—खुद को कमजोर नहीं दिखने देना चाहते किसान नेता
—आंदोलनकारियों में सरकार के प्रस्ताव पर बढ़ी मतभिन्नता
नई दिल्ली/ टीम डिजिटल । नए कृषि कानूनों को एक से डेढ़ साल तक के लिए निलंबित करने की सरकार की पेशकश को लेकर आंदोलनरत किसान यूनियनों में मतभिन्नता बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य के बाद नए सिरे से बातचीत का दौर शुरू करने की तैयारी कर रहे किसान नेता नई परिस्थितियों में खुद को कमजोर नहीं दिखने देना चाहते। यही कारण है कि भाकियू नेता राकेश टिकैत ने अब कहना शुरू कर दिया है कि पहले किसानों पर लगे मुकदमे वापस हों, गिरफ्तार किसानों को रिहा किया जाए, उसके बाद ही आगे की बातचीत संभव होगी।
गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसात्मक घटनाओं को लेकर दर्जनों किसान नेताओं पर मुकदमे दर्ज हो चुके हैं औऱ 100 के करीब आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। राकेश टिकैत का कहना है कि किसान की पगड़ी नीचे नहीं आएगी। आत्मसम्मान पहले। इसलिए सरकार ने जो मुकदमे दर्ज किए पहले उसे खत्म करे, जिन्हें गिरफ्तार किया, उन्हें रिहा करे इसके बाद ही आगे की बातचीत शुरू होगी। टिकैत ने कहा कि लाल किले की घटना हो या अन्य कहीं हुई हिंसात्मक घटनाक्रम के पीछे किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश थी। मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने लाल किले पर तिरंगे के अपमान से दुखी होने की बात कही तो पलटवार करते हुए टिकैत ने कहा कि तिरंगा क्या केवल प्रधानमंत्री का है? सारा देश तिरंगे से प्यार करता है। जिसने तिरंगे का अपमान किया, सरकार जाकर उसे पकड़े।
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मालूम हो कि किसान आंदोलन बीते दो दिनों से दोबारा रफ्तार पकड़ चुका है, लेकिन अब इस आंदोलन का केंद्र सिंघू बॉर्डर से हट कर गाजीपुर बॉर्डर हो चुका है। इसका कारण भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता राकेश टिकैत का वह भावुक वीडियो रहा, जिसमें वे फूट-फूट कर रोते दिखे। गाजीपुर बॉर्डर से किसानों का धरना खत्म करने को संभावित पुलिसिया कार्रवाई और कथित रूप से भाजपा विधायक व उनके समर्थकों द्वारा किसानों की घेराबंदी से आहत राकेश टिकैत की भावुक अपील काम कर गई और पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से किसान अब गाजीपुर बॉर्डर आकर जमा हो रहे हैं। हरियाणा और पंजाब से भी बड़ी संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर पहुंच रहे हैं। हालांकि 40 किसान यूनियनों का संयुक्त किसान मोर्चा का केंद्र अभी भी सिंघू बॉर्डर ही है। इस मोर्चे में 32 यूनियनें पंजाब की हैं।
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सर्वदलीय बैठक में तीनों कृषि कानूनों को 18 महीने तक निलंबित रखने के प्रस्ताव पर सरकार के कायम रहने का वक्तव्य देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक तरह से किसानों को फिर से बातचीत का रास्ता दिया है। रविवार को खबर चली कि 2 फरवरी को सरकार वार्ता के लिए किसान यूनियनों को बुलाने की तैयारी में है, लेकिन अधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हो सकी। इस बीच किसान नेताओं में सरकार के प्रस्ताव पर मतभिन्नता और बढ़ी हुई दिख रही है। पहले भी पंजाब के डेढ़ दर्जन से ज्यादा किसान इस प्रस्ताव के विरोध में थे, लेकिन ऐसे भी कई संगठन हैं, जो सरकार के प्रस्ताव पर बातचीत को आगे बढ़ाने के पक्ष में हैं। उनकी राय थी कि 18 महीने से बढ़ाकर यह अवधि दो से तीन साल तक किए जाने को लेकर सरकार पर दबाव बनाया जाए।