32.6 C
New Delhi
Monday, June 16, 2025

सिगरेट और शराब के सेवन से अमीर महिलाएं हो रही बांझपन की शिकार

नई दिल्ली /खुशबू पाण्डेय । राष्ट्रीय प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य के सलाहकार डॉ नरेश पुरोहित ने शुक्रवार को कहा कि पिछले तीन दशकों में अमीर महिलाओं में बांझपन में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है। डॉ पुरोहित ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार दुनिया भर में, लगभग आठ से 12 प्रतिशत जोड़े बांझपन से पीड़ति हैं, और इसकी दर दुनिया भर में भिन्न-भिन्न है। उन्होंने कहा कि बांझपन का मुद्दा गंभीर है फिर भी उपेक्षित है, और इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य चर्चाओं में अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। यह लंबे समय में लोगों के प्रजनन और उत्पादक जीवन पर भारी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। डॉ पुरोहित ने मोहाली स्थित डॉ. बी.आर. अम्बेडकर राज्य आयुर्विज्ञान संस्थान द्वारा आयोजित एक सेमिनार में ‘आधुनिक महिलाओं में बांझपन वृद्धि’ शीर्षक पर एक मुख्य भाषण देने के बाद यूनीवार्ता को बताया कि पूरे भारत में, बड़ी संख्या में जोड़े बांझपन का सामना कर रहे हैं।

इसे भी पढेंमहिलाओं को संसद और विधानसभाओं में उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा

उन्होंने कहा कि पूरे भारत में लगभग 27.5 मिलियन जोड़े बांझपन से पीड़ति हैं। शहरी भारत में छह में से एक जोड़ा बांझपन से प्रभावित है। उन्होंने कहा कि देश की बढ़ती बांझपन दर एक बड़ा मुद्दा है, खासकर दक्षिण भारतीय राज्यों में। दक्षिणी राज्यों में यह उच्च बांझपन दर समग्र प्रजनन दर (टीएफआर) में गिरावट में भी प्रभाव डाल सकती है। डॉ पुरोहित ने कहा कि भारत की जनगणना (1981, 1991, 2001) के अनुमान से पता चलता है कि भारत में प्रजनन आयु वाले जोड़ों में बांझपन बढ़ गया है। अविवाहित महिलाओं के बीच यह 1981 में 13 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 16 प्रतिशत हो गई है। उन्होंने कहा कि यह देखा गया है कि 1998-99 और 2005-06 के बीच बांझपन दर में गिरावट आई है।

इसे भी पढें...इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की छात्रा रहीं जया वर्मा बनी रेलवे बोर्ड की चेयरमैन एवं CEO

इसके अलावा, भारत के एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि वर्तमान में विवाहित महिलाओं में से लगभग आठ प्रतिशत प्राथमिक (गर्भ धारण करने में असमर्थता) और माध्यमिक बांझपन से पीड़ति थीं, जिनमें से 5.8 प्रतिशत माध्यमिक बांझपन (पहले जन्म के बाद बच्चे को जन्म देने में असमर्थता) से पीड़ति थीं। उन्होंने कहा कि यौन संचारित संक्रमणों और पर्याप्त एवं आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण विकासशील देशों में बांझपन दर अधिक है। प्रसिद्ध चिकित्सक ने कहा कि दुनिया भर में शोध अध्ययनों से पता चला है कि जोड़े के रहने का वातावरण जैसे गर्मी और शोर आदि के लगातार संपकर् में रहने से जोड़े के प्रजनन जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

इसे भी पढें..हाईकोर्ट ने कहा-15 साल की पत्नी से शारीरिक संबंध रेप नहीं

उन्होंने कहा कि उच्च बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) यानी अधिक वजन वाले लोगों का मासिक धर्म, बांझपन, गर्भपात, गर्भावस्था और प्रसव पर बड़ा प्रभाव देखा गया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सिगरेट पीना, शराब का सेवन, प्रेरित गर्भपात और पूर्व गर्भनिरोधक उपयोग से भी बांझपन का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि कामकाजी महिलाओं में बांझपन की दर अधिक होती है, जो मुख्य रूप से तनावपूर्ण कार्य वातावरण के कारण होती है, जो मासिक धर्म चक्र को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है।

इसे भी पढें…स्तनपान कराने वाली महिलाएं स्वास्थ और खानपान को लेकर रहें सचेत

काम का तनाव और पारिवारिक दबाव जैसी तनावपूर्ण जीवन की घटनाएं मासिक धर्म संबंधी विकारों से जुड़ी होती हैं, जो पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम या विकार का कारण बनती हैं और अंतत: बांझपन का कारण बनती हैं। डॉ पुरोहित ने इस बात पर जोर दिया कि बांझपन की चिंताजनक प्रवृत्ति के कारण एक बांझपन प्रबंधन श्रृंखला की स्थापना की आवश्यकता है जिसमें प्रशिक्षित डॉक्टर, परामर्शदाता और स्वास्थ्य पेशेवर शामिल हों जो उचित लागत पर कारण और उपचार के बारे में जानकारी प्रदान कर सकें। सेमिनार में विशेषज्ञों के अनुसार प्राथमिक प्रजनन क्षमता उम्र के साथ घटती जाती है और कम उम्र की महिलाओं में अधिक होती है, जबकि द्वितीयक बांझपन अधिक उम्र की महिलाओं में अधिक होती है।

गरीब और निचली जाति की महिलाओं में प्राथमिक बांझपन का खतरा

विशेषज्ञों ने बताया कि लड़कियों के बीच बढ़ती शिक्षा से बांझपन, विशेषकर माध्यमिक बांझपन का खतरा कम होता है। इसी तरह, अमीर और उच्च जाति की महिलाओं में द्वितीयक बांझपन का खतरा अधिक होता है, जबकि गरीब और निचली जाति की महिलाओं में प्राथमिक बांझपन का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि समग्र रुझानों से पता चलता है कि प्राथमिक बांझपन में गिरावट आई है, लेकिन पिछले तीन दशकों में द्वितीयक बांझपन में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है। उन्होंने वर्तमान स्वास्थ्य एवं प्रजनन कार्यक्रमों को बढ़ाने, लोगों को उनकी जीवनशैली विकल्पों और यौन व्यवहार में सुधार के बारे में शिक्षित करने और प्रजनन गतिशीलता में महत्वपूर्ण बदलाव पर ध्यान देने का सुझाव दिया। गौरतलब है कि प्राथमिक बांझपन बचपन से कोई विकार होने पर होता है और द्वितीयक बांझपन संक्रमण ,रसौली या अन्य बीमारी की वजह से होता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related Articles

Delhi epaper

Prayagraj epaper

Latest Articles