नई दिल्ली/ खुशबू पाण्डेय। अखिल भारतीय आदिवासी सम्मेलन (All India Tribal Conference) के दौरान आदिवासियों पर दमन, जबरन बेदखली, जबरन हिंदू धर्म में विलय और आरएसएस (RSS) की राजनीति द्वारा सांप्रदायिक विभाजन पर गंभीरता से चर्चा हुई। इसके अलावा ‘आदिवासी पहचान’ और ‘बिना विस्थापन के विकास’ के लिए लड़ने का आह्वान किया गया। इस मौके पर अखिल भारतीय आदिवासी फोरम की 15 सदस्यीय कमेटी बनाई गई। आदिवासी सम्मेलन का शुभारंभ प्रसिद्ध आदिवासी लेखक और झारखंड की कार्यकर्ता डॉ. वासवी किरो (Dr. Vasavi Kiro) ने किया। डॉ. वासवी किरो ने आदिवासी भाषाओं, संस्कृति के विकास को सुनिश्चित करने और जनजातीय इतिहास अकादमी बनाने के लिए एक नई जनजातीय नीति के गठन का आह्वान किया।
—‘आदिवासी पहचान’ और ‘बिना विस्थापन के विकास’ के लिए लड़ना होगा
— नई आदिवासी नीति के लिए लड़ने की जरूरत : डॉ. किरो
—अखिल भारतीय आदिवासी सम्मेलन में ‘आदिवासी पहचान’ पर चर्चा
—अखिल भारतीय आदिवासी फोरम की 15 सदस्यीय कमेटी बनाई
—नई जनजातीय नीति के गठन का आह्वान किया
—आदिवासी भाषाओं, संस्कृति के विकास को सुनिश्चित करने अकादमी बने
डॉ. किरो ने कहा कि आदिवासियों के संसाधनों को निगमों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देने की कांग्रेस शासन काल की पुरानी नीतियों का पालन करने के लिए वह भाजपा सरकार पर भारी पड़ीं। उन्होंने कहा कि वन आदिवासियों की संपत्ति हैं, केवल उन्हें ही इसका उपयोग करने या देने का अधिकार होना चाहिए। विकास का मतलब यह होना चाहिए कि आदिवासी न कि निगम अपने संसाधनों का विकास करें और उनसे कमाई करें। उन्होंने कहा कि यह अच्छा है कि एक आदिवासी महिला को भारत का राष्ट्रपति बनने का अवसर मिला है, पर वन अधिकार अभी भी लागू नहीं हुए हैं और आदिवासियों पर दमन जारी है।
इस मौके पर डॉ. किरो ने एक नई आदिवासी नीति तैयार करने के लिए लड़ने की अपील की। साथ ही कहा कि जो आदिवासी भाषाओं और संस्कृति के विकास को सुनिश्चित करेगी और एक आदिवासी इतिहास अकादमी का निर्माण कराएगी। उन्होंने पारंपरिक जनजातीय चिकित्सा, व्यंजनों और अन्य ज्ञान के पहलुओं पर प्रकाश डाला।
इस मौके पर उन्होंने ‘सोनोट जूआर’ – प्रकृति जिंदाबाद के साथ प्रतिनिधियों का स्वागत किया, ऊटी अबुवा-यह जमीन हमारी है, बीर आबुवा-जंगल हमारे हैं और दिसुम आबुवा-देश हमारा है, तो जवाब में जोरदार तालियां और ‘जय जौहर’ के नारे लगे।
डॉ. किरो ने जोर दिया कि आदिवासियों को अपने अधिकारों के लिए संगठित लड़ाई लड़नी चाहिए। कई गैर आदिवासियों, जो आदिवासियों के सच्चे मित्र हैं, ने उनके संघर्ष में बहुत योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि जहां आरएसएस के नेतृत्व वाली ताकतें आदिवासियों को विभाजित कर रही हैं और उनकी एकता में दरारें पैदा कर रही हैं, वहां सावधान रहना होगा।
डॉ. किरो ने कहा कि दुनिया में 70 करोड़ से अधिक स्वदेशी लोग, यानी इंडीजिनस पीपल, हैं, जिनमें से 20 करोड़ भारत में रहते हैं। औपनिवेशिक शासन के 75 साल बाद भी उनकी 7000 स्वदेशी संस्कृतियों की उपेक्षा और दमन किया गया है। भारत में 750 से अधिक आदिवासी जनजातियाँ हैं जिनमें से 75 सबसे अधिक असुरक्षित हैं। उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति बहुत गंभीर है।
उन्होंने कहा कि भारत में राज्य की आदिवासी नीति, जो ‘विकास के नाम पर विस्थापन’ पर आधारित है, ने आदिवासियों को बहुत पीड़ित किया हुआ है। यह जंगलों और प्राकृतिक संपदा की लूट, भूमि अलगाव, प्रकृति का क्षरण, सरना जैसे उनके अपने धर्मों को पहचानने का विरोध और उन्हें जबरन हिंदू में आत्मसात करने का प्रयास, उनके संवैधानिक और कानूनी अधिकारों को लागू करने में अरुचि इसका कारण है। उन्होंने कहा कि भारत में विस्थापित हुए 10 करोड़ लोगों में से 80 फीसदी आदिवासी और स्वदेशी लोग हैं।
आदिवासी महिलाएं एनीमिया और निरक्षरता से पीड़ित
डॉ. किरो ने बताया कि आदिवासी लोग सरल और अज्ञानी होते हैं और वे अशिक्षा, पिछड़ेपन, कुपोषण और बीमारी से पीड़ित होते हैं, अगर सरकार चाहे तो इन सभी से आसानी से इल कर सकती है। लेकिन उन्होंने कहा कि आदिवासी महिलाएं एनीमिया और निरक्षरता से अधिक पीड़ित हैं। इस मौके पर एआईकेएमएस अध्यक्ष कॉम. वी वेंकटरमैया ने मंच से डॉ. वासवी किरो द्वारा लिखित पुस्तक ‘भारत की क्रांतिकारी आदिवासी औरतें’ का विमोचन किया।
आदिवासियों पर बुलडोजर चला रही है सरकार :सरमा
केंद्र सरकार के पूर्व सचिव ईएएस सरमा ने कहा कि सरकार आदिवासियों पर बुलडोजर चला रही है, उनके अधिकारों पर हमला कर रही है। यह अनिवार्य होना चाहिए कि उनसे संबंधित सभी मामलों में ग्राम सभाओं, जनजातीय परिषदों की अनुमति ली जाए। लेकिन यह सरकार इतनी जनविरोधी है कि यह राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से भी परामर्श नहीं करती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपालों के पास आदिवासियों के पक्ष में और उनकी मदद करने वाले कानून बनाने का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन वे इस शक्ति का उपयोग नहीं करते हैं।
सम्मेलन में पहुंचे देशभर के दिग्गज
वरिष्ठ अधिवक्ता और आदिवासी मुद्दों पर लेखक, पाला त्रिनाध राव, कॉमरेड वेंकटरमैया, एआईकेएमएस तेलंगाना के अध्यक्ष भिक्षपति, एआईकेएमकेएस के श्रीकांत मोहंती, तेलंगाना के रयतु समिति के अध्यक्ष जक्कला वेंकटैया, तमिलनाडु के चन्नापन, अखिल भारतीय जनजातीय कर्मचारियों के सत्यनारायण, एपी टीचर्स फेडरेशन के आर जगनमोहन राव और डॉ. राम किशन शामिल हैं। अधिवेशन की शुरुआत सुबह 3 सदस्यीय प्रेसीडियम के चुनाव के साथ हुई।
अधिवेशन ने चार प्रस्ताव पारित किए
अधिवेशन ने चार प्रस्ताव पारित किएः 1. मप्र के बुरहानपुर, छत्तीसगढ़ सहित भारत के अन्य हिस्सों में आदिवासियों पर दमन और दंडकारण्य में हवाई हमलों की निंदा की गयी। महिला पहलवानों का समर्थन और भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी की मांग की गयी मणिपुर में आरएसएस द्वारा प्रायोजित साम्प्रदायिक आगजनी और हिंसा की निंदा करते हुए मौजूदा जनजातीय समूहों के अधिकारों का उल्लंघन न करने की मांग की यगी। और आंध्र प्रदेश के वाकापल्ली में अर्धसैनिक बलों द्वारा आदिवासी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार की निंदा की गयाी।
15 सदस्यीय फोरम कमेटी के गठन को मंजूरी
कन्वेंशन का समापन 11 राज्यों के 600 से अधिक प्रतिनिधियों के साथ हुआ, जिन्होंने सर्वसम्मति से 15 सदस्यीय फोरम कमेटी के गठन को मंजूरी दी, जिसे फोरम के विस्तार और संघर्ष की जिम्मेदारी दी गई। इसमें 4 संयोजक – तेलंगाना के मुक्ति सत्यम, ओडिशा के केदार सबारा, झारखंड के रामसाई सोरेन और आंध्र प्रदेश के एक अन्य शामिल हैं। सदस्यों में पश्चिम बंगाल से स्वपन हांसदा और सुशील लखरा, बिहार से धंजय उरांव, यूपी से भीमलाल, दिल्ली से चंदन सोरेन, ओडिशा से कनिंद्र जलिका, तेलंगाना से सकरू और सुवर्णपाक नागेश्वर राव और आंध्र प्रदेश से मल्लेश और दुर्गा शामिल थे। ये सभी मंच पर मौजूद थे और उन्होंने सभा को संबोधित किया। अरुणोदय कल्चरल फ्रंट के सदस्य निर्मला, दुर्गा, वेंकट लक्ष्मी, बाल नागम्मा, सुजाता, येरु कोंडलू ने अपने क्रांतिकारी गीतों और नृत्य प्रदर्शन से प्रतिनिधियों को प्रेरित किया।