आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर पूरे देश में चर्चित माफियाडान विकास दुबे भ्रष्ट पुलिसिंग व नेताओं की उपज का तो एकबानगी है, उसके जैसे यूपी में दर्जनों माफिया है, जो इन दोनों के गठजोड़ से अपनी जरायम की दुनिया को लगातार विस्तार दे रहे है। उनके एक इसारे पर नेता से लेकर पुलिस तक कुछ भी कर गुजरने पर तत्पर रहते हैं। किसी सभ्य नागरिक व व्यवसायिक को फर्जी मुकदमें के जरिए तबाह कर देना उनका सगल बन गया है। खास बात यह है कि इन्हीं काली करतूतों से लाखों करोड़ों का साम्राज्य खड़ा करने वाले भ्रष्ट पुलिस व नेता सरकारों की आंखों के तारे होते है। भ्रष्ट नेता अपनी अकूत दौलत के बूते प्रमुख, विधायक, सांसद से मंत्री तक से सुशोभित होता है, तो भ्रष्ट पुलिस दरोगा से इंस्पेक्टर और सीओं तक बन जाता है। जबकि काबिल नेता व तेजतर्रार व कत्र्तव्यनिष्ठ पुलिस क्यू में लग अपनी बारी का इंतजार करता रहता है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कब तब भ्रष्ट पुलिसिंग व नेताओं के गठजोड़ से पैदा होते रहेंगे विकास दुबे जैसे माफियाडान?
(सुरेश गांधी)
फिरहाल, कानपुर का माफियाडान विकास दुबे मामले में हर दिन नए-नए खुलासे हो रहे हैं। विकास दुबे और इलाकाई थाना इंचार्ज विनय तिवारी गठजोड़ कितना गहरा था कि इसे बताने के लिए सीनियर अफसर की चिठ्ठी ही काफी है। उस अफसर की चिठ्ठी के चार महीने बाद विकास दुबे के हाथों जिन आठ पुलिसवालों की जान गयी, उनमें एक जान उस पुलिस अफसर की भी थी, जिसने वो खत लिखा था। यूपी पुलिस के नाम ये खत सबूत है इस बात का कि विकास दुबे जैसे गुंडों को पैदा कौन करता है? कानपुर का विकास दुबे इकलौता माफिया नहीं है जो भ्रष्ट पुलिसिंग व नेताओं के बूते अपनी जरायम की दुनिया को चार चांद लगा रहा था। उसके जैसे भदोही, गाजीपुर, प्रयागराज, जौनपुर, प्रतापगढ़, आजमगढ़, मेरठ, बस्ती सहित लगभग पूरे यूपी में छाएं हुए है, जो भ्रष्ट पुलिसिंग के सहारे खनन, जमीन कब्जा, सुपारी हत्या से लेकर हर वह अनर्गल काम को अंजाम दे रहे है, जो सूबे के लिए ही नहीं आमजनमानस के लिए भी खतरा है। पर अफसोस इस गठजोड़ की गहराईयों में जाने पर पता चलता है कि कैसे यूपी पुलिस के कुछ लोग विकास दुबे की तनख्वाह पर पलते थे।
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बता दें, इसी साल 13 मार्च के बाद सीओ देवेंद्र मिश्र ने कानपुर के एसएसपी पत्र लिख कहा था कि विकास दुबे पर करीब 150 संगीन मुकदमे दर्ज हैं। 13 मार्च को इसी विकास दुबे के खिलाफ चैबेपुर थाना में एक मुकदमा दर्ज हुआ था। जो आईपीसी की धारा 386 के तहत दर्ज हुआ था। मामला एक्सटॉर्शन का था। इसमें दस साल तक की सजा का प्रावधान है और ये एक गैर जमानती अपराध है। गैर जमानती अपराध होने के बावजूद जब चौबीस घंटे तक विकास दुबे के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई और उसे गिरफ्तार नहीं किया गया तो 14 मार्च को उन्होंने केस का अपडेट पूछा। इस पर उन्हें पता चला कि चौबेपुर के थानाध्यक्ष विनय कुमार तिवारी ने एफआईआर से 386 की धारा हटा कर पुरानी रंजिश की मामूली धारा लगा दी।
पत्र में साफ-साफ लिखा था कि थानाध्यक्ष विनय तिवारी का विकास दुबे के पास आना-जाना और बातचीत बनी हुई है। इतना ही नहीं सीओ साहब ने चार महीने पहले ही आगाह कर दिया था कि अगर थानाध्यक्ष अपने काम करने के तरीके नहीं बदलते तो गंभीर घटना घट सकती है। और देखिए चार महीने बाद जिस पुलिस वाले ने विकास दुबे से पुलिस की ही मुखबिरी की वो कोई और नहीं चौबेपुर का वही थानाध्यक्ष विनय कुमार तिवारी था। जिसे अब सस्पेंड किया गया है।
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इस एनकाउंटर के दौरान विकास दुबे के साथ रहा उसका साथी तक ये इकरार कर रहा है कि पुलिस के आने की खबर थाने से ही मिली थी। यानी विकास दुबे और थानाध्यक्ष के बीच साठगांठ की पूरी जानकारी कानपुर के एसएसपी तक को थी। मगर कानपुर के आला पुलिस अफसरों ने भी तब विकास दुबे या थानाध्यक्ष के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। होती भी कैसे, पुलिस दोस्त बनी हुई थी और नेता सिर पे हाथ जो रखे हुए थे। कहा जा सकता है कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोपी मोस्टवांटेड विकास दुबे खुद को सिर्फ गुनाहों की दुनिया तक सीमित नहीं रखना चाहता था बल्कि सियासी गलियारों में भी दखल रखता है। वह अपना राजनीतिक गुरु पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरिकिशन श्रीवास्तव को मानता है तो मौजूदा दो बीजेपी विधायकों से अपनी नजदीकियों को भी जाहिर करता है। यह बात खुद विकास दुबे ने बताई है। दरअसल, विकास दुबे 25 साल से प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ रहा है।
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विकास दुबे 15 साल तक बसपा के साथ रहा तो 5 साल बीजेपी में और 5 साल सपा में रहा है। पंचायत चुनाव के दौरान उसे बसपा से समर्थन मिला था जबकि उसकी पत्नी को चुनाव में सपा का समर्थन हासिल रहा था। शायद इसीलिए कोई भी दल विकास दुबे के खिलाफ खुलकर बोलने में संकोच कर रहा है। कानपुर के आईजी मोहित अग्रवाल कह चुके हैं कि चौबेपुर थाना संदेह के घेरे में है। अब जांच पड़ताल में धीरे धीरे पता चल रहा है कि पुलिस महकमे के भीतर छिपे विकास दुबे के मददगारों की संख्या बढ़ती जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक विकास दुबे से संबंध के शक में पूरे चैबेपुर थाने समेत करीब 200 पुलिसकर्मी शक के दायरे में हैं जिन्होंने समय समय पर या तो विकास की मदद की या उससे फ़ायदा लिया है। चौबेपुर, बिल्हौर, ककवन, और शिवराजपुर थाने के 200 से अधिक पुलिसकर्मी रडार पर हैं। इनमें से सभी वो शामिल हैं जो कभी न कभी चौबेपुर थाने में भी तैनात रहे हैं।
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बसपा सरकार के दौरान ही विकास दुबे ने बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में अपना रसूख कायम किया था। इस दौरान शातिर अपराधी विकास दुबे ने कई जमीनों पर अवैध कब्जे किए। यहीं नहीं, इसके अलावा जेल में बंद रहते हुए भी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने शिवराजपुर से नगर पंचयात चुनाव भी लड़ा था और जीत हासिल की थी।
मोस्टवांटेड विकास दुबे का 2006 का वीडियो सामने आया है। वीडियो में विकास दुबे कहता है कि उसे सियासत में लाने का श्रेय पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरिकिशन श्रीवास्तव का है और वही मेरे राजनीतिक गुरु हैं। विकास दुबे वीडियो में कह रहा है, ’मैं अपराधी नहीं हूं, मेरी जंग राजनीतिक वर्चस्व की जंग है और ये मरते दम तक जारी रहेगी।’ गौरतलब है कि हरिकिशन श्रीवास्तव कानपुर के चौबेपुर विधानसभा सीट से 4 बार विधायक रह चुके हैं। वह बसपा सरकार में विधानसभा अध्यक्ष भी रहे हैं।
हालांकि, वो पहली बार विधायक जनता पार्टी से बने और बाद में जनता दल और फिर बसपा का दामन थामा और विधानसभा पहुंचते रहे हैं। हरिकिशन श्रीवास्तव दिग्गज नेता माने जाते थे और विकास दुबे उनके करीबी समर्थकों में से एक था। 1996 में कानपुर की चौबेपुर विधानसभा सीट से हरिकिशन श्रीवास्तव बसपा से चुनाव लड़े थे और उनके खिलाफ बीजेपी से तत्कालीन जिला अध्यक्ष संतोष शुक्ला चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में हरिकिशन ने जीत दर्ज की थी।
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राजनाथ सिंह 2000 में यूपी के सीएम बने तो उन्होंने संतोष शुक्ला को दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री बनाया, लेकिन सियासी रंजिश में 11 नवंबर 2001 कानपुर के थाना शिवली के अंदर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। संतोष शुक्ला की हत्या में विकास दुबे का नाम आया था, लेकिन कोर्ट से बरी हो गया था। घटना की एफआईआर संतोष के भाई मनोज शुक्ला ने दर्ज कराई थी। इसमें उन्होंने इन सभी पुलिस कर्मियों को गवाह बनाया था, पर वे गवाही से मुकर गए थे। मनोज की गवाही पर निचली अदालत ने भरोसा नहीं किया। साल 2001 की इस घटना में नामजद विकास 2006 में बरी हो गया। तब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी।
राज्य सरकार को अपराध के मुकदमों में निचली अदालत के फैसले पर पुनर्विचार के लिए हाईकोर्ट में अपील करना होता है, लेकिन तत्कालीन सपा सरकार ने हाईकोर्ट में अपील नहीं की। हत्या का यह केस बंद हो गया। मनोज ने कहा, प्रशासनिक तंत्र ने विकास की मदद की। इसलिए अपराध की दुनिया का पौधा वटवृक्ष बन गया। मैं न्याय की गुहार लगता रहा, लेकिन तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियां विकास के पक्ष में थीं। मेरी कहीं सुनवाई नहीं हुई। कुछ मंत्री विकास की मदद कर रहे थे। विकास के पास एक लाल डायरी है। इसमें वह अपने खास अधिकारियों, नेताओं और उनसे जुड़े लोगों का हिसाब रखता है। अगर पुलिस को डायरी मिलती है तो काफी खुलासे हो सकते हैं।
विकास दुबे का साल 2017 का वीडियो भी सामने आया
गैंगस्टर विकास दुबे का साल 2017 का वीडियो भी सामने आया है। इस वीडियो में 2017 में हुई एक हत्या के संबंध में एसटीएफ द्वारा उससे पूछताछ हो रही है। इसमें विकास दुबे ने बताया कि कैसे एक हत्या में उसका नाम कथित रूप से डाला गया था, जिसे निकलवाने में कुछ नेता उसकी मदद कर रहे थे। इस वीडियो में विकास दुबे बिल्हौर से बीजेपी विधायक भगवती प्रसाद सागर और बिठूर से बीजेपी विधायक अभिजीत सांगा के नाम का जिक्र किया है। इसके अलावा विकास ने ब्लॉक प्रमुख राजेश कमल, जिला पंचायत अध्यक्ष गुड्डन कटियार के नाम भी लिए थे। विकास ने कहा है कि इन नेताओं से उसके राजनीतिक संबंध हैं। हालांकि, बीजेपी के दोनों विधायकों ने विकास दुबे के साथ अपने संबंध होने से इनकार किया है।
हर पार्टी के नेताओं के साथ गहरे राजनीतिक संबंध
दरअसल, अपराध की दुनिया में नाम कमाने के बाद विकास दुबे की दहशत का आलम ये था कि किसी भी चुनाव में वह जिस पार्टी या उम्मीदवार को समर्थन देता था, पूरे गांववाले उसे ही वोट देते थे। यही एक बड़ी वजह थी कि चुनाव के वक्त इन गांवों में वोट पाने के लिए सपा, बसपा और भाजपा के कुछ नेता उसके संपर्क में रहते थे। ये उसकी दहशत का ही नतीजा था कि विकास दुबे 15 सालों से जिला पंचायत सदस्य के पद पर कब्जा बनाए हुए है। विकास दुबे खुद तो जिला पंचायत सदस्य है और साथ ही उसने अपनी पत्नी ऋचा दुबे को भी घिमऊ से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़वाया था। जिसमें वह जीत गई थी। इस चुनाव में सपा ने उसे समर्थन किया था। इतना ही नहीं उसने अपने चचेरे भाई अनुराग दुबे को पंचायत सदस्य बनवाया था। बताया जाता है कि उसका हर पार्टी के नेताओं के साथ उठना बैठना ही नहीं बल्कि गहरे राजनीतिक संबंध भी हैं।