नारी का स्वरूप तो,
अनेक रिश्तो से भरा है।
विनाश की ओर हुआ अग्रसित वही,
जो उसके दुख का कारण बना है।
भाग्य बन अगर लक्ष्मी है, तो शालीनता में पार्वती।
रौद्र रूप में आ जाए तो,
चंडी बन पहुंचाए क्षति।
मां हे ममता रूप में,
बहन रूप में सत्कार है।
बेटी बनकर गर्व है तो,
पत्नी रूप में वह प्यार है।
मन से भोली, दिल से साफ,
थोड़ी चंचल है स्वभाव में।
फिर भी क्यों प्रश्न है उठते,
उसके अस्तित्व पर समाज में।
अबला कहलाई जाने वाली,
सर्व शक्तिशाली है।
ना समझ पाए त्रिदेव जिसे,
उस नारी की महिमा निराली है।
पीछे नहीं किसी काम में,
फिर भी कहलाती कमजोर है।
लोग भूल जाते है ये बात क्यू,
हर कामयाब आदमी की,
एक नारी के हाथो जीवन डोर है।
लेखक- गोविंद अवस्थी
अलीगढ़ उत्तर प्रदेश