(सीमा पासवान)
आज हम आधुनिक युग मे प्रवेश कर अब वैज्ञानिक युग की नई कहानी लिख रहे जिसमें भारत की बेटियों का भी अमूल्य योगदान है,पर ये सारी महिलायें शहरों में पली बढ़ी है या कुछ गाँवों की भी है । पर इन सब के बीच कुछ ऐसे समस्यायें भी है महिलाओं की जिस पर लोग खुल कर आज भी बात नही करते,पर चुकी नारी होना इतना आसान नही होता । ये एक नारी हि समझ सकती है महिला सशक्तिकरण की हम कितने भी बात करे पर महिलाओं के वो पाँच दिन माहवारी के कितने कष्ट दायक होते है ,इस पर ही महिलाओं का पूरा जीवन निर्भर होता है ।
—गांवों में महिलाएं आज भी माहवारी में पुराने फट्टे कपड़ों का करती हैं इस्तेमाल
स्वस्थ और अस्वस्थ की पहली माहवारी से आख़री माहवारी तक का सफ़र आसान नही होता । उन पाँच दिनो में महिलाओं को उचित पोषण से भी कही ज़्यादा ज़रूरी है एक साफ़ सुथरी सैनिटेरी पैड् की। शहरों में ये किशोरियों महिलाओँ को आसानी से मिल जाती है,साथ वो इन दिनो के संक्रमण के प्रति भी सजग है। आर्थिक तंगी नही हैतो वो ख़रीद कर बाज़ार से ले आते है। अगर हम गाँव की किशोरियों की बात करे तो आज भी पहली माहवारी से ले कर आख़री माहवारी तक पुराने फट्टे कपड़ों के पैड बना कर उसे इस्तेमाल करते हैं । आज भी वो अनभिज्ञ है अपने स्वस्थ के प्रति और इन दिनो होने वाले संक्रमण के बढ़ते बुरे परिणामों से। एक औरत का पूरा जीवन इन पाँच दिनो के रख रखाव खान पान पर निर्भर करता है गाँवों में अगर महिलाओं को पता भी है इसके परिणाम तब भी पैड के लिए पैसे या आर्थिक तंगी बहुत बड़ी समस्या हैं।
हम महिला सशक्तिकरण की खूब बात करते है और ये भूल जाते है की आज भी भारत की शहरी जनसंख्या से ज़्यादा गाँवों की जनसंख्या है अधिक लोग आज भी गाँवों में निवास करते है । आधुनिक भारत को अगर हम गाँव तक पहुँचा ना पाए तो कही ना कहीकमी है । सैनिटेरी पैड की आवश्यकता आज गांवों में अधिक है।
अगर आज सच में हम स्वस्थ भारत का निर्माण चाहते हैं तो इस विषय पर खुल कर बात करने की आवश्यकता है तभी आने वाली पीढ़ी और आज की पीढ़ी मिल एक स्वस्थ भारत का निर्माण कर पाएँगे। अब समस्या ये है की उन्हें गाँवों में पैड उपलब्ध कहाँ से होगा तो क्या रास्ते है। पहला वो ख़रीदेंगे खुद के पैसे से जो कभी सम्भव नही है क्यूँकि घरों में हर महिला को सैनिटेरी पैड खुद के पैसे से उपलब्ध करानाआसान नही गाँवों में सीमित संसाधन में साधन उपलब्धता और आर्थिक तंगी के अभाव में नामुमकिन है ।
दूसरा उपाय हमारी सरकार है महिला और बाल विकास मंत्रालय जैसे सरकार हर महीने राशन मुहैया कराती है परिवार के सदस्यों की संख्या अनुसार उसी तरह महिला सदस्यों की संख्या जो ११ साल से ऊपर के है उनको या तो सब्सिडी पर दिया जाए या मुफ़्त में राशन के साथ या सरकारी अस्पताल या किसी भी ज़रिया से उन्हें पैड उपलब्ध कराया जाए। तीसरा एक और उपाय है सैनिटेरी बैंक बनाया जाए जहाँ लोग स्वेच्छा से सैनिटेरी पैड दान करे उन गाँव की बच्चियों तक उस पैड कोपहुँचाया जाए ।
साथ ही जागरूकता कार्यक्रम माहवारी से सम्बंधित समस्याओं के लिए चलाये जाये ताकि आज की बच्चियों को या गाँव की बेटियों कोभी एक सुरक्षित और ऐसे तौर-तरीकों को विकसित और प्रोत्साहित किया जा सके, जो स्वास्थ्य, आरोग्य और रोग-प्रतिरोधक क्षमता कापोषण करें तभी हम एक स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकते है। आइए मिल कर एक भय मुक्त और सुरक्षित स्वस्थ माहौल दे अपने बेटियों को ।