(ज़किया रूही)
आजादी के 75वें गौरवशाली वर्ष में सभी नागरिकों ने हर घर तिरंगा अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और 13 से 15 अगस्त के बीच अपने अपने घरों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया। देशभक्ति का यह उत्साह अनायास ही उस समय की याद दिलाता है जब ब्रिटिश राज में जनता को ध्वज फहराने के अपने अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ता था। इसी संघर्ष गाथा से हिंदी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान के रूप में भारत को अपनी पहली महिला सत्याग्रही मिलीं।
आज से लगभग 100 वर्ष पहले सन् 1922-23 के बीच ब्रिटिश शासन की वैधता को चुनौती देने के लिए ध्वज सत्याग्रह ने देशव्यापी आंदोलन का रूप धारण किया था, जिसकी शुरुआत मध्यप्रदेश के जबलपुर से हुई। झंडा सत्याग्रह के जबलपुर अध्याय में सुभद्रा कुमारी चौहान एक प्रमुख नेता के रूप में उभरीं l 18 मार्च 1923 को जबलपुर के टाउन हॉल में झंडा फहराने के अपराध में गर्भवती सुभद्रा कुमारी चौहान को जेल भेजा गया और ऐसे वे देश की प्रथम महिला सत्याग्रही बनीं l राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में सुभद्रा कुमारी चौहान की असहयोग आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक सभी चरणों में सक्रिय भूमिका रही। 1920-21 से ही वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्य थीं और गांधीजी के नेतृत्व में सन् 1921 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने पूरे मनोभाव से भाग लिया। सुभद्रा कुमारी चौहान ने 1930 के दशक में मध्यप्रांतीय कांग्रेस कमेटी की महिला वर्ग की अध्यक्षता की और सन् 1936 और 1946 में वे प्रांतीय विधानसभा के लिए चुनी गईं।
राष्ट्रीय काव्यधारा की प्रमुख रचनाकार के रूप में अपने काव्य साहित्य से भी सुभद्रा कुमारी चौहान ने भारतीय जनमानस में राष्ट्रीय चेतना जगाई। सुभद्रा कुमारी की इन पंक्तियों “सबल पुरुष यदि भीरू बने, तो हमको दे वरदान सखी; अबलाएं उठ पड़ें देश में, करें युद्ध घमासान सखी” ने जबलपुर की आम सभाओं में बड़ी संख्या में स्त्रियों को जोड़ा। झांसी की रानी को जननायिका बनाने मे उनकी अमर कृति “खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी” का बहुत बड़ा योगदान रहा। उनकी कविता ‘जलियांवाला बाग में बसंत’ जलियांवाला नरसंहार की मार्मिक वेदना का सचित्र वर्णन करती है। एक अन्य कविता ‘वीरों का कैसा हो वसंत’ रणबांकुरों को राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है। अपनी 88 कविताओं और 46 कहानियां से सुभद्रा कुमारी चौहान ने अद्भुत संवेदनात्मक शक्ति के साथ अशिक्षा, अंधविश्वास, पर्दा प्रथा, जातिप्रथा, सतिप्रथा आदि रूढ़ियों पर भी प्रहार किया। सुभद्रा कुमारी चौहान को अपने ओजस्वी काव्य-सहित्य के लिए ‘राष्ट्रीय वसंत की प्रथम कोकिला’ की संज्ञा दी गई है।
राष्ट्रीय आंदोलन में सुभद्रा कुमारी चौहान के अतुलनीय योगदान को सम्मान देते हुए भारतीय डाक ने उनपर वर्ष 1976 में 25 पैसे का डाक टिकट जारी किया है। भारतीय तटरक्षक बल ने तीव्रगति पोत आईसीजीएस सुभद्रा कुमारी चौहान और भारतीय नौसेना ने पोत आईएनएस सुभद्रा का नामकरण उनके सम्मान में किया है। जबलपुर केंद्रीय जेल में महिला वार्ड का भी नामकरण सुभद्रा किया गया है और नगर निगम कार्यालय में उनकी आदमकद प्रतिमा लगाई गई है।
आजादी के अमृत महोत्सव में स्वतंत्रता आंदोलन के अल्पज्ञात और अचर्चित नायक नायिकाओं के आदर्शों से प्रेरणा लेकर उसे राष्ट्रीय संस्कृति का हिस्सा बनाना इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है। सुभद्रा कुमारी चौहान के प्रेरणादायी आदर्शों को नमन।
लेखक: ज़किया रूही, मध्य प्रदेश सरकार में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत हैं।