33.1 C
New Delhi
Saturday, July 27, 2024

महिलाएं न तो पुरुषों के अधीन हैं, न ही उन्हें किसी के अधीन रहने की जरूरत

नयी दिल्ली/अदिति सिंह। सुप्रीम कोर्ट  ( Supreme Court)  ने पुरुषों और महिलाओं को दी जाने वाली लैंगिक भूमिकाओं के बारे में कुछ सामान्य रूढ़ियों को ‘गलत’ करार देते हुए कहा है कि महिलाएं न तो पुरुषों के अधीन हैं और न ही उन्हें किसी के अधीन होने की जरूरत है क्योंकि संविधान सभी को समान अधिकारों की गारंटी देता है। ‘हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स’ (Handbook on Combating Gender Stereotypes’) शीर्षक वाली इस पुस्तिका में लैंगिक रूप से अनुचित शब्दों की एक शब्दावली शामिल है और वैकल्पिक शब्दों और वाक्यांशों का सुझाव दिया गया है जिनका उपयोग किया जा सकता है। इस पुस्तिका का बुधवार को विमोचन किया गया। लैंगिक भूमिकाओं पर आधारित रूढ़िवादिता पर, पुस्तिका में कुछ सामान्य रूढ़िवाद को रेखांकित करने वाली एक तालिका है और वे गलत क्यों हैं, इसका कारण भी बताया गया है। इस रूढ़िवाद पर कि महिलाओं को पुरुषों के अधीनस्थ होना चाहिए , पुस्तिका में कहा गया है, भारत का संविधान सभी लिंग के व्यक्तियों को समान अधिकारों की गारंटी देता है। महिलाएं न तो पुरुषों के अधीन हैं और न ही उन्हें किसी के अधीन होने की आवश्यकता है। महिलाओं को घर के सभी काम करने चाहिए , इस रूढ़िवाद पर पुस्तिका में कहा गया है कि वास्तविकता यह है कि सभी लिंग के लोग घर के काम करने में समान रूप से सक्षम हैं। पुरुषों को अक्सर यह बताया जाता है कि केवल महिलाएं ही घर का काम करती हैं। एक और गलत रूढ़ि जिसे पुस्तिका में उजागर किया गया है वह है – पत्नी को अपने पति के माता-पिता की देखभाल करनी चाहिए। इसमें कहा गया है कि वास्तविकता यह है कि परिवार में बुजुर्ग व्यक्तियों की देखभाल की जिम्मेदारी सभी लिंग के व्यक्तियों पर समान रूप से है और यह केवल महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं है। पुस्तिका में इस आम रूढ़िवाद पर भी चर्चा की गई है कि जो महिलाएं घर से बाहर काम करती हैं उन्हें अपने बच्चों की परवाह नहीं होती है। इसमें कहा गया है कि घर से बाहर काम करने का किसी महिला के अपने बच्चों के प्रति प्यार या चिंता से कोई संबंध नहीं है और सभी लिंग के माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल के साथ-साथ घर से बाहर भी काम कर सकते हैं। इसमें कहा गया है कि यह आम रूढ़ि है कि जो महिलाएं मां भी हैं, वे कार्यालय में कम सक्षम हैं क्योंकि उनका ध्यान बच्चे की देखभाल से भटकता है। पुस्तिका के अनुसार यह गलत है क्योंकि जिन महिलाओं पर दोहरा दायित्व होता है, अर्थात घर से बाहर काम करना और बच्चों का पालन-पोषण करना, वे कार्यस्थल में भी कम सक्षम नहीं होती हैं। पुस्तिका में एक और रूढ़ि पर चर्चा की गई है कि जो महिलाएं घर से बाहर काम नहीं करती हैं, वे घर में योगदान नहीं देती हैं या अपने पतियों की तुलना में बहुत कम योगदान देती हैं । इसमें कहा गया है कि जो महिलाएं गृहस्वामिनी हैं, वे अवैतनिक घरेलू श्रम करती हैं, जैसे कि खाना बनाना, सफाई करना, कपड़े धोना, घरेलू प्रबंधन, हिसाब-किताब, और बुजुर्गों और बच्चों की देखभाल करना, बच्चों को उनके गृह कार्य और पाठ्येतर गतिविधियों में मदद करना।

latest news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related Articles

epaper

Latest Articles