–अकाली दल की कोर कमेटी में लिया फैसला, बीजेपी से नहीं रखेंगे संबंध
–हरमीत कालका की पत्नी ने दिया इस्तीफा, राणा व राजा अड़े
–दिल्ली में अकाली कोटे से बीजेपी के टिकट पर जीते हैं 5 पार्षद
–एनडीए से अलग होने के बाद अकाली अब दिल्ली में भी हुए अलग
नई दिल्ली/ टीम डिजिटल : भाजपा एवं एनडीए से अलग होने के बाद अकाली दल ने दिल्ली में भाजपा से रिश्ता तोडऩे को लेकर पार्टी ने सोमवार को कोर कमेटी की बैठक बुलाई, जिसमें भाजपा एवं दिल्ली नगर निगम से जुड़े लाभ के पदों एवं कमेटियों की चेयरमैनी से इस्तीफा देने का फैसला लिया गया। बैठक के बाद एक पार्षद मनप्रीत कौर कालका ने इस्तीफा भी दे दिया, लेकिन बाकी दो पार्षदों परमजीत सिंह राणा एवं राजा इकबाल सिंह की स्थिति संदिग्ध है। दो दिनों से वे अपना फोन बंद करके अज्ञातवास में चले गए हैं। कोर कमेटी ने इन्हें मैसेज के जरिये अपना फैसला भेज दिया है, लेकिन दोनों पार्षद इस्तीफा देने को तैयार नहीं हैं। इसको लेकर भी सियासत तेज हो गई है।
बता दें कि 2017 के निगम चुनाव में अकाली दल कोटे से पांच पार्षद भाजपा के चुनाव चिन्ह से जीते थे। इनमें से 3 पार्षद मौजूदा नगर निगम की कमेटियों के पदों पर हैं। हालांकि कोर कमेटी के फैसले के तुरंत बाद मनप्रीत कौर कालका ने ही इस्तीफा दिया है। वह दक्षिण दिल्ली नगर निगम में डिप्टी चेयरमैन लाइसेंसिंग एवं तहबाजारी के पद पर थीं मनप्रीत कौर अकाली दल के प्रदेश अध्यक्ष हरमीत कालका की पत्नी हैं। उनका इस्तीफा देना मजबूरी भी थी, लेकिन बाकी दो पार्षद गायब हैं।
जानकारी के मुताबिक अकाली दल के प्रदेश कार्यालय में सोमवार की शाम प्रदेश अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका की अध्यक्षता में कोर कमेटी की बैठक हुई। बैठक में वरिष्ठ नेता मनङ्क्षजदर ङ्क्षसह सिरसा एवं अवतार सिंह हित वर्चूअल तरीके से शामिल हुए। इस मौके पर पार्टी की हाईकमान द्वारा लिए गए फैसलों पर चर्चा की गई। सूत्रों की माने तो चर्चा के दौरान कोर कमेटी के दो सदस्यों ने निगम पार्षदी से इस्तीफा दिलवाने की बात कही। उन्होंने कहा कि जब अकाली दल एनडीए से ही अलग ही हो गया है तो दिल्ली के पार्षद क्यों भाजपा के चुनाव चिन्ह पर बने रहेंगे, इन्हें चेयरमैनी के साथ पार्षदी से भी इस्तीफा देना चाहिए। लेकिन, फैसला समितियों के पदों के इस्तीफा देने के रूप में हुआ।
इससे पहले कल रात को दिल्ली कमेटी के उपाध्यक्ष कुलवंत सिंह बाठ के कमेटी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की अफवाह उड़ी, लेकिन बाद में पता चला कि बाठ के इस्तीफे पर हस्ताक्षर ही नहीं हैं। साथ ही इस्तीफा कमेटी अध्यक्ष मनजिंदर ङ्क्षसह सिरसा को लिखा गया है। जबकि कमेटी एक्ट के अनुसार कमेटी अध्यक्ष कार्यकारिणी सदस्य एवं पदाधिकारी का इस्तीफा स्वीकार ही नहीं कर सकता। इसे स्वीकार करने के लिए कमेटी का जनरल हाउस ही अधिकृत है। बाठ की पत्नी गुरजीत कौर बाठ भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ी थी और भजनपुरा से निगम पार्षद हैं। लेकिन बाठ दावा करते रहे हैं कि उनकी पत्नी अकाली टिकट से नहीं बल्कि भाजपा के टिकट पर लड़ी थी।
अकाली दल छोड़ सकते हैं राणा एवं इकबाल : सूत्र
सूत्रों की माने तो इस्तीफों की इस सियासत के बीच अकाली दल के कोर कमेटी की किरकिरी हुई है, क्योंकि दो सदस्य इस्तीफा ना देने का मन बनाए बैठे हैं। परमजीत सिंह राणा कोर कमेटी के सदस्य भी हैं, बावजूद इसके वह ना तो मीटिंग में आए और ना ही कोई संपर्क किया। इससे माना जा रहा है ये बागी हो गए हैं और किसी भी समय सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा की पार्टी शिरोमणि अकाली दल डेमोके्रटिक में शामिल हो सकते हैँ।
सांसद सुखदेव ढींढसा के संपर्क में हैं कई दिग्गज अकाली : सूत्र
सियासी हलकों में चर्चा है कि सांसद सुखदेव सिंह ढीढसा से पिछले कुछ दिनों के बीच अकाली दल के शीर्ष नेताओं की बैठकें हुई हैं, जिसमें कमेटी अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा भी शामिल हैं। ढींढसा से जुडे लोगों का दावा है कि अकाली दल के कई कददावर नेता किसी भी क्षण उनकी पार्टी में आ सकते हैं। इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि पंजाब में इस्तीफे को भुनाने में लगी अकाली दल नेताओं को दिल्ली में अपने नेताओं से इस्तीफा लेना भी मुश्किल हुआ पड़ा है। सूत्रों के मुताबिक भाजपा की इस सारी गतिविधियों पर गंभीर नजर है और माना जा रहा है कि बागी पार्षदों को अंदर खाते से भाजपा भी अपना समर्थन दे सकती है। यह स्थिति अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के लिए चौकाने वाली होगी।
दिल्ली के अकालियों के लिए आरएसएस हुई अछूत
एनडीए-भाजपा से अलग होते ही शिरोमणि अकाली दल एवं उनके नेताओं के सुर बदल गए हैं। कल तक जिस भाजपा का पटका गले में डालकर वोट मांगते थे आज वही भाजपा और आरएसएस (संघ) इनके लिए अछूत हो गई है। यह खुलासा तब हुआ जब अकाली दल की कोर कमेटी ने फैसला लिया कि दिल्ली नगर निगम की समितियों में पदों पर बैठे उनके पार्षद इस्तीफा देंगे। लेकिन इस बीच पता चला कि दो पार्षद भूमिगत हो गए हैं। अकाली दल के प्रदेश अध्यक्ष हरमीत कालका ने साफ कहा कि अब उनको (पार्षदों) फैसला लेना है कि वह शहीदों की जत्थेबंदी के साथ हैं या आरएसएस बीजेपी के साथ हैं।