27.2 C
New Delhi
Sunday, June 15, 2025

Kanchi Shankaracharya: सनातन संस्कृति की मजबूत वापसी के लिए नई तरंगे साबित होगा अयोध्या   

नई दिल्ली/ अदिति सिंह:धर्म और संस्कृति से बढ़ती दूरी के बीच अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह (Ram Mandir Pran Pratistha Ceremony) भारतीय राष्ट्र राज्य की सनातन परंपराओं के प्रतिष्ठा की वापसी के दौर की शुरूआत की है। कांची के शंकराचार्य जगदगुरू स्वामी विजयेंद्र सरस्वती (Shankaracharya Jagadguru Swami Vijayendra Saraswati) ने यह विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि  अयोध्या का सुखद समारोह भारतीयों को अपनी संस्कृति और धर्म से जोड़ने में पथ-प्रदर्शक बनेगा। इतना ही नहीं यह सनातन हिंदू धर्म और संस्कृति की परंपरागत पद्धतियों और जीवनशैली के लिए उत्साह की नई तरेंगे बनेगा।

अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह विशेष पुनर्वसु नक्षत्र में होने को दैवीय संयाेग बताते हुए कांची शंकराचार्य ने कहा कि भगवान राम का नक्षत्र भी पुनर्वसु है और यह दैवीय संयोग है कि रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा इसी नक्षत्र के दौरान हुई। रामजन्म भूमि न्यास तीर्थ क्षेत्र के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरि के जन्म उत्सव से जुड़े पुणे में आयोजित संस्कृति महोत्सव के दौरान स्वामी विजयेंद्र स्वामी ने कहा कि अयोध्या के नए मंदिर में केवल बाल राम विग्रह की प्रतिष्ठा संपन्न नहीं हुई है बल्कि इसके साथ-साथ धर्म और भारत की प्रतिष्ठा का नया दौर भी शुरू हुआ है। मालूम हो कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शंकराचार्यों के नहीं जाने को लेकर उठाए गए विवाद को विजयेंद्र स्वामी ने कांची से अयोध्या पहुंचकर विराम लगा दिया था। विजयादशमी के बाद एकादशी को रामलला का दर्शन करने अयोध्या गए तो प्राण प्रतिष्ठा से एक दिन पूर्व 21 जनवरी को यज्ञशाला में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा विधि की पूजा के लिए अयोध्या गए तो उस दिन भी एकादशी था। स्वामी विजयेंद्र के अयोध्या पहुंचने के बाद ही राम जन्मभूमि न्यास तीर्थ क्षेत्र ने इसका खुलासा किया कि प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम कांची शंकराचार्य के मार्गदर्शन में ही तय हुआ था।

विजयेंद्र स्वामी ने कहा कि हम इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बड़े हो रहे, अर्थशास्त्र में बड़े होते हैं और नए विज्ञान के क्षेत्र में भी हम बड़े होंगे। मगर अब समय आ गया है कि भारत की दैवीय संपदा हमको दुबारा मिलना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि आधुनिक प्रगति के इन मानकों के साथ-साथ हम अपने शास्त्रीय भारतीय परंपरा, मर्यादा, उपासना और आतिथ्य की पद्धति को भी संरक्षित रखें। उन्होंने इस पर चिंता जताई कि आज हम संस्कृति की इन पद्धतियों से अलग हो रहे हैं। कांची पीठाधीश्वर ने कहा कि हिन्दू धर्म को हम जीवन पद्धति मानते हैं और इसीलिए हमें संस्कृति के करीब जाकर हमें अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को वापस पाने का प्रयत्न करना चाहिए।

Previous article
Next article

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related Articles

Delhi epaper

Prayagraj epaper

Latest Articles