदायक होगी। घरेलू उद्योग, लघु उद्योग, खादी और ग्राम उद्योग, मिट्टी के बर्तन उद्योग का वैश्विक परिदृश्य पर एक बड़ा बाजार है।

NEP 2020 : राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं पड़ोसी कौशल, बदलेगी तस्वीर

इन्हें अधिक कलात्मक, आकर्षक, जैविक बनाने के लिए हमें वाई-फाई और मार्केटिंग कौशल का सहारा लेना होगा। इसमें हमारी चित्रकला, हमारे गीत, नृत्य, वाद्ययंत्र आदि एक विशेष भूमिका निभाते हैं। मध्य प्रदेश की गोंड कला, पिथौरा कला को दृश्यकला विभाग के साथ-साथ रसायन विज्ञान विभाग की कक्षाओं में प्रवेश देना चाहिए। जिससे रसायन विज्ञान और दृश्यकला के छात्र गोंडा कला की गतिशीलता को जान सकेंगे। मोड़, फूल, फल, पक्षी, सांप, बाघ, हाथी, जलराशि, भूमि, आकाश जीवन जो गोंडा कला के एक छोटे से टुकड़े का हिस्सा हैं,हमें गोंडा कला में प्रयुक्त प्राकृतिक रंगों पर शोध पर काम करने की जरूरत है।

 अनुसंधान को जमीनीस्तर की चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए

अनुसंधान और विज्ञान द्वारा समर्थित सूक्ष्म विवरण उन वैश्विक उपभोक्ताओं को आकर्षित करेगा जो स्वास्थ्य के प्रति बहुत जागरूक हैं। बैगा जनजाति द्वारा तैयार किए जाने वाले जैविक परिधान किफायती, आकर्षक और स्वास्थ्यवर्धक हैं। इसके अलावा, अराकू (आंध्र प्रदेश) की अरेबिया कॉफी अपनी जंगली सुगंध के लिए प्रसिद्ध है।प्रसिद्ध एटिकोप्पाका खिलौने (आंध्र प्रदेश) अपनी जातीयता और जैविक प्रकृति के कारण यूरोपीय दुनिया में निर्यात किए जाते हैं। यदि हमारी अराकू कॉफी, या एटिकोप्पका खिलौनों की गतिशीलता प्रयोगशालाओं और वाई-फाई द्वारा समर्थित हमारे उच्च श्रेणी के अनुसंधान में प्रवेश करेगी तो देश का हर एक क्षेत्र एक बड़ा आर्थिक क्षेत्र बन जाएगा। प्रयोगशाला अनुसंधान को जमीनीस्तर की चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए; हमारी प्रयोगशालाओं द्वारा जब प्रयोगात्मक शिक्षण प्रणाली पर ज़ोर दिया जाएगा तभी शिक्षा जगत और समाज के बीच का अंतर कम होगा।

शिक्षा और समाज के बीच कोई अंतर नहीं होगा

जब शिक्षा और समाज के बीच कोई अंतर नहीं होगा, तो उद्योग स्वचालित रूप से शिक्षा एवं अनुसंधान के मैदान में प्रवेश करने में बहुत रुचि लेंगे। तदानुसार,सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय और कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय जैसे विभिन्न मंत्रालयों ने आत्मनिर्भर भारत के लिए समझौता ज्ञापन किया हैं। इसी प्रकार, अटल इनोवेशन मिशन के माध्यम से अटल इन्क्यूबेशन सेंटर की स्थापना, जो भारत में उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख पहल है, इस संबंध में एक बड़ा कदम है।इन हस्तक्षेप के माध्यम से शिक्षा जगत उद्योगों और समाज से जुड़ सकता है।फिर समाज में बेरोजगारी, गरीबी या आर्थिक असंतुलन का सवाल ही नहीं उठता। नौकरी चाहने वाले नौकरी देने वाले बन जाएंगे। शिक्षा जगत की गतिशीलता अधिक जीवंत और समावेशी है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एक संवेदनशील नागरिक समाज बनाएगी और यह समाज, प्रौद्योगिकियों, कृषि और सामाजिक विज्ञान में नवाचारों को बढ़ावा देगी।

भारतीय समाज उत्सवों एवं मेलों का समाज

भारतीय समाज उत्सवों एवं मेलों का समाज है। हमारे समाज की पारंपरिक प्रथाएँ वैज्ञानिक भी हैं और मनोवैज्ञानिक भी। स्वदेशी ज्ञान प्रणाली को वैज्ञानिकों और प्रयोगशालाओं द्वारा बेहेतर किया जाना चाहिए, बी-स्कूलों द्वारा बाजारीकरण किया जाना चाहिए और विश्व स्तरीय नियमों द्वारा सिद्ध किया जाना चाहिए। अगर हम प्रकृति के अनुकूल स्वास्थ्य देखभाल आयुर्वेद को समझते हैं, हमारे भारतीय संगीत की कालजयी लय, हमारे मंदिर के आधुनिक वास्तुकला, हमारे भारतीय व्यंजनों की सुगंध जो हमारे भारतीय समाज की सौम्य शक्ति हैं, आदि को समझते है तो हमारी अर्थव्यवस्था अगले दस वर्षों तक बढ़ जाएगी। दुर्भाग्य से, हमारे शिक्षा जगत ने हमारी अपनी ताकत और सॉफ्ट पावर की उपेक्षा की है। इसलिए हमें अपने पड़ोस कौशल जैसे की योग, आयुर्वेद, संगीत, अपनी जड़ी-बूटियों, अपने मसालों पर पुनर्विचार करना चाहिए जिससे हमें अपने बच्चों को जीवन कौशल, सामाजिक कौशल, व्यक्तिगत स्वच्छता, संचार कौशल, समूहों के साथ काम करना, साझेदारी की शक्ति को साझा करना आदि की ताकत को सीखा सके। ये कौशल भारत के लिए नए नहीं हैं। वे हमारे सामाजिक मूल्यों का हिस्सा थे। देखभाल और साझा करना भारतीय समाज की एक आम प्रथा है। वैश्विक मंच पर शिक्षा देने से पहले हमें अपने पड़ोस पर नजर डालनी होगी जो सदाबहार रत्नगर्भा वसुन्धरा है।

लेखक: प्रोफेसर टी. वी. कट्टीमनी, वर्तमान में केन्द्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश के कुलपति हैं।
-tvkattimani@gmail.com

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